By Nidhi Joshi
सफ़र में होना बेहद पसंद है मुझे।
ज़मीं से आसमां तक का सफर,
शून्यता से चेतना का सफर।
उम्मीदों से सपनों का सफ़र,
तो हर दिन प्रतिपल खोती आशा और फिर से जगती नई प्रदीप्ति का सफ़र।।
ये सफ़र ही तो है जो बांधे रखता है,
मंज़िल मंजर और मेरे जहन से मुझे।
कि कहीं से निकलूं तो कहीं पहुंचूं ज़रूर,
न पहुंच पाई तो कुछ न भी सही पर यादों और अनुभवों की महक तो होगी ज़रूर।।
हर एक सफ़र की एक महक,
हर शख्स,पड़ाव,ठहराव सबसे मिलके बनती एक खुशबू।
इत्र की तरह खुलती और फिर वही सफ़र में होने वाले किस्सों का सफ़र
शायद इसीलिए सफ़र में होना बेहद पसंद है मुझे।।
By Nidhi Joshi
Khoobsurat
Boht hi khubsurat likha hai mam...
Nice poem
Very nice and thoughtful Nidhi! Superb ✌️👌🔥
🤩