अनाछी
- Hashtag Kalakar
- Mar 3, 2023
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By Deeksha Kohli
कितनी बार कहा है तेरी मन मानी नहीं चलेगी , ये घर मेरा है और तुझे मेरे हिसाब से चलना होगा , लड़की है ज्यादा उड़ने की कोशिश मत कर समझी…….
(रोते रोते सिसकियां लेती आवाज़ें आह्ह्हह्ह्ह्ह अह्ह्ह्हह्ह हह्ह्ह्हह्ह्ह्ह )
चीख चीख कर ज़ोर से डांटने फटकारने का सिलसिला यूं ही चलता रहा और दरवाजे के बाहर तक आ रही आवाज़ें रात 11 बजे तक शांत हुई और बत्ती बुझ गयी।
शेर सिंह तो अपनी अक्कड़ और रौब दिखा कर सो गए लेकिन सपनों की चमक की रौशनी को अंधेरे में तब्दील होने के बाद कोई कैसे सो सकता था , तो निराशा में डूबी अनाछी ही थी जो जागती रही और आंसू बहते रहे।
अनाछी ....... पहली बार ऐसा नाम सुना था ,इतना अनोखा की मतलब समझने के लिए इंटरनेट में खोजा। गूगल में मतलब भी जानने की कोशिश की पर कोई लाभ नहीं, दरअसल अनचाही को अनाछी और अनाछी को अनचाही मान लिया गया था और वही नाम भीरख दिया गया । दरअसल पैदा होते ही इस नन्ही सी बच्ची ने मां को खो दिया था, आया कमला के साथ घर में प्रवेश किया, तब से वो आया ही अनाछी की आइमा थी जो प्यार तो कर सकती थी पर उसके हक़ के लिए लड़ाई नहीं कर सकती थी। करती भी किस से आखिर शेर सिंह के लिए वो महज़ एक नौकरानी की हैसियत ही तो रखती थी।
दरअसल कमला जब 20 साल की थी तब शेर सिंह की मां कर्मावती कमला को अपने यहां काम करने ले आई थी और बेटी के जैसे प्यार करती थी , कर्मावती के घर बेटी नहीं थी बस तीन बेटे जिसमें से दो विदेश चले गए और विलायत में शादी कर वहीँ के हो कर रह गए। दोनों कभी मुड़ कर वापिस नहीं आये और यहां बस शेर सिंह रह गए , पिता के देहांत के बाद सारा बिजनेस शेर सिंह ने ही संभाला। कर्मावती ने शेरसिंह की शादी भी अपनी सहेली की बेटी सरला से करवा दी। सरला का स्वभाव बिल्कुल अपने नाम जैसा। शेर सिंह अक्सर उस पर चीख देता पर सरला कुछ न कहती वो मन में रख कर सारा गुस्सा पी जाती , न जाने कितनी बार दुत्कारी जाती पर फिर भी मुस्कुराती , शेर सिंह ने उसे साफ़ साफ़ कह दिया था की उसे बेटा चाहिए और गलती से भी बेटी का जन्म न हो जाए , सरला इतनी सहम गयी थी की डर के कारण दो बार गर्भपात भी हो गया, उस में सिंह ने साड़ी गलती सरला पर दाल दी। तीसरी बार जब वो माँ बनी तो शुरुआत में गर्भ धारण करने का पता नहीं चला और जब पता चला की वो गर्भवती है तो उस दौरान शेर सिंह बिजनेस के चलते कुछ महीने घर से बाहर था। सरला सास के साथ बड़े अच्छे गुज़र रहे थे। जब वह वापिस आया तो सरला का आठवां महीना चल रहा था, उम्र के चलते सास की बीमारी बढ़ती जा रही थी और पति के ताने की बेटा न हुआ तो देखना , सरला को अंदर से खोखला करते जा रहे थे । सास की बीमारी उसे और कमज़ोर बना रही थी क्यों की एक सास ही तो थी जो उसे मां की तरह समझती, ऐसे में सास का एक दिन अचानक दुनिया को छोड़ कर चले जाने से वो बिलकुल टूट गयी और एक दिन दर्द के कारण बेहोश हो गयी। कमला उसे असपताल ले गयी। सरला का रक्तप्रवाह इतना हो चुका था की उसकी जान पर बन आई लेकिन फिर भी उसने बच्चे के जन्म तक हिम्मत दिखाई और बेटी के चेहरे को देखकर पुचकारा और दुनिया को अलविदा कह दिया । शेर सिंह ये बात हज़म नहीं कर पाए की उनकी एक ही औलाद और वो भी बेटी है। वो उसे अस्पताल छोड़ आए और बस एक कमला ही थी जिसने हिम्मत दिखाई और उस बच्ची को घर लाने और उसे पालने की हिम्मत जुटाई वो भी शेर सिंह के घर पर । उस बच्ची के लिए कमला ने कभी शादी नहीं की। कमला का बलिदान ही था की वो अनाछी को पढ़ा लिखा पाई। आज अनाछी की 12 वी की परीक्षा का रिजल्ट आया था जिसमें वो फर्स्ट आई थी , तमाम अख़बार वाले उसकी फोटो खींच कर उसका इंटरव्यू लेकर गए और टीवी चैनल ने भी उसके घर आकर इंटरव्यू लिया । रात को जब शेर सिंह घर पहुंचा तो अनाछी ने बड़ी हिम्मत कर ख़ुशी से पिता को अपने रिजल्ट की खबर सुनाई और पहली बार अपने सपने पर बात करते हुए कहा की वो पायलट बनना चाहती है और आगे बढ़ना चाहती है।
आज तक शेर सिंह ने अपनी बेटी की ज़िन्दगी में कोई रूचि नहीं दिखाई थी। यहां तक की वो घर पर ज्यादा नहीं रहता था। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की अनाछी के जीवन में क्या चल रहा है या उसे किस चीज़ की जरूरत है। उसके लिए अनाछी बोझ से ज्यादा कुछ नहीं थी जिसका भुगतान वो कमला को पगार के साथ कुछ खर्चे के पैसों से करता था । इतने साल में आजतक अनाछी के सुख दुःख में वो कभी नहीं था, लेकिन आज जब उसने टीवी पर अपनी बेटी को बोलते हुए सुना तो वो गुस्से से भर गया , उसके अहंकार को ठेस पहुंची और उस पर नमक मिर्च का काम किया लोगों की बधाई ने। ऐसा निष्ठुर व्यक्ति जो खुश होने के बजाए गुस्से से आग बबूला हो रहा था , जिसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की बेटियां आगे बढ़ सकतीं है वो जब ये देख रहा था तो उस से बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उस पर पहली बार अनाछी का अपने सपनों को उड़ान भरने की बात शेर सिंह के आगे करना उल्टा पड़ गया। शेर सिंह ने कमला को भी खूब खरी सुनाई और उसे हद में रहने को तो कहा साथ ही खुश होने के बजाए अनाछी के सारे सपने चूर-चूर कर दिए उसे ये कहकर की तू लड़की है तुझे कोई हक नहीं पढ़ने का, सपने देखने का और आगे बढ़ने का, और तो और उसका घर से निकलना भी बंद कर दिया। ये सब कहकर शेर सिंह तो सो गया लेकिन अनाछी की तो दुनिया ही बिखर गयी थी।
ख़ुशी के माहौल में मातम पसर गया था , वो अपने आंसू रोक नहीं पा रही थी की उसकी आइमा उसके पास आई , अनाछी कमला के गले लग के रोने लगी। कमला ने अनाछी को खूब हिम्मत दी और कहा की वो फ़िक्र न करे उसके सपने जरूर पूरे होंगे। रात घनी और काली हो गयी अनाछी जाने कब आइमा की गोद में नींद की आगोश में चली गयी। इधर कमला साड़ी रात यह सोचत रही की उसने कह तो दिया था की अनाछी के सारे सपने पूरे होंगे पर ये संभव कैसे हो पाएगा ये तो वो खुद भी नहीं जानती थी । कुछ दिन बीत गए, शेर सिंह बिजनेस मीटिंग के लिए बाहर गया , ये सही समय था घर से निकलने का । कमला ने अनाछी को घर से जाने को बोल दिया और अपने जमा किये हुए सारे पैसे दे दिए ताकि वो आगे की पढ़ाई कर सके ,अनाछी भी तय कर चुकी थी की अब उसे मंज़िल तक तो हर कीमत पर पहुंचना ही है लेकिन वो अपनी आइमा को मुसीबत में नहीं डाल सकती थी तो उसने कमला को साथ चलने को कहा। कमला ना नहीं कर पाई और फिर दोनों ने दहलीज़ पार कर ही ली और शेर सिंह के नाम एक खत छोड़ दिया जिसमें लिखा था की ....... आपको बेटी नहीं चाहिए थी समझ लीजिये बेटी नहीं रही , पर फिर भी उम्मीद करूंगी की एक दिन आप भी गर्व करेंगें मुझे अपनी बेटी कहने पर।
नम आखें थी पर अनाछी के हौसलें बुलंद थे और इरादे मज़बूत। एरोनॉटिकल इंजिनीरिंग और पायलट ट्रेनिंग आसान चीज़ नहीं थी। घर से निकल कर पहले रहने का इंतज़ाम करना था तो कालेज के पास एक कमरे का मकान किराए पर ले लिया। बेशक 12 वी टॉपर को स्कॉलरशिप मिली थी पर खर्चा फिर भी कम नहीं था , ऐसे में कमला ने तय किया की जितनी देर अनाछी कालेज में रहेगी वो लोगों के घर खाना बनाने का काम कर दिया करेगी ताकि कुछ गुज़ारे लायक आमदनी हो जाए। दो महीने बीत गए ,अनाछी को उसकी मंज़िल दिखने लगी और वो जम कर मेहनत रही थी। कमला को खाना बनाने के लिए खूब घर मिलने लगे , इतने की अब कमला टिफ़िन चलाने लगी। उधर शेर सिंह ने वापिस आकर जब खत पड़ा तो अपना आपा खो दिया, बदनामी के डर से वो पुलिस के पास रिपोर्ट लिखवाने नहीं गया और न ही उसे ढूंढने के कुछ प्रयास किये। उसके अहंकार को इतनी ठेस पहुंची थी की कमला और अनाछी उनके साथ ऐसा करेंगे उसने सोचा भी नहीं था। ये कठोरता की सीमा थी। वक़्त बीतता गया।
5 साल बीत गए। कमला अपनी मेहनत से एक रेस्टोरेंट की मालकिन बन गयी तो अनाछी ने अपने सपनों की उड़ान भरना शुरू कर दिया। सबसे ज्यादा फ्लाइंग का रिकॉर्ड बनाकर वो आज एक सफल पायलट बन चुकी थी और उसे बड़ी एयरलाइन कंपनी में पायलट की नौकरी मिल गयी थी। वहीं इतने साल में शेर सिंह अपने व्यापार को बढ़ा रहा था , उसने अनाछी और कमला से कभी बात नहीं की और न ही उन्हें ढूंढने की कोशिश की। शेर सिंह को विदेश जाने का मौका मिला। अपने भाइयों के विदेश जाने से उनको बहुत जलन हुई थी जो वो कभी बयां नहीं कर पाया था। उस पर माता पिता और बिजनेस की ज़िम्मेदारी आ गयी थी जिसे वो छोड़ नहीं पाया और भाइयों के ज़िम्मेदारी को छोड़ जाने की टीस ने उसे मजबूर कर दिया था की वो अपने बिजनेस को इतना बढ़ा ले की वो विदेश तक पहुँच जाए इसलिए वो एक बेटे की ख्वाइश रखता था जो उसके बिजनेस में उसकी मदद करेगा, लेकिन आज उन्होंने अपना बिजनेस इतना फैला लिया था की वो विदेश तक पहुँच गया और कई कई महीने अलग अलग देशों में रहने लगा ताकि बिजनेस का और विस्तार कर सके । उधर पायलट बनने के बाद कप्तान अनाछी पिता से मिलना चाहती थी उसे लगा की शायद पिता का मन बदल गया हो तो वो अपनी आइमा के साथ पिता के घर गई । पिता तो नहीं मिले पर उसे घर के नौकर से पता चला की शेर सिंह अक्सर विदेश में ही रहते है। तो अनाछी वापिस अपने काम पर आ गयी।
6 महीने बीत गए। एक दिन शेर सिंह भारत आ रहे थे , जिस विमान से वो आ रहे थे उस विमान की कमान उनकी बेटी के हाथ में थी । शुरू में पायलट के नाम की अनाउंसमेंट हुई पर शेर सिंह ने ध्यान नहीं दिया । प्लेन ने टेक ऑफ़ किया। विमान में शेर सिंह के साथ जो महाशय बैठे थे वो बहुत परेशान नज़र आ रहे थे। एक तो विमान में पहली बार बैठे थे दूसरा उनको खबर मिली थी की उनके बेटे ने उनके सारे पैसे जुए में लगा दिए और वो कंगाल हो गए थे। वो जी भर कर लड़कों को कोस रहे थे और बड़बड़ा रहे थे की पता नहीं किस वक़्त में मैंने ऊपर वाले से बेटा मांग लिया , शेर सिंह उनकी बात गौर से सुन रहा था और उसे यकीन नहीं हो रहा था। वो बोलने लगा आपकी ही गलती होगी। बेटा होना तो किस्मत की बात है। ये सुन कर वो आदमी आग बबूला हो गया और बोलने लगा आप क्या जानो , भाई साहब आज कल लड़का लड़की सब बराबर होते है बल्कि बेटी होना तो किस्मत की बात है , सौ भाग्यों से बेटी होती है। मेरे लड़के ने तो मुझे सड़क पर ला दिया है। ये तो हम सबकी आँखों पर पर्दा पड़ गया है जो हम ऊपर वाले को कोसते हैं की बेटा क्यों नहीं दिया । इतने में विमान डगमगाने लगता है और अनाउंसमेंट होती है की खराब मौसम के कारण हम लैंड नहीं कर पा रहें है , हम तूफ़ान में घिर रहें है , इमरजेंसी के लिए ऑक्सीजन मास्क का प्रयोग कर सकते हैं , हम पूरी कोशिश कर रहें है सुरक्षित लैंडिंग की , कोई भी यात्री घबराए नहीं। इतने में विमान में हड़कंप फ़ैल जाता है लोग घबरा जाते है चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आती है।
लोगों में तनाव को बढ़ता देख अचानक कप्तान की आवाज़ सुनाई देती है। आप सभी यात्रियों को सुरक्षित पहुंचना कप्तान अनाछी की ज़िम्मेदारी है।
नमस्कार मैं इस विमान की कप्तान अनाछी बोल रहीं हूँ. आप सभी अपनी जगह पर बैठे रहें और मेरी बात ध्यान से सुनें। सब शांत हो जातें हैं।
आत्मविश्वास से गूंजती इस मौहोल में उसकी आवाज़ लोगों में आशा की किरण जगा रही थी। वो बोलती है। आज एक बात बताती हूँ , मैं एक अनचाही बेटी हूँ। .... नाम अनाछी। ... मतलब मुझे भी नहीं पता कहीं मिलेगा भी नहीं , शायद अनचाही ही रखना होगा , मेरी मां जन्म देते ही दुनिया से चल बसी , मेरी आइमा कहती है की सिर्फ मुझे ज़िंदा जन्म देने के लिए वो सांस रोके रही , मेरे पिता ने मुझे कभी अपनाया नहीं वो कहते है लड़कियों को सपने देखने का हक़ नहीं लेकिन फिर भी मैंने सपने देखे , एक आया मेरी मां बनी और मेरा ज़ज़्बा मुझे यहां ले आया।
यात्री ध्यान से सुन रहे थे उसकी आवाज़ लोगों को मजबूर की वो सब भूल जाए और उसकी बात सुनें। शेर सिंह को यकीन नहीं हो रहा था , मौत का डर और ऊपर से ये कहानी उसके दिल में हलचल मचा रही थी, और वो सोच रहा था विमान डगमगा भी इसीलिए रहा है क्यों की उसे लड़की चला रही है।
अनाछी अपने संघर्ष की कहानी सुनाती रही , और उसने सभी यात्रियों को रुला दिया। वो जानती थी की वो तूफ़ान से बाहर विमान को निकाल लेगी पर डर के आगे अपने यात्रियों को टूटने नहीं देगी। कहानी पूरी हुई , सभी यात्री चुप चाप आंसू पोंछने लगे , कोई अब तक रो रहा था , कोई कप्तान से अभी मिलना चाहता था। विमान सुरक्षित तूफ़ान से निकल गया और सेफ लैंडिंग हो गयी। प्लेन के लैंड होते ही सबने तालियां बजाई और हर कोई कह रहा था जाने ऐसी हुनरमंद बेटी किस घर में जन्मी, हर कोई उसके पिता को दुतकार भी रहा था। लैंडिंग के बाद कोई नहीं उतरा , सभी अनाछी की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसे देखना चाहते थे उस से मिलना चाहते थे और उसे शाबाशी देना चाहते थे। कप्तान अनाछी अपने केबिन से निकल कर यात्रियों के बीच आई , सब उसे गले लगाने भागते चले आए लेकिन उसकी नज़र अचानक यात्रियों के बीच बैठे शेर सिंह को देख कर रुक गयी। शेर सिंह की आँखों से आंसू बह रहे थे मानो वो सब कह रहे थे की आजतक वो कितना गलत था और ये अहसास भी उसे तूफ़ान से निकलने के बाद ही हुआ था की उसकी बेटी जिसे वो दुत्कारता रहा कितनी टैलेंटेड है। अनाछी आगे बढ़ी की अचानक उसके साथ बैठा शख्स बोल पड़ा , बेटी तू मेरे घर क्यों नहीं जन्मी। ऐसे मनहूस आदमी के घर क्यों? इतने में ये सुनकर अनाछी ने कहा वो जैसे भी है मेरे पिताजी है ,आप उनके बारे में ऐसा मत कहिये , आज मैं जो हूँ कहीं न कहीं मुझे ये एहसास है की वो मुझे कम न आंकते तो शायद मैं आज खुद को साबित करने मैदान में न उतरती। ये कहकर वो आगे बढ़ने लगी की शेर सिंह ने उसका हाथ पकड़ कर रोका और उसके आगे हाथ जोड़ लिए। पिता की ऐसी हालत उसने पहले कभी नहीं देखी थी। शेर सिंह लगातार रो रहा था। अनाछी ने आंसू पोंछे और पिता के पैर छूने चाहे तो शेर सिंह ने उसे गले लगा लिया और रोते रोते बोला मुझे गर्व है की तू मेरी बेटी है , मैं इतना अभागा था जो अपना भाग्य को पहचान न सका और फिर थी तो बस तालियों की गूंज.........
By Deeksha Kohli

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