इंसान हूँ मैं !
- Hashtag Kalakar
- Oct 24
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By Shatakshi Parashar
अपने कर्मों से ख़ास,
शायद अपने शब्दों से आम हूँ मैं।
गलतियाँ मेरा स्वभाव से सीखना मेरी चाह से जीत का गुलाम हूँ मैं।
मैं मिलता नहीं सहसा
इस जहान की भीड़ में।
रुको, सोचो, स्वयं भेद करो
क्योंकि तुकबंदी से हैवान हूँ मैं।
हाँ, मैं ख़ुदा नहीं,
कलियुग में सिर्फ़ एक इंसान हूँ मैं।
तेरे उस कर्म में ज़िंदा हूँ,
जो तेरे बुरे वक्त में काम आएगा।
तेरे उस ईश में ज़िंदा हूँ,
जो भटकी राह में तुझे राह दिखाएगा।
चोट भी ज़रूर लगेगी गहरी,
पर तू चलना सीख जाएगा।
अभी ज़िंदा हूँ तेरे उस ज़मीर में,
जो रोज़ मरता है यहाँ तिल-तिल।
अडिग है फिर भी अपने कर्म पर,
ना इसके इरादे कोई डिगा पाएगा।
कि इसी खूबी से ही तो जैसे भगवान हूँ मैं,
फिर भी मैं ख़ुदा नहीं
कलियुग में सिर्फ़ एक इंसान हूँ मैं।
अभी शेष हूँ, विशेष हूँ,
कि विलुप्त नहीं हुआ अभी।
यहीं क़ैद हूँ तुझमें,
अरे! ढूंढ तो सही तू मुझको ख़ुद में कहीं।
कोने में तो कोने में सही,
मगर बचा ले मुझे,
कि अंत की कगार पर हूँ मैं।
त्रुटियों से परिपूर्ण हूँ,
फिर भी अपनी इच्छाओं पर अर्धविराम हूँ मैं।
लेकिन मैं ख़ुदा नहीं
कलियुग में सिर्फ़ एक इंसान हूँ मैं।
By Shatakshi Parashar

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