आदर्श और समाज
- Hashtag Kalakar
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By Umang Agarwal
ज़िंदगी की राह में
ऐसे मोड़ भी आते हैं कभी
इंसान बेबस हो जाता है
इंसान के आगे भी कभी
इंसानियत बन जाती है बोझ
उसके लिए भी कभी
ज़िंदगी हो जाती है बोझिल
जीता है वो, मगर फिर भी।
ज़िंदगी की राह में
ऐसे मोड़ भी आते हैं कभी
दिल जब रोता है मगर
आँखें आँसू रोक लेती हैं
मुस्कान भी जब
ग़म की एक तस्वीर लगती है।
ज़िंदगी की राह में
ऐसे मोड़ भी आते हैं कभी
पग-पग पर चुभते हैं काँटे
तो आदर्श भी सनक लगते हैं
आदर्शवादी होने पर हमारे
लोग हमें पागल समझते हैं।
ज़िंदगी की राह में
ऐसे मोड़ भी आते हैं कभी
सपने ही अपने लगते हैं
अपने भी बेगाने से लगते हैं
सपनों की इस भीड़ में मगर
खो जाते हैं हम कभी-कभी।
ज़िंदगी की राह में
ऐसे मोड़ भी आते हैं कभी।
By Umang Agarwal

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