आस्था
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आस्था

By Monika Sha


बहुत दिनों बाद, आस्था घर से बाहर निकली है। इतने दिनों से वह अपने घर के अंदर रहकर अपनी नौकरी की परीक्षा के लिए पढ़ रही थी। बचपन से ही उसे अपने पढ़ाई से बहुत प्यार है। जब भी वक्त मिलता कोई ना कोई किताब लेकर बैठ जाती थी। भीड़ में भी उसे पढ़ने की आदत है, चाहे जितना भी भीड़ हो वह पढ़ लेती हैं। आस्था दिखने में जितनी कमजोर है अंदर से उतनी ही मजबूत है। अगर वह कुछ करने की ठान ले तो उसे कर के ही दम लेती हैं। उसे सजना सँवरना बिल्कुल पसंद नहीं है और शायद आता ही ना हो।



उसे अपनी पढ़ाई से जितना प्यार है उतना अपने परिवार वालों से भी है। वह उन्हें दुख पहुंँचाना नहीं चाहती हैं।


दोपहर का समय है । सूरज की रोशनी इस तरह बिखरी पड़ी है मानो कोई प्यार लुटा रहा हो। और सर्दी के मौसम में यह और भी प्यारी लगने लगती है। पढ़ाई से थोड़ा छुटकारा पाने के लिए वह मैदान की तरफ चल दी। वहां पर बैठने की व्यवस्था भी किया गया है। अक्सर लोग शाम को टहलने यहां आते हैं। दोपहर के समय यहां शांति होती हैं। आस्था भी इसी शांति को खोजते हुए मैदान पहुंच गई। जहां कोई ना हो सिर्फ वह और उसका संसार हो। जब वह मैदान पहुंची तो सबसे पहले वो एक बेंच पर बैठ गई और देखा कि एक नन्हा सा बालक अपनी मांँ के साथ स्कूल से वापस घर जा रहा था। उस बच्चे के चेहरे पर मुस्कान देखकर आस्था के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी। उसे देखकर आस्था को अपने स्कूल के दिनों की याद आने लगी थी। जब वह भी पहली बार स्कूल गई थी । उस दिन कितना कुछ हुआ था। उसे एक नई दुनिया मिली थी। हां, शुरुआती दिनों में बहुत रोती थी स्कूल ना जाने के लिए पर धीरे- धीरे उससे अपना विद्यालय अच्छा लगने लगा था।


एक दिन मूसलाधार बारिश होने के कारण आस्था के स्कूल वाले ने स्कूल को कई दिनों के लिए बंद कर दिया। इधर आस्था स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी। उसकी मां ने उसे समझाते हुए कहा, ’बेटा कल तेज बारिश होने के कारण और भयंकर तूफान आने की आशंका की वजह से तुम्हारे स्कूल को कई दिनों के लिए बंद किया गया है।’


तब आस्था ने थोड़ा सा उदास होकर कहा, ’तुम्हें किसने कहा की मेरा स्कूल बंद है?’


’तुम्हारे कक्षा अध्यापक जी का फोन आया था। उन्होंने ही बताया हमें।’उसकी मां ने उत्तर दिया।


आस्था बहुत जिद्दी थी और उसकी मां यह बात अच्छी तरह जानती थी कि जब तक आस्था अपनी आंखों से देख ना ले उसे इस बात का तनिक भी भरोसा ना होगा। तभी आस्था ने फिर कहा,’तुम जानती हो ना मांँ कि मैं आंखों देखी भरोसा करती हूँ।’


उसकी मां ने कहा,’ तो तुम इतनी बारिश में बाहर जाओगी यह देखने कि तुम्हारा स्कूल खुला है या कि नहीं। ’


आस्था ने उसी भरोसे के साथ कहा,’ हांँ तो जाऊंगी ना, जरूर जाऊंगी और पता करके भी आऊंगी।’


मां के रोकने पर भी वह रुकी नहीं और छतरी लेकर चल दी। जब वापस आई तब भीगी हुई मालूम पड़ी और फिर बीमार पड़ गई थी। जब उसका स्कूल खुला तब भी वह कुछ दिनों तक बीमार पड़ी रही पर अपना रट लगाए रहती थी,’ मुझे स्कूल जाना है। मेरी पढ़ाई बर्बाद हो रही है। मुझे स्कूल जाने दो।


अपने पिताजी के डाँट के कारण ही वह कुछ देर के लिए रट लगाना छोड़ देती थी।


जितना वह अपने पिता से डरती थी उतना ही अपनी मां से प्यार करती थी। कहा जाए तो, आस्था बिल्कुल अपनी मां पर गई थी। उसकी मां को भी पढ़ने का बहुत शौक था। पर उसकी मां पढ़ नहीं पाई थी। बस उनका सपना यही था कि वह अपनी बेटी आस्था को खूब पढ़ाए। और यही आस्था का भी सपना है।


उसे अपने पिता से भी प्यार है पर उतना नहीं जितना अपनी माँ से है।उसके पिता थोड़े से रूढ़िवादी है।जब आस्था ने बारहवीं कक्षा पास कर ली थी तब उसके पिता ने उसे कॉलेज जाने के लिए हामी भरी ताकि वह समाज को यह दिखा सकें कि वे कितने उच्च ख्यालात के व्यक्ति हैं। क्योंकि समाज मे लड़कियों को सिर्फ बारहवी कक्षा तक ही पढ़ाया जाता है। पिता का हामी पा कर आस्था कितनी खुश हुई थी। वो मन ही मन अपने को कोसती थी कि उसने अपने पिता को कितना गलत समझा था।पर उसने अपने पिता का असली चेहरा तब देखा जब वह एम. ए के दूसरी साल में थी।आस्था के पिता जी अब हर जगह उसकी शादी की बात चलाने लगे थे। उसकी माँ और छोटे भाई के कारण बात कुछ समय के लिए टल जाती थी।आस्था कभी शादी करने के बारे में सोची ही नहीं थी।वह शादी करना ही नहीं चाहती थी। उस में यह साहस भी नहीं है कि ये सब बातें अपने पिता जी से कह पाए।


आस्था को अपने परिवार में सबसे अच्छा उसे अपना छोटा भाई लगता है। जिसका नाम अर्जुन हैं। एक वही है जो आस्था की हर बात को सुनता और समझता है। जितना प्यार आस्था को अपने भाई से है उतना ही अर्जुन को अपनी बड़ी बहन आस्था से हैं। जब आस्था पाँच साल की थी तब अर्जुन का जन्म हुआ था ।अपने छोटे भाई को पाकर आस्था बहुत खुश हुई थी।बचपन से ही आस्था और अर्जुन हर काम साथ में करते थे।जब कभी, आस्था उससे रूठ जाती थी तो अर्जुन उसे मनाने की पूरी कोशिश करता था।हर भाई-बहन की तरह ये दोनो भी झगड़ते रहते हैं। पर ज्यादा देर तक एक - दूसरे नाराज नहीं रह पाते है।


जब आस्था के पिता जी उसकी शादी की बात चला रहे थे तब आस्था को यह देख कर रोना आता था। और वह पूरे दिन अपने कमरे में रोती रहती थी ।एक दिन इसी तरह वह अपने कमरे में बैठी रो रही थी कि तभी उसका छोटा भाई उसके कमरे में आया और उसे रोते देखकर उसे मनाने लग गया।अर्जुन उसे चुप कराते हुए कहा, 'दी तुम तो ऐसे रो रही हो जैसे मैंने ही तुम्हारी शादी की बात चलाई है।’


आस्था ने रोते हुए कहा,‘ पर बात तो चल रही है ना और इसी तरह चलती रही तो विदा होने मे वक्त नहीं लगेगा।’


अर्जुन ने कहा,’पर हम तुम्हें अभी थोड़े ही विदा कर रहे है जो इतनी रो रही हो।’


आस्था ने कहा,’ अभी नहीं कर रहे हो पर कभी तो कर ही दोगे ना।जब पापा को शादी ही करानी थी तो इतना पढ़ाया ही क्यों ? बारहवी कक्षा के बाद ही शादी करवा देते। मुझे किसी से शादी नहीं करनी है। मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ।"




अर्जुन ने कहा,’ तो पापा को कह क्यूंँ नहीं देती हो कि तुम्हें शादी करनी ही नही है। एक तो कहती भी नहीं हो और ऊपर से आँसू भी बहाती हो।’


आस्था ने कहा, "हिम्मत होती तो कह देती और पापा को तुम जानते ही हो । उन्हें कहूँ कि मैं नौकरी करना चाहती हूँ तब तो वह सचमुच मेरी शादी करवा देंगे। उन्हें तो यही लगता है कि बिना रिश्वत का कोई काम नहीं हो सकता।’


अर्जुन ने कहा,’ अब क्या कर सकते है। दी, चुप हो जाइए ना। "


आस्था रोते हुए कहती है,’ पापा सिर्फ मेरी ही शादी की बात क्यों करते हैं, तुम्हारी क्यों नहीं करते हैं?’


बहुत हो चुका था । अर्जुन अब किसी भी तरह से आस्था को हँसाना चाहता था। इसलिए आस्था को हँसाने के लिए उसने नाटकीय अंदाज में कहा, ’वही तो दी, मैं तो कब से तैयार हूँ तुम्हारे लिए इस घर मे भाभी लाने के लिए पर मेरी शादी की बात तो कोई करता ही नहीं । यह तो बड़ी नाइन्साफ़ी है। पर एक बात कह देता हूँ दी कि मैं बिल्कुल तुम्हारी पसंद की लड़की से शादी करुँगा। इसलिए अभी से खोजना शुरू कर दो | हांँ ।'


अर्जुन की यह बात सुनकर आस्था अपनी हँसी को रोक नहीं पाई। और दोनो कुछ देर तक हँसते रहे फिर आस्था ने गंभीर होकर अर्जुन से पूछा, 'सच बताना, अर्जुन क्या तू भी यही चाहता है कि मैं शादी करके यहाँ से चली जाऊँ ?’


अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा, ’ बिल्कुल भी नहीं दी। मैं तो चाहता हूँ कि आप ज़िंदगी भर मेरे साथ रहें। आप चिंता मत करो दी जब तक आप नहीं चाहोगी हम आपकी शादी नहीं होने देंगे।’


यह बात अपने भाई के मुंह से सुनकर आस्था को बहुत खुशी हुई। आज वह भगवान को धन्यवाद दे रही थी कि उसे इतना अच्छा भाई दिया है, जो औरो के भाइयों की तरह बिल्कुल भी नहीं है। आज उसे अपने भाई पर गर्व हो रहा है।


ख्यालो मे डूबी हुई आस्था को अचानक ऐसा लगा कि कोई उसके कंधो पर हाथ रखा है । जब वह पीछे मुड़कर देखी तो अर्जुन खड़ा था । अर्जुन ने कहा, ’कब से पुकार रहा हूँ, आप सुन ही नही रही थी। आखिर कहाँ खो गई थी आप ?’


आस्था ने मुस्कुराते हुए कहा,’ बस अपनी दुनिया मे खो गई थी ।’


अर्जुन ने मज़ाक में कहा, ’आखिर कैसी दुनिया मे जाती हो आप, मुझे भी तो ले चलो |’


आस्था ने उत्तर दिया,’तू ही तो था उस दुनिया में और कौन हो सकता है ।"


अर्जुन जानता था आस्था की दुनिया के बार में। उसने आस्था के बगल में बैठते हुए कहा, ’समझ गया आप फिर से हमारी बचपन की दुनिया में चली गई थी।"


आस्था ने शून्य भाव से कहा,’वक्त कितनी जल्दी बीत जाता है । और इस गुजरते वक्त में कितना कुछ हो जाता है। कितनी जल्दी हमारा बचपन बीत गया और हम बड़े हो गये । बहुत याद आता है वो सब ...लड़ना, झगड़ना , रोना और.....


अर्जुन बीच में ही बोल पड़ता है,’बस बस दी, अब दुबारा उस दुनिया में मत जाओ ! घर भी चलना है वरना हम दोनो को खूब डांट पड़नी है पिता जी से।इसलिए घर चलो। माँ ने भी मुझे तुम्हे जल्दी घर ले आने के लिए कहा हैं।


आस्था अचानक अपने आस– पास देखती है और कहती हैं, ’शाम हो गई और मुझे तो पता भी नहीं चला | अब जल्दी से घर चलते है । मुझे बहुत कुछ पढ़ना है | चलो |’


फिर आस्था और अर्जुन दोनों एक-दूसरे से बाते करते हुए घर की ओर चल दिये।


By Monika Sha




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