By Gursharan Singh Shah
ना उड़ाओ मज़ाक हमारा...
क्या पता आखिरी दिन कब हो...
मैं भी हूँ इंसान...
जेसे तुम सब हो...
मर तो मैं चुका था...
पर शायद जलाने से मना करदिया...
शमशान ने...
इसमें क्या कसूर मेरा या मेरे माँ-बाप का...
मुझे ऐसा ही बनाया भगवान ने...
हमें भी अपनी इज्जत प्यारी...
हमारी इज्जत के लिए ही तो जंग है...
चलो हम तो फिर भी ठीक...
कुछ तो हमसे भी ज्यादा तंग हैं...
ये ऐसी परेशानी हमारे साथ...
जिसे हम कभी कर हल नहीं सकते...
कुछ बे-ताप है दुनिया देखने तो...
तोह कुछ यहाँ इसे... जो चल नहीं सकता...
काई यहां पेदैशी एसे...तोह काई हुई एसे...
जवान हो कर...
क्या करें जिंदगी तो कटनी है ना...
चुप बैठ, नही सकते परेशान हो कर…
कोई खा नहीं सकता अपने हाथों से खाना... तो कईयों को दिखे अँधेरा हर रंग पर...
कई जिंदगी भर पैइये खीचते रह गए...
तोह कईयों ने जन्म से लेकर बुढ़ापा बीता दिया पलंग पर...
सामना कर रहे हैं इस जिंदगी का... इसे जनम को चट्टान कह कर...
एक नया नाम दिया हमें इस दुनिया ने... लोग हमें बुलाते हैं विकलांग कह कर... लोग हमें बुलाते हैं विकलांग कह कर...
By Gursharan Singh Shah
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