अब हम मिलते नहीं हैं....
- Hashtag Kalakar
- Dec 11
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By Disha Thakur
हाँ…..अब हम मिलते नहीं हैं,
पर ये हवा जो मेरे गालों को सहलाकर,
और बालों को इतने प्यार से उलझाकर गुज़री है
उसने उसे भी तो छुआ होगा।
ये बारिश जो मुझको भीगा कर गई है
इसने उसे भी तो भिगोया होगा।
ये चाँद जो मुझे यहाँ से इतना खूबसूरत लग रहा है,
उसने इसकी तारीफ मे दो लफ्ज तो जरूर कहा होगा।
ये जो हमारी यादों की गलियाँ से
मैं हर रोज़ गुज़रती हूँ
चलो...रोज़ ना सही,
पर वो कभी तो गुज़रता होगा।
में जब भी जाती हूँ वहाँ उसकी खूशबू पाती हूँ
उसकी गली के लोग कहते हैं
की वो बहुत मसरूफ हैं अपने काम में
अब वो उन गलियों से क्या
घर से निकलता भी नही हैं
चलो...
अब मैं मान ही लेति हूँ,
उसे मैं अब याद नहीं
पर उस ख़ुशबू को कैसे झुठलाऊँ
जो कहती है
वो अभी-अभी इन्हीं गलियों से
टहलता हुआ गुज़रा है।
हम उन्हीं गलियों में टहलते हैं,
फिर भी एक-दूसरे से मिलते नहीं हैं
हाँ... माना कि अब हम मिलते नहीं हैं
वो सुकून जो उससे मिलने के बाद आता था,
अब आता नहीं हैं
वो ख़ुशबू जो मेरे बालों से
उसके हाथों की आती थी
अब आती नही हैं
हाँ... क्योंकि अब हम मिलते नहीं हैं।
अब हम मिलते नहीं हैं।
By Disha Thakur

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