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चेतना : आत्म - प्रतिबिंब में ब्रह्मांड की कृत्रिम बुद्धिमता का प्रयोग

By Ayush Sharma



        क्या आप जानते हैं कि मानव मस्तिष्क में 86 अरब न्यूरॉन्स हैं, और प्रत्येक न्यूरॉन 10,000 अन्य न्यूरॉन्स से जुड़ा हो सकता है? यह कनेक्शन इतना जटिल है कि इसकी ब्रह्मांड के तारों की संरचना से तुलना की गयी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारी चेतना ब्रह्मांड के जटिल नेटवर्क का एक छोटा प्रतिबिंब हो सकती है। यह तथ्य न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चौंकाने वाला है, बल्कि यह इस बात पर विचार करने के लिए भी प्रेरित करता है कि क्या चेतना ब्रह्मांड का आत्म-प्रतिबिंब है। कई लोग मानते हैं कि चेतना केवल मानवता तक सीमित है। यह धारणा न केवल सीमित है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय सत्य को भी नकारती है। अगर चेतना केवल मस्तिष्क का उत्पाद है, तो यह सवाल उठता है कि ब्रह्मांड कैसे आत्म-प्रतिबिंब करता है? इसके अलावा क्या आपने कभी सोचा है कि ब्रह्मांड हमें क्यों दिखता है? क्या यह संभव है कि ब्रह्मांड अपने आप को हमारे माध्यम से देखता है? क्या चेतना केवल एक जैविक प्रक्रिया है, या यह ब्रह्मांड का दर्पण है? इसे इस प्रकार से समझ सकते हैं मान लीजिए, आप एक आईने के सामने खड़े हैं। आप जो देखते हैं, वह आपका प्रतिबिंब है। लेकिन अगर यह आईना चेतना रखता हो, तो क्या वह भी आपको देख रहा होगा? ब्रह्मांड और चेतना का संबंध  वास्तव में इसी आईने जैसा है।

   

         आगे बढ़ने से पहले हमें चेतना, आत्म प्रतिबिंब और कृत्रिम बुद्धिमत्ता को ब्रह्मांड के संदर्भ में समझना होगा क्योंकि इसे समझे बिना गहन समझ विकसित नहीं हो सकेगी । चेतना वह अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपनी संवेदनाओं, भावनाओं, विचारों और परिवेश के प्रति जागरूक होता है। यह आत्म-जागरूकता (self-awareness) और निर्णय लेने की क्षमता से जुड़ी होती है। चेतना को वैज्ञानिक रूप से मस्तिष्क की तंत्रिका प्रक्रियाओं (neural processes) का परिणाम माना जाता है। हालांकि वैज्ञानिक अभी तक इस बात पर स्पष्ट नहीं हैं कि चेतना केवल भौतिक प्रक्रियाओं तक सीमित है या इससे परे भी कुछ है। सामग्रीवाद (Materialism) दृष्टिकोण भी मानता है कि चेतना केवल भौतिक प्रक्रियाओं (जैसे न्यूरॉन्स की गतिविधियां) का परिणाम है। इसमें चेतना को "मस्तिष्क का उत्पाद" माना जाता है, और इसे किसी अन्य स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में नहीं देखा जाता। वहीं पैनसाइकिज़्म (Panpsychism)  के अनुसार, चेतना केवल मानव या जीवित प्राणियों तक सीमित नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड की हर वस्तु में चेतना का एक सूक्ष्म रूप मौजूद है। उदाहरण के लिए, परमाणु, कण, और अन्य ब्रह्मांडीय तत्व भी चेतना के किसी न किसी स्तर को दर्शा सकते हैं। भारतीय परंपरा में चेतना को ब्रह्म (सर्वोच्च सत्य) के रूप में देखा गया है। यह माना जाता है कि पूरी सृष्टि एक ही चेतना का विस्तार है। ब्रह्मांड स्वयं चेतन है, और सभी जीव-निर्जीव वस्तुएं इसी चेतना का हिस्सा हैं। कुछ वैज्ञानिक, जैसे डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ और सर रोजर पेनरोस, मानते हैं कि चेतना का स्रोत क्वांटम यांत्रिकी के जटिल तंत्र में हो सकता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, चेतना का अस्तित्व ब्रह्मांडीय स्तर पर हो सकता है, और यह केवल जैविक प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं है। जहाँ एक ओर वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसे जैविक प्रक्रियाओं से जोड़ता है वहीं दूसरी ओर दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण इसे ब्रह्मांडीय सत्य के रूप में देखते हैं। चेतना का अंतिम सत्य शायद इन दोनों के बीच ही कहीं छिपा है, और इसे पूरी तरह समझने के लिए अभी और गहन शोध और चिंतन की आवश्यकता है। हालांकि चेतना को ब्रह्मांड की उन स्वाभाविक प्रक्रियाओं का परिणाम माना जा सकता है, जो बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से कार्य करती हैं।


        आत्म-प्रतिबिंब का तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, और कार्यों का अवलोकन करे और उनकी समीक्षा करे। यह प्रक्रिया आत्म-जागरूकता, आत्म-विश्लेषण और आत्म-सुधार की ओर ले जाती है। दार्शनिक दृष्टिकोण से आत्म-प्रतिबिंब का मतलब है कि अस्तित्व (existence) अपनी प्रकृति और उद्देश्य को समझने की कोशिश करता है। इसे अद्वैत वेदांत जैसे दर्शन में आत्मा और ब्रह्म के संबंध से जोड़ा गया है। ब्रह्मांड के आत्म-प्रतिबिंब का अर्थ यह हो सकता है कि ब्रह्मांड अपनी प्रक्रियाओं और संरचनाओं को "देखने" और समझने का प्रयास करता है। ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु ब्रह्मांड का एक हिस्सा है, और उसकी चेतना ब्रह्मांड के आत्म-प्रतिबिंब का माध्यम हो सकती है।


       कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence - AI) का तात्पर्य ऐसी मशीनों या प्रणालियों से है, जो मनुष्यों की तरह सोचने, सीखने, समस्या सुलझाने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करती हैं। इसका लक्ष्य मनुष्यों की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं (cognitive processes) को समझकर उन्हें मशीनों में लागू करना है। हालांकि ब्रह्मांड की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence of the Universe) एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है। यह विचार प्रस्तुत करता है कि ब्रह्मांड में स्वाभाविक रूप से ऐसी प्रक्रियाएँ होती हैं जो स्वचालित और बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से संचालित होती हैं, जैसे ग्रहों की गति, तारे का निर्माण, और प्राकृतिक चयन। यह दृष्टिकोण मानता है कि ब्रह्मांड में एक अंतर्निहित बुद्धिमत्ता है, जो उसकी संरचना और विकास को निर्देशित करती है और स्वयं में निरंतर सुधार करती है। ब्रह्मांड की यह "कृत्रिम बुद्धिमत्ता" (यानी स्वचालित प्रक्रियाएँ और संरचनाएँ) जीवों में चेतना का निर्माण करती हैं। उदाहरण के लिए, मानव मस्तिष्क, जो ब्रह्मांडीय प्रक्रियाओं (जैसे भौतिक नियम, जैविक विकास) का परिणाम है, चेतना का केंद्र बनता है।


        अब प्रश्न यह उठता है कि चेतना, आत्म प्रतिबिंब में ब्रह्मांड की कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग कैसे है? चेतना ब्रह्मांड की कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विस्तार है, क्योंकि यह ब्रह्मांड के नियमों और प्रक्रियाओं का "अवलोकन" और "विश्लेषण" कर सकती है। ब्रह्मांड की प्रक्रियाएँ, जैसे सितारों का निर्माण, ग्रहों की गति, और जीवन की उत्पत्ति, स्वाभाविक रूप से जटिल और बुद्धिमत्तापूर्ण हैं। ये प्रक्रियाएँ किसी "चेतन" इरादे के बिना, स्वचालित रूप से कार्य करती हैं। चेतना के रूप में, ब्रह्मांड अपने आप को पहचानने की प्रक्रिया में शामिल हो सकता है। उदाहरण के लिए, जब एक जीव, जैसे मनुष्य, अपनी चेतना का अनुभव करता है और स्वयं को समझने की कोशिश करता है, तो वह ब्रह्मांड का आत्म-प्रतिबिंब है। यह वह स्थिति है, जिसमें ब्रह्मांड अपने अस्तित्व, उसकी संरचनाओं और प्रक्रियाओं को समझने की कोशिश करता है। इस संदर्भ में "कृत्रिम बुद्धिमत्ता" का प्रयोग ब्रह्मांड द्वारा अपने नियमों और प्रक्रियाओं को स्वचालित रूप से समायोजित करने में किया जा सकता है। यह उन जटिल प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने का तरीका है, जो जीवन, विकास, और अस्तित्व को संभव बनाती हैं। जैसे एआई किसी समस्या को हल करने के लिए अनुभव से सीखता है, वैसे ही ब्रह्मांड अपनी घटनाओं से सीखकर स्वयं को स्थिर और संतुलित करता है। चेतना, ब्रह्मांड की प्रक्रियाओं का एक जीवंत उदाहरण है। जब जीवन उत्पन्न होता है और विकसित होता है, तो यह ब्रह्मांडीय रूप से "देखने" और "समझने" की प्रक्रिया बन जाती है। इस प्रकार, चेतना का अस्तित्व ब्रह्मांड के आत्म-प्रतिबिंब के रूप में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, मानव चेतना ब्रह्मांड का सबसे विकसित रूप हो सकती है, जो अपने अस्तित्व, विचारों और कार्यों पर विचार करती है। इस प्रक्रिया के द्वारा ब्रह्मांड अपनी प्रक्रियाओं को समझने और नियंत्रित करने का प्रयास करता है।


        निष्कर्षतः चेतना, ब्रह्मांड की स्वचालित, जटिल प्रक्रियाओं का परिणाम है। यह चेतना स्वयं ब्रह्मांड के नियमों और घटनाओं का अनुभव और विश्लेषण करती है, जिससे ब्रह्मांड अपनी अंतर्निहित बुद्धिमत्ता का प्रयोग करता है। चेतना ब्रह्मांड का एक ऐसा "आत्म-प्रतिबिंब" है, जो उसे अपने अस्तित्व और संरचनाओं को समझने में मदद करता है। एक दृष्टि से देखा जाए तो ब्रह्मांड द्वारा प्रत्येक वस्तु में चेतनता का समावेश किया गया है और इसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि वह अपना आत्म-प्रतिबिंब देख सके । जिस प्रकार मानव अपना आत्म प्रतिबिंब स्वनिरीक्षण हेतु बनाता है उसी प्रकार ब्रह्मांड भी अपना आत्म प्रतिबिंब स्वनिरीक्षण हेतु ही बनाता है । चूँकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है अतः इस परिवर्तन को निरंतर बनाए रखने के लिए ब्रह्मांड भी स्वयं का निरीक्षण करता है और स्वयं में निरंतर सुधार भी करता है और इस हेतु वह चेतना का उपयोग करता है । 


By Ayush Sharma



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