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चुप्पी

By Krati Gahlot


कभी कभी लगता है खामोशी ओढ़ लूं। चुप रहूं। नहीं कहूं किसी से जो दिल में है जो महसूस किया जो दिखा और नहीं भी। अपने अंदर समेट लूं सारे किस्से कहानियां । खुद से ही कहूं अपनी खुशियां, खुद को समझाइश देकर सम्हाल लूं खुद ही, खुद पर नाज़ खुद ही कर लूं और कभी कभी डांट लगा दूं गलतियों पर भी। ज़्यादा आसान होगा ये बनिस्बत कहने से वो सब जो कहना जरूरी है। जो किसी से बांटों तो उम्मीद बंध जाती है जवाब की, कहा भी अनकहा भी पर एक जवाब। पर कहने को ये सब लगती है बहुत सारी हिम्मत| अपनी अना को कभी परे रख देना होता है कोई रिश्ता दांव पर लग सा जाता है या फिर सारी खुशी उड़ेल दी जाती है कहने में वो किस्सा। पर क्यूं क्यूं कहा जाए किसी से ये सब। क्यूं ज़रूरी हो सब कहना? हर आवाज़ का किसी तक पहुंचना बस उसके टकराकर वापस आ जाने के लिए या फिर कभी कभी देखना उसको न पहुंचते हुए। जब कहने में इतने मसले है तो क्यों ये बोझ उठाया जाए, क्यों ये ज़हमत की जाए। अब शायद बेहतर है जो बचा हुआ था कहने को, जो कहने को अब भी दिल कर जाया करता है, जो कहना ज़रूरी सा लगता है या जो ना कहो तब तक तसल्ली नहीं मिलती। अब। अब उस बात को भी चुप्पी ओढ़ा दी जाए।


मुझमें आजकल मैं कम सी होती जा रही हूं। पर रहने दो, ये बात भी क्यों ही कही जाए।




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मुझमें आजकल मैं कम सी होती जा रही हूं। पर रहने दो, ये बात भी क्यों ही कही जाए।


नहीं! रुको! अच्छा थमो ज़रा कुछ पल। अपनी मत कहो पर मेरी ये बात तो सुन लो। ये तुम्हारे लिए है।

ज़ुबान दे दो हर उस बात को जिसे कहने को अब भी तुम्हारा दिल करता है या जिसे कहे बिना तुम्हें तसल्ली नहीं मिलती क्यूंकि तुम्हें शायद अंदाज़ा नहीं पर तुम्हें यूं बेचैन देखकर मुझे भी चैन नहीं आता। कहने में चाहे लाख मसले हो पर तुम्हारा कहा कभी किसी को खुशी, किसी को जुनून, किसी को सुकून और मुझे...अच्छा ये बाद में सुन लेना। देखो, तुम्हारा कहा झूठ नहीं कि कई बार आवाज़ पहुंचती ही नहीं या कभी टकराकर वापस आ जाती है पर शायद, शायद उसे ढूंढ लो जो तुम्हारी आवाज़ सुनने के इंतजार में बैठा हो। ढूंढोगी न? और देखो भले ही कितनी हिम्मत लगे, किसी रिश्ते की डोर छूटने लगे या उसको कहने में ज़माने भर का जोर लगे, पर वो बात, वो किस्सा, वो कहानी तुम्हें सुनानी ही होगी। हां! इस बात पर मेरी हामी है कि तुम्हारी अना से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। अगर तुम खुद निभा लोगी अपने ज़िंदगी में सारे किरदार . डांटने के, समझाने के, खुशी बांटने के, तो देखो ये सुनने में तो अच्छा लगता है पर प्रैक्टिकल नहीं है। अरे अरे! ठीक है। कोई सवाल नहीं उठा रहा तुम्हारी ज़िद, मेरा मतलब काबिलियत पर! कर सकती हो तुम ये सब। पर सुनो, कभी और कर लेना ना ये सब...फ़िलहाल ये बताओ, आज का दिन कैसा रहा?


By Krati Gahlot





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