कशमकश : उसके बाद का घर
- Hashtag Kalakar
- Oct 24
- 1 min read
By Nishu Mehta
सोचती हूँ , मरना हर मुश्किल का हल है |
कैसे समझाऊँ , उसमें भी उलझन है |
जवान बेटी का शव बाप के कंधों पर है |
माँ की आँखों में एक डूबता हुआ कल है |
बड़े भाई की आँखों में एक गहरा गम है |
सोचती हूँ , मरना किस मुश्किल का हल है |
कोने में बैठी दादी की आँखें नम हैं |
सोचती है परवरिश कहाँ कम है
जान से प्यारी पोती आज खानदान पर कलंक है |
सोची हूँ , मरना किस मुश्किल का हल है |
खुद की बेटी से बढ़कर भतीजी के जाने पर ,
ताऊजी एक सदमे में गुम हैं |
शेर-सी दहाड़ने वाली बच्ची की खामोशी पर चुप हैं |
दिल में एक अजीब सी कशमकश है |
सोचती हूँ , मरना किस मुश्किल का हल है |
By Nishu Mehta

Nice 🥰
The rhythm and flow of your words were mesmerizing. They pulled me right into the emotion of the poem.
Your writing is truly a gift. I hope you continue to create such powerful and heartfelt work
"Your words paint vivid pictures and stir deep feelings. Truly mesmerizing."
Your way with words is incredible 👌👌
Your way with words is incredible 👌👌