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आसार/Possibilities

By Vidit Panchal


एक शाम तुम्हारे कमरे में

लेटे रहकर बिस्तर पर

देखा खिड़की से बाहर

बारिश में धुली सड़कों को,

और एक नज़र तुम पर रख दी।



जाना,

मुझे कितना मोह है आख़िर

इन सड़कों से, और तुमसे भी

मैं मीलों-मील चल सकता हूँ

इन सड़कों पर, और तुमपर भी;

गोयाकि ये सड़कें और तुम

ले चलोगे मुझको उस घर तक

जिसकी छत से देख सकूँ मैं

ढलता सूरज,और कुछ पंछी

जो ऐसी ही एक शाम के बाद

लौट रहे होंगे घर को।


मैंने एक नज़र में देखा है

एक सफ़र तुम्हारे चेहरे पर

जिसमें मुझको मिलते हैं,

मंज़िल के आसार बहुत।


By Vidit Panchal



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