इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है।
- Hashtag Kalakar
- Dec 31, 2024
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By Surjeet Prajapati
इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है
इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है,
क्या पूर्ण प्रलय की सोंच बनी, जो परीक्षण बहुत जरूरी है।
विष्फोटक की मार कर २हे, वसुधा उन्हें झेलती है,
आग धधकती सीने में ज्वाला सैलाब रेलते हैं,
मानव सीमाएँ पार करे, अग्नि के प्रहार करे,
वसुधा न अन्न उगलती है, पशु भूखे-प्यासे भरते हैं,
तब भी आप सभी देशों की, अभिलाषा न पूरी है,
इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है,
क्या पूर्ण प्रलय की सोंच बनी, जो परीक्षण बहुत जरूरी है।
सुन्दर वन्य जीव जन्तु भी, इस दिव्य धरा पर रहते हैं,
तुमने उनसे उनका सुन्दर, बना घरौंदा छीन लिया,
वसुधा – लसुन्धरा का वैभव, तुमने है छीन लिया,
इसीलिये प्रकृति ने सबको, सैलाबों में लील लिया,
यह रोने की बात नहीं, वसुधा भी दर्द झेलती है,
इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है,
क्या पूर्ण प्रलय की सोंच बनी, जो परीक्षण बहुत जरूरी है।
साम, दाम, दण्ड, भेद नीति से, अपना राज्य चलाते हो.
वैभव भरी वसुन्धरा को तुम, तिल- तिल कर तड़पाते हो,
आग बरसती वसुधा पर, जब परमाणु बम चलाते हो,
सृष्टि का होता विनाश सब काल के मुख में जाते हैं,
सम्पूर्ण नष्ट हो जायेगा, बस कुछ वर्षों की देरी है।
इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है,
क्या पूर्ण प्रलय की सोंच बनी, जो परीक्षण बहुत जरूरी है।
एक दूसरे को प्रतिद्वंदी, सब के सब देश समझते हैं,
शस्त्रास्त्रों का प्रयोग एक दूजे पर करते हैं,
शांति नहीं स्थापित करते आपस में लड़ते रहते हैं,
वसुधा को कितना दर्द हुआ, ये सब क्यों नहीं समझते हैं,
अब भी शस्त्रास्त्र बनाने की जाने क्यों होड़ जरूरी है,
इतना विनाश हो चुका फिर भी, चेतना अभी अधूरी है,
क्या पूर्ण प्रलय की सोच बनी, जो परीक्षण बहुत जरूरी है।
प्रक्षेपास्त्र अग्न्यास्त्र की मारक क्षमता देखी जाती है,
धरती का दर्द नहीं दिखता, जो हर दम रोती जाती है,
जो रोते-रोते थककर बस अंगारे बरसाती है,
इन अंगारों की चकाचौंध में सब कुछ ही खो जाता है,
इस सुंदर सी दुनियां के वीराने बन जाते हैं,
समझ नहीं आता ये सब फिर भी क्यों बहुत जरूरी है,
इतना विनाश हो चुका फिर भी चेतना अभी अधूरी है,
क्या पूर्ण प्रलय की सोंच बनी जो परीक्षण वहुत जरूरी है।
By Surjeet Prajapati

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