दर्पण की दुनिया: सच या भ्रम ?
- Hashtag Kalakar
- May 9, 2023
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By Jyoti Rajput
दर्पण के सामने दोनों चिड़िया खड़ी थी,
एक मुस्कुराती, दूजी चिढ़ी हुई थी।
वह लगातार चौंच मारती रही,
उससे लड़ती और चोट खाती रही।
अपनी ही छवि को हटाने की धून में लगी रही,
किन्तु समझी नहीं, और दर्पण में उसी की छवि बनी रही ।
यह तो दर्पण का जादू है जो उस पर चला है,
जिससे वह खुद को खो रही है, और पीछे मूड रही है।
इससे सीखते हुए हमें यह समझना होगा,
अपने दर्पण को तोड़कर हमें आगे बढ़ना होगा।
दर्पण के अंदर छिपी चिड़िया की तरह,
हमें भी अपने अंदर की चिड़िया (खुद) को समझना होगा।
हमने कई बार एक ऐसी चिड़िया को देखा होगा जो बार बार दर्पण में खुद को चौंच मारती हुई दिखाई पड़ती है। पर चिड़िया ऐसा क्यू करती है ऐसा शायद ही किसीने सोचा होगा ! उसको देखकर मन में नया विचार भी शायद ही किसी को आया होगा ! यह सिर्फ बात एक चिड़िया की नहीं है, हम भी शायद ऐसे ही तो है। हमारा मन भी तो ना जाने किन किन बातो में हमें भ्रमित कर देता है ना ? और चिड़िया की तरह हम भी लगे रहते है चौंच मारने में या एक ही बात के आसपास गोल गोल घूमते रहने में, है ना ? कभी हम अधूरी इच्छाओ की छवि देखकर फिर से वही इच्छाएं जीने की चाह मांग लेते है की, काश हम वापिस वही पल जी ले जो बेहद खूबसूरत था। परन्तु आप खुद भी यह जानते है की दर्पण की तरह यह सोच भी एक पत्थर की तरह है, जो शायद कभी बदलने नहीं वाली है । जिसे जितना चाहे चौंच मार लो पर दर्द हमें ही होनेवाला है, लगातार चौंच मारने से चोट भी हमें ही लगेगी। हमें अपने भ्रम को पहचानना होगा जो हमें असफलता के साथ निपटने के लिए रोकते हैं।
अतः सीधी बात यही है की सिर्फ चिड़िया ही नहीं, हम भी भ्रमित हो गए है। हम जो वास्तविक रूप में है उससे शायद कई दूर चले गए और भ्रमित हो गए है। हमें अपने स्वयं के विकास के लिए एक सकारात्मक मार्ग चुनना होगा । इसलिए दर्पण के सच को पहचानिये और खुद को जानिए, खुद को पहचानिये। इस तरह हमें भी यह सीखना होगा, अपने दर्पण को तोड़कर हमें भी आगे बढ़ना होगा। दर्पण के पीछे छिपी चिड़िया की तरह, हमें भी खुद के अंदर छिपी चिड़िया को समझना होगा।
अमित चावड़ा, गुजराती कवि की कुछ पंक्तिया भी ऐसा ही कुछ कहती है।
અમથી અમથી તું ટીચે છે
એના ઉપર ચાંચ
આવ તને સમજાવું, ચકલી,
આ દર્પણ નું સાચ
By Jyoti Rajput

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