कैसे हैं ये लोग ?
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कैसे हैं ये लोग ?

By Nirupama Bissa


कर सूरज को बंद एक डिबिया में,

दिया लेकर उजाले तलाशते लोग।


घोल कर हवाओं में ज़हर अपने हाथों से

ऑक्सीजन के प्लांट लगाते लोग ।


घर में बुजुर्गों का अपमान करके,

वृद्धाश्रम में चंदा बंटवाते लोग।


फूंक कर अपने ही हाथों से बस्तियां,

अब पानी की गुहार लगाते लोग।


है सच कहीं कोने में चुपचाप बैठा,

झूठ की जीत पर इठलाते लोग।





सुखा कर समंदर अथाह ज्ञान का

नालों में किश्तियां चलाते लोग।


प्रेम की नदियों का रंग लाल करके

नफरतों से किनारे सजाते लोग।


बीज बो चुके हैं जो वैमनस्यता का जो

वही मनुष्यता की उम्मीद लगाते लोग ।


यही सोचकर व्यथित है मन मेरा

क्यों इंसान नहीं बन पाते लोग ।


By Nirupama Bissa





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