आज़ाद गुलाम हैं हम
- Hashtag Kalakar
- Oct 11
- 1 min read
By Prachi
मनाई आज़ादी हमने साल भर की गुलामी के बाद,
अब फिर करेंगे गुलामी आज़ादी मनाने के बाद।
ग़ुलाम हैं हम, हमारी झूठी शान के,
सुख-सुविधा और आराम के,
करते हैं हम असुरक्षा की भावना, डर, अपेक्षाओं की गुलामी।
सांप्रदायिक सोच और अपने स्वार्थ की गुलामी,
सोशल ट्रेंड्स, फेम और परफेक्शनिज़्म की गुलामी।
अब राजनीति हमारे लिए नहीं रह गई,
हम राजनीति के होकर रह गए।
जो कोई हादसा हो जाए-
पहले दिन शोक मनाएंगे,
दूसरे दिन सड़कों पर उतर आएंगे,
तीसरे दिन थक कर बैठ जाएंगे,
चार फोटो के साथ अगले दिन अखबार में आएंगे,
फिर उसे किस्से का नाम देकर भूल जाएंगे।
ये कैसी रीत चल रही भारत में,
लोकतंत्र रह गया बस भाषण में
संविधान रह गया बस कागज में।
सच का तो न मोल रह गया,
आज़ादी रह गई इतिहास की यादों में।
हो रहा है नैतिक मूल्यों का पतन,
गिरता जा रहा है शिक्षा और लोगों की सोच का स्तर।
पर हमें क्या,
हम तो मनाएंगे अपनी प्रतिष्ठा की आजादी,
और एक ओर दबी आवाज में करेंगे गुलामी,
धुंधली उम्मीदों की,
कोई तो स्वर्ण युग लौटा लाओ-
कोई फिर से राम बुला लाओ,
कोई फिर गोविंद मना लाओ...
By Prachi

👍
Wonderful