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इश्क़, प्यार और वो....

By Omkar Dadhich


इश्क़ प्यार और वो..

कहूँ क्या थी कौन वो..

इश्क़ की रिवायत थी, या कोई लतीफ़ा वो..

ख़्वाब थी, या हकीकत कोई,

अंधेरे में कभी जगती-सोती कोई..

मेरी मंज़िल थी, के थी कोई किनारा वो..

जो भी थी, थी बस इश्क़ प्यार और वो..


इश्क़ का किस्सा बतलाते है,

आप ज़रा सा नज़दीक आते है..

वो रूह का एक तार थी,

जिन्दगी का हिसाब थी,

मेरे दिल्लगी की किताब थी,

मेरे गालों का आब-आब थी..

थी कौनसी पहेली वो, मत पूछो..

जो भी थी, थी बस इश्क़ प्यार और वो..


प्यार के नग्मे में अक्सर उसको ढूँढा करता मैं..

ख़्वाबों की लड़ी में अक्सर उसको पिरोया करता मैं..

जी का टुकड़ा थी, के थी कोई साजिश वो..

मेरे गले से ना निकले वो अल्फाजों की कड़ी वो..

मेरे बंद अधरों की थी कोई चाबी वो..

जो भी थी, थी बस इश्क़ प्यार और वो..



वो..

उसका उल्लेख थोड़ा छोटा है..

हमारी मुलाकात ही की तरह..

वो आई थोड़ा शर्मा के..

मोरनी की तरह..

मेरे घुटने खुद-ब-खुद झुक गए..

जैसे मेरे बस में नहीं..

और अगले ही पल, कर बैठा मैं इश्क़ की बात कोई..

इज़हार तो ठुकरा दिया उसने..

किसी पत्थर की तरह..

इंतज़ार में अब तक बैठा हू, उसी तरह..

हाथो में अंगुठी लिए, उसके नाम की..

बात शायद नहीं की थी मैंने उसके काम की..

अब जो हुआ सो हुआ.. टाल नहीं सकता हूँ..

अनहोनी थी, के थी कोई..

जो भी थी, थी बस इश्क़ प्यार और वो..


By Omkar Dadhich




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