By Priyanka Gupta
मेजर सिया अपने गांव में छुट्टियां बिताने आई हुई थीं। सिया हमेशा खुश रहने वाली एक जिंदादिल लड़की थी । उनकी यूनिट में तो उन्हें लोग सनशाइन गर्ल कहते थे । सिया सकारात्मकता से ओतप्रोत लड़की थी । वह हर व्यक्ति और स्थिति में सकारात्मकता ही देखती थी ।जहाँ नकारात्मक मानसिकता वाले लोग हमेशा अपनी समस्याओं के लिए परिस्थितियों को दोष देते रहते हैं ,वहीं सिया हर विपरित परिस्थिति में भी अवसर ढूँढ लेती थी ।
आर्मी में जाने का सपना सिया ने बचपन में तब ही देख लिया था ,जब उसने स्कूल की किताबों में मेजर शैतान सिंह के बारे में पढ़ा था । मेजर शैतान सिंह 1962 के भारत -पाक युद्ध के दौरान भारतीय सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे । उनकी वीरता और पराक्रम के लिए उन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र,भारत का सर्वोच्च सैन्य अलंकरण प्रदान किया गया था ।
भारतीय सेना में प्रवेश पाना कोई आसान कार्य नहीं है । सिया को भी अपने सपने को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ा था । परिश्रम के बिना सपने ,मुँगेरीलाल के हसीन सपने मात्र बनकर रह जाते हैं । माननीय अब्दुल कलाम साहब ने तो कहा भी है कि ,"असली सपने तो वही हैं ,जो आपको दिन में भी न सोने दें ।
परिश्रमी सिया आर्मी में प्रवेश पाने के लिए एग्जाम की तैयारी कर रही थी ;उन्हीं दिनों उसका एक्सीडेंट हो गया । एक्सीडेंट के कारण पैर में फ्रैक्चर भी हो गया था । डॉक्टर ने सिया के पैर प्लास्टर कर दिया था और सिया को कुछ दिन के लिए आराम करने की हिदायत दे दी गयी थी ।
"अच्छा ही हुआ ;अब पूरा समय अच्छे से पढ़ पाऊंगी । अगर पैर ठीक होता तो मेरा मुसाफिर मन ,किताबों को हाथों से अलग कर ,मेरे पैरों को इधर -उधर कहीं भी ले जा सकता था ,लेकिन अब मन चाहकर भी मुझे बिस्तर से हिला भी नहीं पायेगा ।बिस्तर पर किताबें ही मेरी सच्ची दोस्त रह गयी हैं । ",बिस्तर पर पड़ी हुई सिया मुस्कुराते हुए सबसे यही कहती थी ।
सकारात्मक व्यक्ति अपनी योग्यता और क्षमता पर तो भरोसा करते ही हैं तथा साथ ही अपने करीबी व्यक्तियों के गुणों को भी पहचानकर ,उनकी योग्यता और क्षमता में बढ़ोतरी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । जामवन्त ने हनुमानजी की योग्यता और क्षमता को पहचाना ही नहीं था ,बल्कि हनुमान जी को समंदर पार करने के लिए प्रेरित भी किया था । मेजर सिया भी अपने नज़दीकी व्यक्तियों के गुणों को पहचानती थी और जब तब उनकी प्रशंसा करती रहती थी ।
ऐसी विनम्र और प्रेरणादायी व्यक्तित्त्व की धनी मेजर सिया को ग्राम पंचायत द्वारा "गणतंत्र दिवस समारोह" में मुख्य अतिथि के रूप में आज आमंत्रित किया गया था ।समारोह में सिया सभी के आकर्षण का केन्द्र थी । चाहे बच्चे हों या युवा ,स्त्री हो या पुरुष ;समारोह में उपस्थित हर व्यक्ति की आँखों में देश की सीमाओं की रक्षा करने वाली मेजर सिया के लिए सम्मान के भाव थे । सरपंच महोदय ने देश की सेना के प्रति इन शब्दों में कृतज्ञता अभिव्यक्त की गयी ," हमारी सेनाओं के प्रहरी मेजर साहब जैसे देशभक्त सैनिक हैं ,इसीलिए हम लोग अपने घरों में चैन से सो पाते हैं । "
समारोह के समापन के बाद कुछ बच्चों ने सिया को घेर लिया था और सभी बच्चे एक ही बात कह रहे थे कि ,"दीदी ,हमें भी देश की सेवा करनी है । हमें भी सेना में जाना है । बताइये हमें क्या करना होगा ?"
"सरपंच दादा ,छुट्टियाँ समाप्त होने से पहले ,गाँव के बच्चों की एक क्लास ले लूँगी । ",सिया ने अपने साथ ही खड़े ,सरपंच साहब से कहा ।
"आप लोगों को आपके सब सवालों के जवाब मिल जायेंगे । ",फिर सिया ने उसे घेरकर खड़े बच्चों को कहा ।
"वैसे ,बच्चों अपने कर्तव्यों का पालन करना ही असली देश सेवा है । गीता भी स्वधर्म पालन का सन्देश देती है । अगर हम सभी अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं तो हमारा देश अवश्य ही प्रगति और उन्नति के नए सोपान पर होगा । ",सिया ऐसा कहकर ,बच्चों से विदा ले सरपंच जी की जीप में सवार हो गयी थी ।
सभी बच्चे हाथ हिलाकर सिया को विदा दे रहे थे । सिया भी जब तक ,बच्चे उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गए , हाथ हिलाती रही ।
कुछ दूर चलने पर ही ,सिया को कुछ मजदूर खेतों में काम करते नज़र आये । अन्नदाता पर नज़र पड़ते ही ,सिया ने सरपंचजी को एक तरफ जीप रोकने के लिए कहा।
"क्या हुआ बिटिया ?"सरपंच जी ने गाड़ी रुकवा दी थी । सिया गाड़ी से उतरकर ,सीधे खेतों की तरफ बढ़ गयी थी ।
"क्या चाहिए बिटिया ?",अपने प्रश्नों को मन में दबाये ,सरपंच साहब भी सिया के पीछे -पीछे चल पड़े थे ।
मेजर सिया ने खेत में जाकर ,वहाँ काम कर रहे मजदूरों को सलाम करते हुए कहा ,"आप हैं ,तो जीवन हैं ।आपके पैदा किये अन्न से ही हमें पोषण मिलता है और हम स्वस्थ रहते हैं । "
मेजर सिया के इस व्यवहार को देखकर सरपंचजी ही नहीं ,खेतिहर मज़दूर भी आश्चर्य चकित रह गए।आज से पहले शायद कभी किसी ने उन्हें इतना सम्मान नहीं दिया था । उनकी आँखों में मेजर सिया के लिए सम्मान ही नहीं ,गहरा अपनत्व था .
"सिया बेटा ,आप लोग तो देश के रक्षक हो । आपको हम सब को सलाम ठोकना चाहिए । आप कहाँ इन मजदूरों को सलाम करने चली गयी थी । ",सरपंचजी ने सिया को कहा ।
सिया ने सरपंचजी को समझाते हुए कहा , "आप ठीक कह रहे हो । हम सैनिक हमारे तिरंगे के केसरिया रंग का प्रतिनिधित्व करतेहैं; हम अपने शौर्य और बहादुरी से देश की रक्षा करते हैं । हमारी तरह ये मजदूर हमारे तिरंगे के हरे रंग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे हमारे देश की समृद्धि के वाहक हैं। बुद्धिजीवी, शोधकर्ता आदि हमारे तिरंगे के सफेद रंग का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार तीन विविध रंगों से हमारा तिरंगा बनता है , उसी प्रकार हर भारतीय हमारे भारत के निर्माण में अपना -अपना योगदान देता है। हर भारतीय के प्रयास को पहचाना जाना चाहिए और उसके प्रयासों सम्मान किया जाना चाहिए।"
सिया की बात सुनकर सरपंचजी के हाथ भी खुद बा खुद मजदूरों की सलामी में उठ गए थे । सिया की बातों से आह्लादित मजदूरों ने भी अपने हाथ सलामी में उठा दिए थे । आज मजदूरों को भी अपने कार्य पर गर्व हो उठा था । सिया ने उन्हें भी स्वयं पर फख्र करना सिखा दिया था ।
लेखक -परिचय
अभियांत्रिकी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय सिविल सेवा जैसी कठिनतम परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने छोटे -छोटे क़दमों से प्रवेश करने वाली, प्रियंका का जन्म 7अगस्त को राजस्थान के भाण्डारेज (दौसा )ग्राम में हुआ था। प्रियंका का बाल कहानी संग्रह 'गोलगप्पे 'वर्ष २०२३ में प्रकाशित हुआ है ।
स्वघोषणा
'सनशाइन गर्ल ' बाल कहानी स्वरचित ,मौलिक और अप्रकाशित है ।
By Priyanka Gupta
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