By Sanchita S K Behera
प्यार, इश्क़, मोहब्बत! इन लफ़्ज़ों को समझना इतना ही आसान है क्या? हम ज़िन्दगी की रफ्तार में रहते हैं। हर मंजिल पर पहुंचने की चाह में हम शायद काफ़ी कुछ पीछे छोड़ देते हैं। फ़िर चाहे वो रिश्ते हो या यूं कहो तो गिनती के तुम्हें चाहने वाले लोग। फिर जब हम ज़िन्दगी के किसी एहेम मोड़ पर होते हैं, जहाँ हमें प्यार कि और किसी अपने की ज़रूरत होती है तब हम मोहब्बत के कई मायने बना लेते हैं। कुछ चंद दिनों के सफर को फिर तजुर्बा कहकर किसी में वह इश्क़ ढूंढना शुरू करते हैं। और किसी सही के मिलने का इंतजार काफ़ी वक्त गवाना मालूम होने लगता है। फिर बिना कुछ सोचे समझे जो भी राह में मिले उनके साथ वक्त गुजारना यूं ही हो जाता है। तब सिर्फ किसी के साथ की ज़रूरत होती है, तो फिर हम भी बिना कुछ सोचे समझे उन चार दिन की बातों को बुनियाद बनाकर उसे इश्क़ का नाम दे देते हैं। मिलेंगे काफ़ी यूंही राहों पर। तुम उनके साथ नहीं रहना चाहोगे पर वो तुम्हें अपने साथ रखना चाहेंगे। तुम्हें साथ करने के लिए काफी हद तक वो अपनी अच्छाइयां भी गीनवाएंगे, शायद मोहब्बत भी करे तुमसे, पर बेपनाह नहीं। काफ़ी सुकून तुम्हें भी महसूस होगा उसकी बातों में, उससे की गई हर एक मुलाकातों में। पर कब तक? एक ना एक दिन तुम्हें भी होश तो आ ही जायेगा।
ना तुम्हें उसकी आदतें रास आएंगी ना ही उसे तुम्हारी बातों का एहसास रहेगा। मोहब्बत से ज्यादा तो तुम्हें वो रिश्ता घुटन लगने लगेगा। फिर शायद सोचोगे तुम खुदसे की काश किसी के इंतज़ार में अगर तुम बैठे होते तो वह भी अच्छा होता। अकेले थे तो काफ़ी अच्छे थे ये इश्क़ विश्क बेकार किया। आख़िर अकेले चलना तो कोई गुनाह नहीं था। बेवजह इश्क़ के नाम पर किसी बेमतलब के रिश्ते में ख़ुदको रखने चले थे। तुम शायद बाहर भी आ जाओगे उस खुश ख्वाब से। पर तब तक तुम्हारा दिल काफ़ी हद तक अपना प्यार किसी गैर पर लूटा चुका होगा। तब तुम खुद से कहोगे ज़रूर की अकेले रह गए होते भी तो कोई गम नहीं था, किसी पर अब यकीन करने में तुम्हें वक्त भी अब काफी लगेगा। लेकिन मिल जाए अगर कोई शक्स कोई तुम्हें जो फिर तुमसा हो और जो तुम्हें तुम्हारे इस पहलू के साथ तुम्हें अपनाए तो उसे तुम कभी गलत मत समझना। यूंही कोई किसी के भी माजी को अपनाता नहीं हैं, अपनाने के लिए भी मोहब्बत लगती है। और अगर वह कभी कह दे की उसे तुमसे मोहब्बत हैं, तो कभी उसके मोहब्बत पर अपने पुराने बातों को बुनियाद बनाकर शक मत करना। उस प्यार को झूठ और सच के मायनों में भी नहीं तोलना।
By Sanchita S K Behera