अवसाद: कलंक नहीं, एक सच्चाई
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Preetika Gupta
अंधेरे कोने में सिमटी, एक परछाई सी है,
ये मन की बीमारी है, ये कोई रुसवाई नहीं है।
ना समझो इसे पागलपन, ना कहो इसे कमज़ोरी,
ये अवसाद है दोस्तों, एक गहरी उदासी है।
भीतर ही भीतर घुलता, एक अथाह सा दर्द है,
बाहर से शांत दिखे पर, अंदर एक सर्द है।
वो मुस्कुराता चेहरा भी, अक्सर झूठा होता है,
जो रातों को जगाता, वो गहरा सन्नाटा होता है।
नहीं चाहिए सहानुभूति, न चाहिए कोई दया,
बस थोड़ी समझ चाहिए, और थोड़ी सी जगह।
सुनो उसकी खामोशी को, जो लफ्ज़ों में नहीं है,
समझो उसकी बेचैनी को, जो आँखों में भरी है।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, या जाओ किसी डॉक्टर के पास,
दवा और प्रार्थना दोनों, देती है मन को आस।
अकेला छोड़ना उसे, सबसे बड़ी गलती है,
हाथ थाम लो उसका, जिसकी रूह सिमटती है।
समाज के ठेकेदारों, बदलो अपनी ये सोच,
हर दर्द की अपनी वजह, हर मर्ज की अपनी पहुँच।
अवसाद कोई कलंक नहीं, ये एक मानवीय पीड़ा है,
इलाज से ठीक होता है, ये कोई झूठी क्रीड़ा नहीं है।
तो आओ हम सब मिलकर, एक नया सवेरा लाएँ,
अवसाद को पागलपन नहीं, एक बीमारी समझाएँ।
हर उस टूटे दिल को, फिर से जीना सिखाएँ,
क्योंकि मन की ये उदासी, सिर्फ समझ से मिटाएँ।
मन की वो कोठरी, और उम्मीद की किरण: कभी-कभी ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आता है, जब सब कुछ होते हुए भी, कुछ खाली-सा महसूस होता है। जैसे एक अँधेरी कोठरी में बंद हो गए हों, जहाँ रोशनी की एक किरण भी नहीं पहुँचती। साँस लेना भी भारी लगने लगता है, और मन करता है कि बस यहीं रुक जाएँ। एक ऐसा अदृश्य बोझ जो कंधों पर आकर बैठ जाता है और हमें आगे बढ़ने से रोकता है।
लेकिन याद रखना, ये कोठरी स्थायी नहीं है। इसकी दीवारें भले ही मज़बूत दिखें, पर इन्हें तोड़ा जा सकता है। तुम्हें बस एक आवाज़ लगानी है, एक हाथ बढ़ाना है। शायद किसी दोस्त को, किसी परिवार वाले को, या फिर किसी ऐसे इंसान को जो तुम्हारी बात सुन सके। ये बीमारी है, कोई कमज़ोरी नहीं। और हर बीमारी का इलाज होता है। हिम्मत रखो, क्योंकि तुम अकेले नहीं हो। इस अँधेरी कोठरी से बाहर निकलने का रास्ता है, और वो रास्ता तुम्हारे अंदर की उस उम्मीद से शुरू होता है जो कहती है, "मैं ठीक हो जाऊँगा।"
रोशनी का इंतज़ार मत करो, खुद रोशनी बनो।
By Preetika Gupta

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