The Dark Night Dinner
- Hashtag Kalakar
- Mar 24, 2023
- 2 min read
By Dineshkumar Hirani
शाम ढल चुकी थी, छुट्टियों का मौसम था,
जवानी इकट्ठा होकर Candle Light Dinner
का Program बना रही थी,
जवानी ने बुढ़ापे को भी invite किया, बुढ़ापे ने
जवानी से कहा, हमने तो बचपन से लेकर जवानी
तक अपने जीवन मे हजारों बार,
“ Dark Night Dinner “ ले लिया है,
आप सब जाकर Candle Light Dinner का मज़ा
ले आईए,
ये सुनकर जवानी ने बुढ़ापे से कहा, आप अपने
जमाने में चल रहे इस Dark Night Dinner के
Trande के बारे में हमें सविस्तार से बताइए ताकि
उसमें से कुछ नये Ideas लेकर हम सब अपनी
आज की इस रंगीन शाम को और ज्यादा Romantic
बनाकर जवानी के मज़े कुछ और ज्यादा लूट सके,
जवानी की इस Demand के सामने बुढ़ापे ने अपने
अतीत की गठरी खोलते हुए जवानी से कहा सुनो,
माँ रात का खाना चूल्हे की आग में पकाती थी,
घरमें लालटेन तो थी, मगर उसमें जान फूंकने वाला
मिट्टी का तेल नहीं होता था,
खाना बन जानेके बाद माँ चूल्हा बूज़ा देती थी, क्यूंकी
कल फिर पेट की आग बुजाने के लिए, इस अधजली
लकड़ियों को पूरी तरह से जलाना जरूरी था,
माँ हम चारों भाइयों का खाना परोसती थी, सबसे
छोटा माँ से कहता था, माँ अंधेरा बहुत है, मैं खाना
कैसे खाऊँ ?
माँ छोटे को बूज़े हुए चूल्हे के अंगारों की रोशनी मे
बिठाती थी, और कहती थी, की बेटा अंधेरा चाहे कितना
ही हो, फिर भी निवाला तो मूँह मे ही जाएगाना,
माँ की ये बात सुनकर छोटे ने माँ की और आश्चर्यभरी
निगाहों से देखा, जैसे उसे माँ की कही बात पर विश्वास
नहीं होता था,
लेकिन माँ की बात सहीं होती हैं, ये सोचकर छोटा अपनी
थाली लेकर अंधेरी जगह पर बैठकर निवाला अपने मुहँ और
ले गया, और अंधेरा होते हुए भी निवाला उसके मुहँ में ही
गया ! छोटा कुदरत के इस करिशमें से प्रभावित होकर माँ
की गोद में जाकर अभय हो गया,
इस तरहा से हमने अपने जीवन में बहुत बार,
Dark Night Dinner ले लिया है,
अपनी बात पूरी करते हुए बुढ़ापे ने जवानी की और देखा,
सारी जवानी की आँखों में नमी थी,
जवानी ने नमी के साथ अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा,
की Candle Light Dinner का Program Cancel और
हम सब मिलकर, Dark Night Dinner का मज़ा उठाकर
अपनी इस रंगीन शाम को और भी Natural बनाते है,
जवानी का ये फ़ैसला सुनकर बुढ़ापे के अंधेरे जीवन में
रोशनी की एक धुंधली सी किरण फैल गई,
और उसी वक़्त बिजली चली गई, लेकिन धुंधली सी
किरण में सारी जवानी के चहेरे मुस्कुराते हुए दिख
रहे थे,
मानो कुदरत भी जवानी और बुढ़ापे का अंतर मिटानें में
अपना पूरा सहयोग दे रही थी I
By Dineshkumar Hirani

Comments