आंसुओं की बौछार
- Hashtag Kalakar
- Sep 11
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By Agrima Bajpai
एक वक़्त था जब हम छोटे से उफ पर रो पड़ते थे,
एक वक़्त था जब हम अकेले में रहने को तरसते थे,
कभी हुआ करते थे हम भी एक खुली किताब,
हमे पढ़ कर कोई भी बता सकता था हमारे दिल का हाल।
इस बेरहम दुनिया ने हमे छलनी कर दिया,
इसलिए हमने अपने दिल को पिंजरे में दफ्न कर दिया।
कहने को तो इस दुनिया में हमारे अपने भी है,
पर हमे फिर भी नहीं पता कि हमारे अपने कौन हैं।
आंखे तो नम होती है पर हम उन्हें बहने नहीं देते,
बातें भी बहुत सी है जिन्हें अब हम कहना नहीं चाहते,
क्योंकि ये जालिम दुनिया जख्म कुरेदना जानती है उन्हें भरना नहीं,
हमारे आंसुओं को ज़हर बना हमे ही पीला दिया जायेगा और फिर पूछेंगे आपको कुछ हुआ तो नहीं।
दर्द की इतनी लत लग गई है कि खुशी भी अब बीमारी लगती है,
कोई नहीं है हमारा, ये बात हमे बहुत चुभती है।
मरना तो चाहते है हम पर....... मर गए और न मिला चैन तो कहा जायेंगे?
इसलिए तिल तिल मर रहे हैं कि शायद कभी वो हमे बचाएंगे,
इक वारी फिर से जीना सिखाएंगे।
By Agrima Bajpai

very beautifully expressed 💗
The pain with the poet has written this, I could feel it. 🥺
Superb work literally ✨
👏👏
Wonderful