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डर तो खुद से लगता है हमें

Updated: Jan 12, 2023

By Guru Shivam



काव्य परिचय

वर्तमान परिदृश्य में चीन के विसतारवादी नीतियों और पाक के नापाक मंसूबों के मद्देनजर, बतौर राष्ट्र नागरिक, अखिल राष्ट्र की ओर से, देश के दुश्मनों के नाम एक सशक्त संदेश.. ।

डर तो खुद से लगता है हमें !

1.

ऐ मेरे मुल्क के नामुरादो !

जरा होश में सुनो !

डर तुमसे नहीं डर तो खुद से लगता है हमें !

अक्सर हमारी खामोशी की वजह जाने कोशिश करते थे ना तुम ! तो सुनो ;

सभ्य हैं, इसलिए खामोश बैठे हैं!

जरा सभ्य हैं, इसलिए खामोश बैठे हैं,

वरना खूंखार खून तो, छत्रपति और महाराणा से विरासत में मिली है हमें !

डर तुमसे नहीं डर तो खुद से लगता है हमें !



2.

सपरस्तों के पत्ते पलना, और अपनी पाकसार जमीं से,

नापाक मंसूबों को अंजाम देना, बस यही काम है तुम्हारा

पर हम तुम्हारे सदृश्य नहीं क्योंकि,

सर्वे भवंतु सुखिनः और वसुधैव कुटुंबकम, है संस्कार हमारा !

और हाँ ! ये संस्कार-चरित्र ही हैं हमारे जो तुम, अपनी शहर जमीं पर, खैरात की खुराक खाकर खैरियत से हो।

वरना, जिस दिन हम अपनी खुद पर आए, उस दिन तुम्हारी खैर नहीं!l

क्योंकि गवाह है, इतिहास आज भी !

कि जब–जब शस्त्र–संधान किया है हमने,

सैकड़ों गर्दनें उतरी हैं,

न जाने कितने हुए अनाथ, और कितनों ने ही अपनी सिन्दूर पोछीं हैं।

रक्तरंजित उस रणभूमि में, रक्त एक बेगुनाह का बहने ना पाए, हमने किए अनेक उपाय,

मुझे तो फिर भी समझा लो, पर

मेरी उस बावली, रक्तपिपासु खड्ग को कौन समझाए ?

और इसलिए, लफ्ज खामोश कर, सहज–शांति मार्ग चयनित करता हूं, क्योंकि, युद्ध से परहेज है हमें!

डर तुमसे नहीं, डर तो खुद से लगता है हमें!

—––***———

By Guru Shivam



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