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कनखजूरा

Updated: Jul 30

By Neha Dewangan


आज का दिन- सुबह 5:45 AM


आज सुबह मैंने मेडिटेशन के ठीक पहले एक कनखजूरे के बच्चे को देखा। वो बिलकुल स्थिर था जैसे मर चुका हो। मैंने जल्दी से एक चप्पल लाकर उसे मार दिया। पहली बार मार पड़ने के बाद वो हिलने लगा। जैसे मर कर वापस ज़िंदा हो गया हो। मैंने 3-4 बार लगातार उसे चप्पल से मारने की कोशिश की। कुछ देर तड़पने के बाद वो मर ही गया। उसका शरीर ज़मीन पर चिपका हुआ था। उसके सारे पैर फैले हुए थे और वो भी चिपके हुए थे। फिर मैंने थोड़ी जगह छोड़ कर अपना योगा मैट बिछाया और ध्यान में लग गई।


अधुना को ये कनखजूरा पिछले 2 साल से हर रोज़ दिखता है कभी-कभी तो दिन में कई बार उसका इस कनखजूरे से सामना हो ही जाता है। हर बार जब भी उसका इस से सामना होता है अधुना बेचैन हो जाती है। उसके पूरे शरीर में अजीब सी हरकत होने लगती है। उसके शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग तरीके से रियेक्ट करने लगते है। उसे समझ नहीं आता है कि ऐसा क्यों हो रहा है। वो खुद को संभालने और जो हो रहा है उसे समझने की बहुत कोशिश करती है लेकिन हर दिन हर बार वही होता है।


2 साल पहले ,......


अधुना एक बहुत ही हँसमुख, साहसी और आत्मविश्वासी लड़की है । बचपन से ही उसे जो सही लगता था वो खुल कर अपने विचार रखती थी। गलत के लिए भी उसने हमेशा अपनी आवाज़ उठाई है फिर वो घर में हो या उसके ऑफिस में। उसकी इसी बेबाकी के लिए वो अपनी कम्युनिटी में एक जाना पहचाना चेहरा है। बस एक चीज़ थी जिससे अधुना बहुत डरती थी “कनखजूरा”।


अधुना एक बैंक मैनेजर है। उसकी लाइफ में सब कुछ ट्रैक पर था सब कुछ! जो हर इंसान अपनी लाइफ में चाहता है। एक अच्छा खुशहाल परिवार, एक स्टेबल जॉब, और सोसाइटी में रेस्पेक्ट। सब कुछ तो था। उसकी ज़िन्दगी की गाड़ी मस्त चल रही थी और उसे ऐसा लग रहा था कि वो उस गाड़ी की ड्राइवर सीट पर बैठी है और सबकुछ उसके कंट्रोल में है।


फिर ऐसा क्या हुआ था कि उसकी लाइफ में जो सब कुछ उथल पुथल हो चूका था। उसे लगता था कि उसने सब कुछ समेट कर रखा है लेकिन अब जब वो नज़र उठाकर देखती है तो सब कुछ बिखरा हुआ है। जैसे कमरे में कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं है। वो बार बार उसे समेटती है और हर बार सब फिर से सूखे पत्तों की तरह बिखर जाता है।


ये बिलकुल ऐसा कि जब सपने टूटते है तो उन्हें फिर भी जोड़ने की गुंजाइश होती है लेकिन अगर सपने चूर-चूर हो जाए तो ? उन चूरो से फिर कौन सा आकार दिया जा सकता है जब ये पता न हो तो ? या फिर वो चूरे इतने भुरभुरे हो जाए की उनसे कोई आकार देना नामुमकिन सा लगने लगे ? कैसे शुरुआत से शुरुआत की जाए ? इतनी हिम्मत भी न बची हो तो ?


जब वो घटना हुई थी उसके बाद सब सुन्न हो चूका था अधुना की ज़िन्दगी में। उसे कुछ भी फील नहीं होता था। या उसकी भावनाओं का वेग इतना तेज़ होता था की सब सुन्न ही लगता था।


कहानी लिखते हुए मैं कब अपनी ही कहानी लिखने लगी पता नहीं चला या शायद शुरू से ही पता था की ये मैं अपनी ही कहानी लिख रही हूँ। नहीं लिखना चाहती मैं अपनी कहानी। नहीं बताना चाहती मैं अपनी ज़िन्दगी के बारे में किसी को। नहीं खोलना चाहती कहानी के उन पन्नो को जिस क़िताब को मैंने ताला लगा दिया है।

जो मेरे शरीर के किसी हिस्से में दफ़न हो चुके है। सिर्फ उन पलों के निशान ही देखे जा सकते है मेरे शरीर में। लेकिन क्या सच में वो दफ़न हुए है या मैंने ही शुतुरमुर्ग की तरह बस अपना चेहरा जमीन में गाड़ लिया है। क्योकि मैँ उसे देख नहीं रही तो मुझे लग रहा है वो दफ़न है।


****

अधुना को सुबह सुबह एक कनखजूरा दिखा। ये कनखजूरा बहुत बड़ा था। वो अचानक कमरे में आया था कहाँ से आया नहीं पता। वो बहुत तेज़ी से चल रहा था। पुरे कमरे में वो घूम घूम कर यहाँ वहाँ रेंग रहा था। अधुना अपनी जगह पर ही बैठी थी। उसने एकदम से अपना पैर उठाकर जिस कुर्सी में वो बैठी थी उसपे रख लिया। वो डर गई थी। उसका सिर घूम रहा था।


कमरे के बाहर सब कुछ नार्मल था लेकिन अचानक से सब उथल पुथल हो रहा था। वो कनखजूरा अब जमीन पर नहीं था वो कमरे में हर जगह पर था। कभी बिस्तर पर कभी टेबल पर कभी किताबों की रेख पर और सब जगह घूमने के बाद वो अब उस कुर्सी पर चढ़ने लगा जिसपे अधुना बैठी थी। वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी। बचाओ बचाओ। वो चिल्ला चिल्ला कर रो रही थी लेकिन उसकी आँखों में आँसू नहीं थे। कमरे का दरवाज़ा बंद था। बाहर किसी को कोई आवाज़ नहीं आ रही थी लेकिन अंदर अधुना की आवाज़ बहुत तेज़ थी।


उसे समझ नहीं आ रहा था की उसे कैसे मारे। हिम्मत करके वो अपनी कुर्सी से उठी और कूद कर अपने बिस्तर पर आ गई। वहां से वो जल्दी से उतरकर कमरे का दरवाज़ा खोलकर भागने लगी। जब उसने पीछे देखा तो वो कनखजूरा भी उसके पीछे ही था। इस बार वो और तेज़ी से चल रहा था। उसका शरीर बहुत बड़ा हो चूका था वो अधुना के शरीर का दुगना हो चूका था। वो बस अधुना को जकड़ लेना चाहता था।


अधुना जितनी तेज़ भाग सकती थी वो भागने लगी। भागते भागते वो एक खुले मैदान में आ चुकी थी। वो एक बंजर जमीन थी। वहाँ की मिट्टी एकदम लाल थी। वो जमीन इतनी बंजर थी की उसपर जंगली पौधे भी नहीं आए थी । भागते भागते शाम हो चुकी थी। वो इस वक़्त मैदान के बिलकुल बीचोंबीच खड़ी थी। उसकी सांसे उखड़ रही थी। उसका शरीर पसीने से गीला हो चुका था। उसके बाल बिखरे हुए थे। उसकी एक चप्पल आधी टूट गई थी। वो और आगे नहीं चल पा रही थी। उसे नहीं पता की ये चप्पल उसने कब पहनी।


पीछे मुड़कर देखा तो वो कनखजूरा दूर खड़ा अधुना को देख रहा था। जैसे उसके वापस आने का इंतज़ार कर रहा हो। अधुना उसकी ओर नहीं देखना चाहती थी लेकिन वो इतना बड़ा था की वो उसे दूर से भी नज़र आ रहा था। हकीकत में वो दूर नहीं था वो बिलकुल उसके बाजु में था उसके साथ खड़ा था। अधुना ने अपनी आँखे कसकर बंद की और अपनी साँसों को संभाला और धीरे से आँखे खोली। वो कनखजूरा अब वहाँ नहीं था। अधुना की आँखों में इस बार आँसू थे। उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई। एक सन्नाटा था वहाँ जो वो महसूस कर सकती थी।


जितनी दूर उसकी नज़र जा सकती थी वो देखने की कोशिश करने लगी कि कहीं वो कनखजूरा अब भी वहाँ तो नहीं है । अँधेरा होने को था। वो डरते हुए वापस मुड़ी और धीरे धीरे चलने लगी। अपनी टूटी चप्पल की वजह से वो चल नहीं पा रही थी। और बिना चप्पल के वो चल नहीं सकती थी क्योंकि मैदान में बहुत छोटे छोटे पत्थर थे।


वो घिसटते हुए चलने लगी जैसे रेंग रही हो। उस सन्नाटे में उसके चप्पल के घिसटने की आवाज़ भी बहुत तेज़ लग रही थी। वो जल्दी घर पहुंच जाना चाहती थी। उसे अपने बिस्तर पर रखा वो तकिया याद आ रहा था इस वक़्त जिसे पकड़ कर वो बस सो जाना चाहती थी। साथ ही उसे प्यास भी बहुत लग रही थी। वो घर जाकर पहले बहुत सारा पानी पीना चाहती थी। वो अपने शरीर को साफ़ करना चाह रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था की वो कनखजूरा उसके पूरे शरीर में रेंग कर गया है। उसे ऐसा महसूस हो रहा था की वो अब भी उसके शरीर में रेंग रहा है बस उसे दिख नहीं रहा है। इस एहसास ने उसके अंदर एक सिहरन पैदा कर दी थी।


वो सिसक-सिसक कर रो रही थी पर अब उसके आँसू नहीं बह रहे थे। थोड़ी देर बाद वो घर पर थी। उसके घर में सबकुछ वैसा का वैसा था उस कमरे को छोड़कर। वो कमरे में नहीं जाना चाहती थी उसे डर था वो कनखजूरा वही होगा उसके इंतज़ार में। उसने एक लम्बी साँस ली और सबसे पहले किचन में जाकर 2 गिलास पानी पिया। फिर सीधे वो बाथरूम की तरफ दौड़ी।


बाथरूम से निकलकर उसने देखा डाइनिंग पर उसके परिवार के सभी लोग बैठकर खाना खा रहे थे। सब कुछ नार्मल था। या उसे नार्मल दिख रहा था। वो डाइनिंग पर जाकर बैठ गई। उसने अपने लिए खाना निकाला और खाने लगी। सभी बातें कर रहे थे वो चुप थी। अचानक खाते हुए उसे एक आहाट आई उसने आवाज़ की तरफ

पलटकर देखा। उसके कमरे का दरवाज़ा आधा खुला था। दरवाज़े के पल्ले से टिक कर वो कनखजूरा अपने सभी पैरों को हिला रहा था और मुझे देख रहा था।


मुझे नहीं उसे(अधुना) देख रहा था। कहानी में खुद को क्यों बार बार लेकर आ रही हूँ ? अभी अभी मैंने एक किताब पढ़ कर ख़त्म की है क्या ये इस वजह से हो रहा है ? क्या मैं उस लेखक की तरह सोच रही हूँ। कही मेरी लेखनी उसकी लेखनी जैसी तो नहीं हो रही है। कहना मुश्किल है ?!


अधुना के पुरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई। उसके होंठ कपकपाने लगे। वो खा नहीं पा रही थी। उसकी लम्बी लम्बी सांसे फिर से चलने लगी थी। उसने सिर नीचे करके खाना जारी रखा। जब तक खाना ख़त्म नहीं हुआ उसने कमरे की तरफ एक बार भी नहीं देखा लेकिन उसे एहसास था उस कनखजूरे के होने का।


खाना ख़त्म करके वो जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ी उसके पैर भारी होने लगे। उसके सिर में बहुत तेज़ दर्द शुरू हो गया। उसका सिर घूमने लगा। दरवाजा खुला था कमरे में कोई नज़र नहीं आ रहा था। वो जल्दी से बिस्तर पर जाकर लेट गई। उसने कसकर अपनी आँखे बंद कर रखी थी उसने अपने कान में हैडफ़ोन लगा लिया और फुल वॉल्यूम में गाना चलाने लगी की उसे बाहर का कोई शोर न सुनाई दे।


अचानक उसे ऐसा फील हुआ की उसके सिर पर बहुत सारे पैर रेंग रहे है वो एहसास बिलकुल भी अच्छा नहीं था उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने आँखें नहीं खोली। थोड़ी देर बाद वो पैर उसके शरीर के बाजू में थे उसके हाथ और पैर को टच कर रहे थे जैसे उसके बाजु में सो रहे हो। ये वही कनखजूरा था जो इस वक़्त अधुना के बगल में लेटा हुआ था उससे पूरी तरह सटकर, ताकि अधुना को उसकी उपस्थिति का पूरा अहसास रहे।


अधुना के आँखों के कोनो से आँसुओ की बुँदे टपकने लगी। उसने अपने मुँह को हल्का सा खोला उसकी गहरी सांसे बाहर आने लगी। वो मुँह बंद करके रोने लगी ताकि उसकी सिसकी की आवाज़ का पता उस कीड़े को न लग जाये। वो कीड़ा उसके शरीर पर था। कभी कभी अधुना को लगता था की वो उसके नाक से होते हुए उसके नसों में घुस चूका है। उसके दिमाग के हर हिस्से में वही रेंग रहा है। उसे घनौनापन महसूस होने लगा था। कई बार उस एहसास को मिटाने के लिए वो अपना शरीर हाथो से झाड़ने लगती थी ।



*****


एक दिन पहले ,....



एक अननोन नंबर से बहुत सारे मैसेज थे और उसके साथ थी बहुत सारी तस्वीरें। तस्वीर में अधुना का पति किसी और लड़की के साथ खड़ा था। उसके पति के दोनों हाथ उस लड़की के कमर पर थे। उस लड़की ने मंगलसूत्र पहना था। ये मैसेज भी उसी लड़की ने किया था जिसमे उसने बताया था की अधुना का पति और वो 1.5 साल से रिश्ते में है और 2 महीने पहले दोनों ने शादी भी कर ली है।


उस लड़की ने ये भी बताया की वो अधुना के बारे में पहले से जानती थी। वो अधुना से मिलना चाहती थी। ये सब पढ़ कर अधुना को लगा की उसके घर की खिड़की पर किसी ने ज़ोर का पत्थर मार दिया है और खिड़की के सारे कांच टूट चुके है। कांच के टुकड़े कमरे में बिखरे हुए है। अधुना उन कांच पर चल रही है और उसके पैरों से खून निकल रहा है।


उसने अपना मोबाइल टेबल पर रख दिया। अचानक पहली बार मोबाइल के पास उसे कनखजूरा दिखा जो सो रहा था। धीरे-धीरे वो कनखजूरा उठने लगा और बड़ा होने लगा। थोड़ी देर में वो पूरा जाग गया और उसका मुँह अधुना के मुँह के एकदम सामने था। वो कनखजूरा और कोई नहीं अधुना का पति था जो बिस्तर पर सोया हुआ था। अधुना की आँखे गुस्से से लाल और आँसुओं से भरी हुई थी।


वो अपने पति पर चिल्लाना चाहती थी। उससे पूछना चाहती थी क्यों ? क्यों उसने उसके साथ ऐसा किया ?

उसका पति अपनी जगह से उठकर बैठ गया। उसने जब अधुना का चेहरा देखा उसे समझ नहीं आया की सुबह सुबह क्या हुआ। उसने उससे पूछा।


अधुना ने उससे कुछ नहीं कहा बस अपनी बेटी के कमरे में चुपचाप चली गई और उसे स्कूल के लिए तैयार करने लगी। उसने सिर्फ अपनी बेटी के लिए टिफ़िन पैक किया और उसे स्कूल भेज दिया। खुद तैयार होकर वो अपने पति से बिना कुछ बोले ऑफिस के लिए निकल गई। उसने उस लड़की को मैसेज कर दिया था और शाम 6 बजे मिलने को कहा था।


ठीक 6 बजे वो उस कैफ़े में पहुंच चुकी थी। वो लड़की वहां पहले से मौजूद थी। वो दोनों मिले और उस लड़की ने अधुना को सब कुछ बता दिया। अधुना ने बहुत ही कड़े शब्दों में उससे कहा की वो उसके पति को छोड़ दे। और उनकी ज़िन्दगी से चली जाये। उस लड़की ने बताया की वो प्रेग्नेंट है।


ये सुनकर उसे एकदम से लगा की इतने सालों तक उसके आँखों के आगे एक रंगीन पट्टी लगी थी जो अब उतर चुकी है और सब कुछ ब्लैक एंड वाइट हो चुका है । उसकी दुनिया अब एकदम से ब्लैक एंड वाइट हो गई थी।

उसके खुशहाल ज़िन्दगी से सारे रंग किसी ने जैसे खींच लिए हो। और अब बस काला और सफ़ेद ही बचा हो।


अधुना बिना कुछ बोले वहां से चली गई। घर पहुंची तो उसने देखा उसके बगीचे के हरियाली भी अब चली गई थी जहां पहले सब हरा था अब सब बेरंग हो चुका था। फूलों के रंग अचानक से गायब हो गए थे। सभी फूल और पौधे अपना रंग बदलकर काले और सफ़ेद हो गए थे।


जैसे ही वो घर के अंदर पसीने से लथपथ घुसी उसने डाइनिंग पर अपने पति और अपनी बेटी को देखा। उसने एक लम्बी साँस ली और सबसे पहले किचन में जाकर 2 गिलास पानी पिया। फिर सीधे वो बाथरूम की तरफ दौड़ी। वापस आकर वो डाइनिंग पर बैठ गई। उसके अंदर इस वक़्त इतना गुस्सा था की वो अपने पति को थप्पड़ मारना चाहती थी। फिर उसने अपनी बेटी को देखा और वो कुछ न बोल सकी बस रोने लगी। लेकिन उसके पति और उसकी बेटी ने ये ध्यान नहीं दिया।


सब समेटकर वो कमरे में आ गई। सिसकियाँ लेते हुए वो कब कमरे में सो गई उसे नहीं पता। अगली सुबह जब वो उठी उसकी आँखे लाल और सूजी हुई थी। उसके सिर में अब भी तेज़ दर्द था।


कमरा एकदम साफ़ था। चीज़े अपनी जगह पर थी। लेकिन अधुना के अंदर अब भी हलचल थी। उसे ऐसा लगा की अब वो कनखजूरा उसके शरीर में पूरा का पूरा घुस चुका है जैसे अधुना का शरीर अब उसका घर हो। वो जहाँ भी जाती वो कनखजूरा भी साथ ही होता। अधुना किसी भी काम को सही से नहीं कर पा रही थी। ऑफिस में भी सारा दिन वो डर और घिनौनापन महसूस कर रही थी। वो बस इस वक़्त कही भाग जाना चाहती थी। जहाँ वो कनखजूरा उसका पीछा न कर सके।


वो जानती थी उसे एक फैसला लेना है और उसका अंजाम भी वो अच्छी तरह से जानती थी।

अगले दिन रविवार को जब सभी घर पर थे और नाश्ते की टेबल पर बैठे थे। अपनी बेटी को नाश्ता करा कर उसने उसे उसके कमरे में भेज दिया था। उसने अपने पति की तरफ देखा वो अपने खाने की प्लेट को देख रहा था और नाश्ता कर रहा था।


अधुना ने उसके सामने अपना मोबाइल रख दिया। उसे वो फोटोज़ और मैसेजस दिखाए। जब अधुना ने उसे ये बताया की वो उस लड़की से मिल चुकी है और वो प्रेग्नेंट है उसे ये पता है तो उसका पति हड़बड़ा गया। उसने अधुना को समझने की कोशिश भी की।


अधुना और उसके पति में बहुत बहस हुई। बहुत चीखना और चिल्लाना हुआ। अधुना की बेटी जो अपने कमरे में थी। इतनी तेज़ आवाज़ से नीचे आ गई थी। वो डाइनिंग एरिया के पास खड़ी होकर अपने माँ बाप को लड़ते हुए देख रही थी। वो बस 11 साल की थी। इतनी छोटी नहीं की कुछ समझ न सके और इतनी भी बड़ी नहीं की सब कुछ समझ जाये।


अधुना ने गुस्से में अपने पति को थप्पड़ मारा और उसे इसी वक़्त घर से निकल जाने को कहा। उसका पति इस बात पर और गुस्सा करने लगा लेकिन अधुना का गुस्सा अपने चरम पर था। इस वक़्त वो कुछ भी कर सकती थी। ये उसका पति जान गया था।


वो बिना कुछ बोले वहां से चला गया।


अधुना की बेटी उसके पास आकर चिपक गई। अधुना ने उसे गले लगाया और फुट फुट कर रोने लगी। इस एक पल में अधुना का सब कुछ उजड़ चूका था। उस एक पल में अधुना को समझ आ गया था की अब उसकी बेटी की लाइफ वैसी नहीं होगी जैसा एक नॉर्मल बच्चे की होती है। थोड़ी देर में उसका पति अपना सामान लेकर घर से निकल जाता है।


उसे पता था की आगे का रास्ता कठिन है लेकिन वो इससे लड़ने को तैयार थी। कुछ सालों के कोर्ट केस के बाद अधुना अपने पति से अलग हो जाती है और एक नए शहर में उसका बैंक ट्रांसफर हो जाता है जहां वो अपनी बच्ची के लिए एक नया सा घरौंदा बनाने की कोशिश शुरू करती है। उसका ये नया आशियाना समंदर किनारे था। जो अधुना उस वाकये को जानकर दुर्बल महसूस करने लगी थी अब उसके अंदर का साहस उसे फिर से महसूस होने लगा था।


इस वक़्त अधुना एक नई नाव में सवार थी उसकी पुरानी नाव डूब चुकी थी। वो एक नए सफर पर थी। उसके आगे एक पूरा समंदर था , नारंगी और चमकीला उगता सूरज वो देख पा रही थी। समंदर का पानी इतना साफ़ उसे पहले कभी नहीं दिखा था।


सुबह 5:45 AM


कनखजूरा उपन्यास की आखिरी लाइनों को लिखते हुए रौशनी को ये एहसास हो रहा था कि अधुना की कहानी में उसने अपने ज़िन्दगी के कुछ पलों के छींटे भी इन शब्दों में उकेर दिए है। उसने अपनी डायरी बंद की और मैडिटेशन के लिए योगा मैट बिछाने लगी।


मेडिटेशन के ठीक पहले उसने एक कनखजूरे के बच्चे को देखा। वो बिलकुल स्थिर था जैसे मर चुका हो। उसने जल्दी से एक चप्पल लाकर उसे मार दिया। पहली बार मार पड़ने के बाद वो हिलने लगा। जैसे मर कर वापस ज़िंदा हो गया हो। उसने 3-4 बार लगातार उसे चप्पल से मारने की कोशिश की। कुछ देर तड़पने के बाद वो मर ही गया। उसका शरीर ज़मीन पर चिपका हुआ था। उसके सारे पैर फैले हुए थे और वो भी चिपके हुए थे। फिर उसने थोड़ी जगह छोड़ कर अपना योगा मैट बिछाया और ध्यान में लग गई।


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