जन उद्यान
- Hashtag Kalakar
- Aug 8
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By Hari Mohan Saxena
हमें प्रिय उद्यान हमारा ,
एकाकी का परम सहारा।
जीवन में छाया उजियाला,
त्योहारों पर दृश्य निराला।
बच्चों, बूढ़ों और युवा की,
क्रीड़ा स्थली, स्वजन की मंडली।
भूल सभी चिंताएँ मन की,
तजें समस्याएँ जीवन की।
जैव विविधता यहाँ निराली,
पेड़ सुगंधित दें हरियाली।
पंछी चहकें डाली डाली,
ऋतु पर कोयल कूके आली
सैंजन, नीम और अमलतास की,
लाल छटा फूले पलाश की।
पीपल, बरगद और खेजड़ी,
बेल, गिलोय दिखाएँ हेकड़ी।
गूलर, जामुन और पपीता,
नहीं आमला यहाँ सरीखा।
तुलसी और ग्वार का पाठा,
मीठे तूत, फल लदा शरीफ़ा।
मनमोहक गुलाब अनेकों,
रंग, गंध और शान तो देखो।
सुरमई, लाल, गुलाबी, पीला,
सुर्ख हया से, मगर हठीला।
पीले फूल, सफ़ेद चमेली,
रात की रानी, इक अलबेली।
चंपा, गेंदा, गुड़हल, जूही,
चले हवा, करते अठखेली।
गुणी सुबह व्यायाम कराते,
ज्ञानी जन सुविचार सुनाते।
वृद्ध ठहाके खूब लगाते,
युवा रूप, सौष्ठव दिखलाते।
मन का हर संताप मिटाकर,
बूढ़े पुनः युवा बन जाते।
मन की चिंता भूल भालकर,
आशाओं की ज्योत जगाते।
महिलाएँ भी सैर को आतीं,
सखी सहेलियों संग बतियातीं।
बच्चों को झूले झुलवातीं,
वैभव, रूप दिखा इतरातीं।
यह उद्यान हमारा प्यारा,
सकल शहर में सबसे न्यारा।
इसे संजोना धर्म हमारा,
स्वच्छ रखें, यह कर्म हमारा।
कर्तव्यों को सभी निभाएं,
कचरा यहाँ नहीं फैलाएं।
बच्चों को भी यही सिखाएं,
अनुशासन से सब सुख पाएं।
By Hari Mohan Saxena

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