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Talaak

By Rasmeet Bhatia

तलाक लेने पर औरत का मन हमेशा घबराया है,

समझती है वो, समाज एक तलाकशुदा को किस नज़र से देखता आया है,

आदमी की गलती होने पर भी,

लोगों ने औरत को ही "चरित्रहीन" कहकर बुलाया है...


बच्चों की खातिर मौन रहकर वो सब सह जाती है,

दिन में सास के ताने और रात को पति की डांट सुनकर आंसू का घूँट पीकर रह जाती है,

चमड़े की बेल्ट हो या सिगरेट के निशान,

अत्याचारों से ऐसे ही नहीं अपना जिस्म जलाया है,

सब ज़ुल्म-ओ-सितम बर्दाश्त करने पर भी लोगो ने 'Character Certificate' उसे ही थमाया है,

तलाक लेने पर औरत का मन हमेशा घबराया है..


सुनकर सब कुछ वो अनसुना कर जाती है,

जब कल तक 'कंजक' बुलाने वाली आंटियां आज उसकी हसी उडती हैं,

कभी वेश्या तो कभी बाज़ारू हर तरह की गाली जब उसके नाम के आगे लगा दी जाती है,

बच्चों के नाम के पीछे अब लगाओगी किसका नाम?

बार बार ये सवाल पुछकर लोगो ने उसे निचा दिखाया है,

तलाक लेने पर औरत का मन हमेशा घबराया है....



पैसों की लालच में तलाक ले रही है ये बात हवा में उड़ा दी जाती है,

सह कर्मचारियों के साथ ज़रा हसने पर लोगों की नज़रों में वो आ जाती है,

घर पर भाभी के तानो से जब माँ बाप को उसकी चिंता सताती है,

तब बूढ़ी आँखों के लिए वो झूठा मुस्कुरा जाती है,

घुट घुट के जीने पर भी समाज ने उसकी हसी पर ही सवाल उठाया है,

तलाक लेने पर औरत का मन हमेशा घबराया है.....


जिन सहेलियों के आँगन में बिता था बचपन,

आज वही सखियां इज़्जत के डर से उस से नज़रें चुराती हैं,

जवान बेटी है घर पर उसपर इसका गलत असर पड़ेगा,

ये सुनाकर वो उन दरवाज़ों से भी ठुकरा दी जाती है,

तब क्यों ये समाज शर्मसार नहीं होता?

"दुर्गा" बस्ती है जिस स्त्री में,

उसे मानसिक पिड़ाओं से बचाने के लिए ,

क्यों कभी कोई खड़ा नहीं होता?

बड़ी बड़ी डींगे हांकने वाला ये पुरुषप्रधान समाज तमाशबीन बनता आया है,

तलाक लेने पर ऐसे ही नहीं औरत का मन घबराया है....

By Rasmeet Bhatia




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