करवाचौथ
- Hashtag Kalakar
- May 3, 2023
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By Nikhil Tandon
"माँ जी मैंने मैदा गूथ दिया है ज़रा रसोई में आकर देखिए न कि ज़्यादा सख़्त तो नहीं है पापड़ी के लिए" कविता ने अपनी सास को आवाज़ लगाते हुए कहा।
"हाँ एक दम सही है बहू। अब तू बाहर थोड़ा आराम कर ले मैं कुछ पपड़ियाँ बेल कर रखती हूँ फिर तू आकर कड़ाई में तल लेना। सुबह से लगी है अकेले हाथों। हर बार बोलती हूँ कि दो दिन पहले से ही तैयारी कर लिया कर" कविता की सास ऐसा कहते हुए बेलन उठा कर रसोई में पड़ी पटरी पर बैठ जाती है।
स्कूल बस का आने का समय हो रहा होता है तो कविता अपनी सास से बोलकर अपने बेटे शौर्य को गली के बाहर से लेने चली जाती है।
आते समय शौर्य कविता से बोलता है "मम्मी आज टीचर ने बताया कि करवाचौथ पर पत्नियाँ चाँद देखने के बाद अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। पापा तो अभी ड्यूटी पर हैं और घर भी साल में एक बार ही आते हैं तो फिर आप कैसे व्रत खोलती हैं?"
"तू जल्दी घर चल शौर्य, दादी वहाँ मेरी राह देख रही हैं। कल जब मैं पूजा करूँगी तब खुद देख लेना ठीक है?" कविता थोड़ी सी उदासी के साथ जवाब देती है।
घर पहुँच कर कविता करवाचौथ की तैयारी में लग जाती है और शाम तक पपड़ियाँ, कसार, आटे के मीठे गुलगुले इत्यादि सब बनाकर रख लेती है। इन सबसे निपट कर वह पहले अपनी सास के हाथों में फिर अंत में घर का सारा काम ख़त्म करने के बाद अपने हाथ में खुद मेहंदी लगाती है।
रात के खाने के बाद रोज़ाना की तरह कविता और उसकी सास घर के बाहर टहलने के लिए निकलते हैं तभी उनकी पड़ोसन ताना कसते हुए कविता से पूछती है "क्यों कविता इस बार भाईसाहब आ रहे हैं या हर साल की तरह इस बार भी फोटो से ही काम चलाएगी?" साथ टहल रही बाकी औरतें यह सुनकर हँसने लगती हैं।
कविता यह सुनकर पहले तो कुछ रुआसी सी हो जाती है फिर अपने साहस को एकत्र कर उनसे कहती है "हाँ दीदी मैं इस बार भी उनकी फोटो के साथ ही करवाचौथ मनाऊँगी क्योंकि मेरे पति के लिए उनकी पत्नी से पहले उनकी मातृभूमि आती है। तो क्या हुआ कि वो त्योहारों पर मेरे साथ नहीं होते पर उनका एहसास तो मेरे साथ होता है।
तो क्या हुआ वो मुझसे दूर हैं पर मुझे गर्व है मेरे पति और उनके जैसे हर उस जवान पर जो देश की रक्षा के लिए सरहद पर तैनात है। जिनकी वजह से आप जैसी अनेक महिलाएँ अपने पति के साथ हर त्योहार आराम से मना पाती हैं।
तो क्या हुआ कि मैं उनकी तस्वीर के साथ करवाचौथ मनाती हूँ, पर मेरी माँग में उनके नाम का सिन्दूर तो है।
मुझे गर्व है खुद पर और मेरी जैसी हर उस महिला पर जो अपने पति से दूर रहकर उसके माँ-बाप और पूरे परिवार का नि:स्वार्थ ध्यान रखती है और घर की सारी जिम्मेदारियाँ निभाती है।"
कविता के मुँह से खरी-खोटी बाते सुनकर सब चुप हो जाती हैं और शर्मिंदगी से आँखे झुकाएं अपने-अपने घर चली जाती हैं।
अगले दिन कविता दिन भर निर्जल व्रत रखकर शाम को चाँद निकलने के बाद हर साल की तरह इस साल भी अपने पति की तस्वीर देख कर व्रत खोलती है।
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“सलाम है उन सैनिकों की सुहागनों को जो उस सैनिक का ऐसा साहस बनाए रखने में और देश के प्रति उसकी ज़िम्मेदारीयों का सम्मान करती हैं एवं हर उस सैनिक को, जो ऐसी पत्नी के साथ की वजह से घर-परिवार की चिंता से मुक्त होकर, हमारे देश की रक्षा के लिए अपने परिवार, दोस्त, त्योहार आदि को पीछे छोड़ देश की सेवा में हरदम डटा रहता है।“
By Nikhil Tandon

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