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एक रात

By Harjinder Singh


एक, दो, तीन, चार, पांच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरहI

इस खिड़की में पूरे 13 सरिये थे और इसका डिजाइन भी तकरीबन 30 साल पुराना था|

कुछ चीजें इसलिए होती हैं क्योंकि हम उन्हें करते हैं| पर कुछ चीजें सिर्फ इसलिए हो जाती हैं क्योंकि उन पर कोई ध्यान नहीं देता | आज हर किसी को कुछ नया करने का जुनून कुछ अलग करने की ख्वाहिश है| हर कोई नया बनकर भीड़ से अलग हो जाना चाहता है इसी के चलते वह पहली भीड़ से निकलकर दूसरी भीड़ में शामिल हो जाता है |अब इस खिड़की को ही देख लीजिए 30 साल पुराना झरोखा आज सबसे अलग इसलिए रह गया क्योंकि बाकी सब घरों के डिजाइन बदल गए| घरों में हर चीज नई और आधुनिक है| पर मज़े कि बात तो ये है कि यह तो सबके घरों में है तो आपके पास अनोखा क्या है? कुछ भी नहीं! मेरे पास है|

यह खिड़की|

इसमें लगे तेरह सरिए अलग है | और जैसा कि मैंने कहा कि यह सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया | खिड़की के एक तरफ मैं हूं जो अंधेरा करके बैठा है| और खिड़की की दूसरी तरफ एक रात है |जिसकी फितरत और लहू में ही रोशनी से दुश्मनी है| वैसे तो 7 अरब के करीब लोगों की भीड़ है इस दुनिया में इस वक्त इस रात का गवाह सिर्फ मैं था क्योंकि मैं कहीं व्यस्त नहीं था मुझे कहीं पहुंचने की जल्दी नहीं थी मैं किसी अधूरी मोहब्बत का किरदार नहीं था इस वक्त | आज मैं सिर्फ एक श्रोता, एक दर्शक था जो इस स्याह रात को देख और उसकी ख़ामोशी को सुन रहा था |मेरे साथ ये पहली बार नहीं था जब मैं रात के साथ-साथ जाग रहा था पहले भी मैंने अपनी सैकड़ों रातें अंधेरे के साथ बिताई है इसके साथ जागा हूं मैं सुईयों का सफर तय किया है

मुझे याद है कॉलेज में एग्जाम टाइम पर जब दिन मुझे परेशान करता था तो कैसे मैं उससे डर कर सो जाता और मेरा डर समझकर यह रात मुझे पढ़ाने बैठती

मुझे याद है जब एक लड़की ने मुझे मना कर दिया था तब कैसे इसी अंधेरे ने मेरे बेरंग हो चुके चेहरे को कई हफ्तों तक छुपाए रखा था |जब मैं सारा दिन घर से यहां तक कि अपने कमरे से भी बाहर नहीं निकलता तब यही रात मेरे लिए कुछ हवा के झोंके और मुट्ठी भर सुकून लेकर आती| पर फर्क है उस वक्त रात मुझे देख रही होती, मेरे साथ होती पर आज मैं रात के साथ था ,आज मैं उसे देख रहा था |मैं देख रहा था कि कैसे मेरी नजर कि सीमा या शायद उससे भी आगे तक इस अंधेरे ने हर चीज को अपनी गिरफ्त में ले रखा है पर फिर भी इस अंधेरे की अपनी रोशनी अपनी पारदर्शिता थी |और कुछ मेरी आंखों का अभ्यास की जहां लोगों को आसमान देखे ही हफ्तों में जाते हैं वहां मेरी नजरों के सामने अनंत गगन था जहां 10 फ़ीट चलकर ही कोई ना कोई दीवार आपका रास्ता रोक लेती है मेरी नजर की सीमा तक सामने कोई दर-ओ-दीवार नहीं है जहां तक मेरी नजर देख रही है वहां तक नीचे सिर्फ जमीन और ऊपर सिर्फ आसमान है इसके बीच में बहुत सारे पेड़ पौधे झाड़ियां है रात ने जिन का हरा रंग छीनकर उन्हें अपना स्याह रंग थमा दिया है | मौसम में इतनी खामोशी इतना सन्नाटा है कि मेरे पीछे लगी दीवार घड़ी की आवाज मुझे साफ-साफ सुनाई दे रही है |खिड़की से मीलों के फासले पर दूसरा गांव जहां के घरों में जलते बल्ब यहां से देखने पर जुगनू जैसे लगते हैं |खिड़की से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर था| एक तालाब जिसके किनारे लगे मेंढक जाने अनजाने रात की इस शांति में खलल डाल रहे थे |वैसे तो पेड़ों पर परिंदे भी बहुत थे पर शायद उन्हें कल जल्दी जागना था तो इसलिए जल्दी सो भी गए थे |तालाब की दूसरी तरफ उसके साथ लगती सड़क है जो गांव को बाकी दुनिया से जोड़ने का काम करती है| रात अपनी रफ्तार से चलती जा रही थी और उसे न मेरे जागते रहने की खुशी थी ना मेरे सो जाने का अफसोस होता वो बस गुजर रही थी और मैं बस बैठा था किसी शुन्य में देखते हुए अपनी कुर्सी पर बैठे मेरी नजर खिड़की के बाहर सामने थी |मैं जो कभी सड़क पर भी शांत दिमाग लेकर नहीं चलता जिसके दिमाग में हर वक्त कोई ना कोई खुराफात कोई ख्याल हमेशा चलता ही रहा आज मेरा दिमाग एकदम शांत था| जैसे एक अर्से बाद उसने अपने काम से छुट्टी ली हो इस वक्त मुझे ना तो किसी हो चुकी चीज का अफसोस था और ना किसी हो सकने वाली चीज की चिंता |



जो काम सैकड़ों दिन मिलकर नहीं कर सके वह काम रात के कुछ मिनटों ने कर दिखाया |मुझे ध्यान नहीं मैं कब तक

उस कुर्सी पर बैठा रहा पर जब कभी बीच में सड़क से कोई मोटरसाइकिल शोर मचाती और अपनी हेडलाइट से इस

अंधेरे के होने पर सवाल खड़ा करती तब मेरे मुंह से उसके लिए गाली जरुर निकलती |पर उसके वहां से जाते ही मैं

फिर किसी अंतहीन बिंदु को देखने लगता घड़ी तो मैंने नहीं देखी पर तकरीबन आधी रात के बीत जाने के बाद मैं अपने

बिस्तर पर वापस आ गया और शायद उस दिन पहली बार बिना किसी बात पर परेशान हुए मैं सोया हूं वह नींद मेरी

सबसे बेहतरीन नींद थी और उसके बाद मैं अपने घर वापस आ गया वहीं 10 बाय 10 के कमरे में जहां रात को भी

पड़ोसियों के घरों की लाइटें आंखों में चुभती है |जी हां वहीं ,जहां हर 10 फीट के बाद एक दीवार आंखों के आड़े आ जाती

है| जहां हफ्तो बीत जाते हैं रात की शक्ल देखे हुए…|


By Harjinder Singh




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