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अहमियत

By Guru Shivam


काव्य- परिचय

चिरकाल से ही हिन्दी अपने व्यापक अभिव्यक्ति माध्यम और साहित्य सौंदर्य के चलते युगो युगो से ही साहित्यकारों और कवियों के बीच पुष्पित-पल्लवित होती रही है। सौंदर्य श्रृंगार रस हो, चाहे वीर रस, या फिर बात हो प्रेम-प्रीत की, हिंदी हमेशा से ही प्रासंगिक रही है ।

जब जब प्रेम-प्रीत की बात आती है तो महाविद्यालय जीवन का स्मरण, हमारे मनो मस्तिष्क पर स्वतः रूप से हो ही जाता है, क्योंकि शायद यही वह स्थान है जहां हम अपने जीवन में पहली दफा प्रेम की परिभाषा सीखते हैं, और इस कड़ी में हमने अनुभव किया है कि महाविद्यालय जीवन में होने वाले प्रेम संबंधों में प्रेमी वस्तुतः दो प्रकार के होते हैं; एक वो, जिनके प्रेम प्रसंग महाविद्यालय प्रांगण तक ही सीमित रहते हैं, और दूसरे वो जिनके प्रीत संबंध निर्बाध रूप से महाविद्यालय जीवन के समाप्ति उपरांत भी चिरकाल तक अनवरत रहते हैं। महाविद्यालयी कालखंड के उपरांत भी, कितने ही वसंत बीत जाने के बाद भी, उनके प्रेम संबंधों की पवित्रता, गरिमा और गर्मजोशी यथावत बनी रहती है। ऐसे प्रेमी को हम नाम देते हैं संवेदनशील प्रेमी का ।

हमारी यह विशेष काव्य रचना एक ऐसी ही प्रेमी के प्रेम गाथा बयां करता है जिसके जिंदगी में, अपनी प्रियतमा के लिए, वही प्रेम, वही अनुराग, इश्क की वही खुशबू, प्रीत की वही सौंधी महक, वही अहमियत, आज भी बरकरार है, जिस अहमियत के साथ उसने कभी अपने प्रेम संबंधों की शुरुआत की थी और इसलिए, हमने अपनी इस रचना का शीर्षक ही रखा है अहमियत।

तो प्रस्तुत है प्रेम काव्य..



अहमियत

1.

मेरे सिरहाने रखी तेरी वो पाजेब,

जिसकी लोरी-सी छनक सुनकर हर दिन नींदें लेता हूँ।

तेरी G नाम वाली वो मेरी अँगूठी,

जो किसी वेलेंटाइन, तूने मुझे दी,

आज भी हर दिन बिस्तर छोडने से पहले, उसे चूम लेता हूँ।

2.

मेरे पर्स में रखी, तेरी वो तस्वीर,

जिसे देखकर ही मेरे हर दिन की शुरूआत होती है

कॉलेज वाले बैग में रखे, तेरे वो दुपट्टे,

जिसे अंतिम मुलाकात पर माँग लिया था तुझसे,

आज भी मौजूद उसमें वो मोगरे की खुशबू,

मुझे हरपल तेरे करीब होने का एहसास कराती हैं।

3.

और भी न जाने कितनी ही यादें हैं न जाने कितनी मुलाकातें,

जिन्हें बड़े ही करीने से सजा रखा है मैनें, मेरे दिल के क़रीब।

तू संग न सही, तेरे ख्वाबों- ख्यालों संग ही वक्त गुजार लेता हूँ,

मैं बेचारा, इश्क का मरीज !

4.

अक्सर गफलत में तेरी शिकायत रहती थी;

आखिर तूने, हमारे इश्क के लिए किया ही क्या है ?

अफसोस मुझे भी है मुकम्मल,

काश! कभी मैं भी जाहिर कर पाता,

अपने नर्म स्पर्श से तुझे जता पता कि;

मेरी ज़िन्दगी में तेरी अहमियत क्या है ।

मेरी ज़िन्दगी में तेरी अहमियत क्या है ।


By Guru Shivam



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