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जैसा विषय, वैसा मन

By Anurag Shukla


तुम्हारा स्वभाव एकदम सहज एवम सरल होना चाहिए। चालाक बिल्कुल मत बनो, यह पूर्णतः मूर्खता की पहचान होती है। अभी तुम्हारा मन लगातार द्वैत में फंसा हुआ है, संसार में फंसा हुआ है। इसीलिए तुम ये सब सारी सीमित धारणाओं को ग्रहण किए हो।

इससे जरा मुक्त होने का प्रयास करो, अभ्यास करो। तुम्हारे मन की हालत अभी बिखरी बिखरी हुई है। इसलिए तुम लगातार भटक रहे हो, तुम्हे चैन ही नहीं मिल पा रहा है। मन बिलकुल अस्थिर सा है, उसे ऐसा कोई विषय नहीं मिल पा रहा है, जहां वह ठहर जाए। मन आत्मस्थ होना चाहता है, मौन होना चाहता है, वह सदैव के लिए ठहरना चाहता है, वह उस विषय का प्रेमी होना चाहता है, जहां उसे कोई अपने मंजिल से मिला दे। अब तुम सीमित से असीम होने की यात्रा की तरफ बढ़ो। जहां मुक्तता तुम्हारी स्वभाव है।


तुमने अपने जीवन को कभी गौर से देखा ही नहीं, न तो कभी अन्वेषण करने की कोशिश की और न ही कभी प्रश्न किया की हमारा मन किन किन विषयों को पकड़ रखा है। बिलकुल अंतः से जंजीर से जकड़े हुए हो। वासना तो प्रकृति की ही देन है , वो तो आरंभ से अंत तक तुम्हारे साथ विद्यमान रहेगी। जब तक तुम्हारा अस्तित्व नहीं मिट जाता तब तक वो तुमसे अलग नहीं हो सकती है। तुम्हारे पास विषय कोई हो या ना हो लेकिन यह निश्चित है की वासना का विषय तुम्हारे पास सबसे पहले जरूर होगा।



इसके अलावा तुम अपने मन को मनोरंजन के विषयों से भर दिए हो इसलिए वह सदा बिखरा बिखरा रहता है। वह ध्यानस्त नहीं हो पाता, वो एक तीक्ष्ण निगाहें नहीं पैदा कर पाता, वो गहरे विचारों में लीन नहीं हो पाता। इसलिए मन को एक सही दिशा देना अनिवार्य हो जाता है। इस प्रकृति में विषय तो एक ही है, बाकी तो सब इसके भांति भांति प्रकार के छाया बस होते हैं। वो सब जीवन में भटकाव पैदा करते हैं, व्यर्थ के बंधनों में जकड़े रहते हैं। वो जो विषय एक है, उस विषय का नाम है, मुक्तता। मुक्तता ऐसे कोई चीज है नहीं बल्कि वह किसी अनावश्यक और ब्यर्थता के विषयों की उपस्थिति का न रहने का नाम ही, मुक्तता है। जब तक तुम्हारे भीतर अहमवृत्ति रहेगी तब तक तुम बंधनकारी विषयक में फंसे रहोगे। और लगातार प्रकृति तुम्हे अपने माया के जाल से आगे बढ़ने नहीं देगी। विस्तार तो प्रकृति का काम ही है, वह सदैव निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती जायेगी। लेकिन हर एक मनुष्य के भीतर एक साफ सुथरी एवम पवित्र अंतरात्मा होती है, जो सदैव अपने विवेक से एक सही चुनाव करने की क्षमता रखती है और लगातार तत्पर रहती है, एक सकारात्मक परिणाम के लिए।


इसलिए जीवन में सही विषयों का चुनाव करना बहुत आवश्यक है। इससे ही हमारे जीवन का निर्धारण होता है, की हम किस तल पर खड़े हैं या फिर किस तल जी रहे हैं। ये तल का संबंध चेतना से है और निर्धारण इसके ऊंचाइयों से है। तो ये बातें सर्वकालिक सत्य रही हैं, की जैसा विषय, वैसा मन।


  • मुक्त चेतना ही, मनुष्य का मूल स्वभाव है।

By Anurag Shukla




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