top of page

Purnima

By Bhuwan Chandra Pandey



09 नवंबर की तारीख उत्तरांचल और हमारे परिवार पूर्णिमा के लिए एक खास दिवस है, क्योंकि इस दिन उत्तरांचल का राज्य स्थापना दिवस और पूर्णिमा स्टोर का शुभारंभ दिवस है।आज से २१ साल पहले एक छोटी सी पूंजी और बड़ी सी ऊर्जा के साथ पिताजी और बड़े भाईसाहब (गिरीश दा)ने मिलकर एक समायोजित संस्थान पूर्णिमा स्टोर की पहल की। पिताजी और बड़े भाईसाहब की सामाजिक और व्यवहारिक जान पहचान की ही वजह से अपने प्रथम दिवस में ही पूर्णिमा ने एक अच्छा प्रयास,और पिताजी के उस विचार को ,बड़े भाईसाहब की मेहनत को मां लक्ष्मी की अनुकंपा हुई।तब पिताजी और बड़े भाईसाहब गिरीश दा ने उस विचार को नए आयाम देने के लिए दिन प्रतिदिन ऊर्जित भाव से ब्राह्मण के कर्म से हटकर उस काम को किया ,जो प्रबन्ध बनिए के लिए बना था।दिन प्रतिदिन सुबह से रात की मानसिक और शारीरिक थकान को भूले बिसरे गीत की तरह हर दिन नई उर्जा के साथ शटर कभी गिरने नही दिया,माह दर माह प्रतिदिन कुछ न कुछ नई वस्तुएं जुड़ती गईं, गांव अब एक कस्बा बन गया लोगो की ज़रूरतों को देखते हुए हर चीज पूर्णिमा में मिलने


लगी,लिखने मे इतना सरल ये सफर इतना भी आसान नहीं रहा , क्योंकि मैं इस सफर का काफी करीब से दर्शक रहा हूँ,और अपनी नौकरी से जब भी अवकाश पर आया , उस दुकान पर पिताजी और बड़े भाईसाहब के साथ काम किया, रोज़गार प्रकृति से वायु सेना में रहकर भी मुझको इन दोनों की दिनचर्या काफी कठिन लगती ।पर पिताजी और बड़े भाईसाहब अब इस व्यवसाय में राम बन कर रम चुके थे।बड़े भाईसाहब की मेहनत को देखकर लगता कि "क्या ऊर्जा है इनमें", तड़के जग कर शटर उठा देते फिर अपने अध्यापन कार्य के लिए चल देते; फिर वहाँ से उनके आने तक का पूर्ण बागडोर पिताजी बखूबी पूरा करते, घर के दो बच्चे (मोहित , काव्या) भी एक टॉफ़ी की धियाडी पर नमक की थैलियां जगह पर लगा दिया करते। दिन में भाई साहब आते और लंच करके जम जाते उस कुर्सी पर जो आराम नही काम ही देती थी,पर उस काम ने , पिताजी और बड़े भाईसाहब की असीमित मेहनत ने इस पूर्णिमा स्टोर ने परिवार को काफी अच्छा,हर साल दर साल कुछ यादगार तस्वीरें ही बना कर दी,इस पूर्णिमा को एक पहचान बनाने में परिवार की महिलाओं मेरी माताजी और बड़ी भाभी जी का भी उतना ही हाथ है, ये लोग परदे के पीछे के वो निर्माता हैं जिन लोगों ने शटर को समय पर खुलने में घड़ी को न देखते हुए काम किया तब एक प्रयास,एक विचार, सामूहिक रूप से मिलकर आज की जिस ऊंचाई पर है ,ये नींव के वही पात्र हैं; उनका परिवार को एक सूत्री बनाने में सदा ही करबद्ध हूँ।मझले भाई और मैं ( शिपिंग कार्य,वायुसेना) में आए,ये पूर्णिमा की प्रगति के दौरान ही हुआ।२००९ मैं परिवार कुछ और बढा , दो नए लोग पूर्णिमा का हिस्सा बने,जिसमें छोटी भाभीजी और धर्मपत्नी धीरे धीरे परिवार के तौर तरीकों को, समाज को समझ रही थीं और पूर्णिमा की प्रगति में,उसके पूर्ण कार्य में अपना भी योगदान दे रही थी,पूर्णिमा स्टोर दिन प्रतिदिन सुबह शाम अपनी समाज मैं समझ को हर दिन बढ़ा रहा था। फिर पिताजी और छोटे भाई (पप्पू दा)की मेडिकल रिपोर्ट उनको अपने अपने काम मैं बाधा उत्पन्न करने लगी। *परिवार की एक छोटी पर खास बैठकी मैं ये सर्व सहमति से निर्णय लिया गया कि, ** *पिताजी को आराम और पूर्णिमा की बागडोर पप्पू दा को दी जाए,वो दिन १९ मार्च १७ थी* ।* जिस दिन अपने शिपिंग कार्य को विदा कर भाई पप्पू दा ने पूर्णिमा का सारथी बनना स्वीकार किया ,पर बड़े भाईसाहब ने भी इस शटर को १७ साल खुला रखा उनके लिए भी इस काम को छोड़ना उतना आसान नहीं रहा होगा। बड़े तो बड़े ही होते है,तुलसी के राम को सब जानते हो,पर पूर्णिमा के राम ने एक अलग ही उदाहरण दिया,परिवार की इस इच्छा को बिना शर्त समर्थन दे कर आप उस दिन मेरे लिए अतुलनीय हो गए,१९ मार्च १७ को जो एक पौध पिताजी और बड़े भाईसाहब ने १७ साल पहले रोपा और आज जो अपने यौवन की और बढ रहा था, एक बट बन कर तैयार था। भाई साहब पप्पू दा के लिए अब इस व्यवसाय को लेकर कई चुनौतियाँ थीं, एक तो अपनी नौकरी की मासिक वेतन,परिवार का पालन ,सामाजिक , आर्थिक, स्थिति को देखते हुए नए काम मैं हाथ आजमाना।पर भाई साहब आप और मेहनत तो एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। आपने पिताजी और बड़े भाईसाहब का अनुभव लेकर जो काम को संभाला,वो तारीफ़ या शब्दों का मोहताज नहीं।२०१७ से २०२१ के इस कालांतर को आपने अपने कई अनुभवों, बड़ों की सीख ,और पूर्णिमा में कई नए प्रयोग से आज पूर्णिमा स्टोर एक गूगल सर्च एड्रेस बन गया है। पप्पू दा ने अब उस शटर को न केवल समय पर खुलने दिया वरन उसकी कीर्ति में भी नए आयाम स्थापित किए,आपने कहीं अपनी ईमानदारी दिखाई तो कही अपनी सामाजिक पकड़ ५० हज़ार रुपयों से भरा बैग उसके मालिक तक पहुंच पाया या कोविड के उस प्राणघाती काल में जब लोग घरों में बंद होकर परिवार के साथ खा पी रहे थे,उनके चूल्हों से पकवानों की खुशबू कम न हो,इसकी चिन्ता सिर्फ आपने ही की।हर घर तक दूध , दही , राशन सरकार द्वारा संचालित समय नीति के हिसाब से चिंतन मनन कर आपने उस समय पर जो नए प्रयोग किए वो अकल्पनीय थे,चाहे डिजिटल इंडिया हो या लोकल फॉर वोकल का समर्थन हो ,आप सरकार की हर नीति के साथ रहे ,और इतने लोगों के साथ कॉन्टैक्ट होने के बावजूद आपने खुद को ,परिवार को इस महामारी से बचाए रखा,जबकि रोजगार की प्रकृति ही लोगों से मिलना था,पर आपने इस आपदा को अवसर में बदला,दैनिक मजदूर हो या रिक्शा चालक सब को आपने अपने हिसाब से मदद की।सरकारी तथा सामाजिक




दलों द्वारा उनको मदद देनी हो तो आप और पूर्णिमा एक जन मिलन केंद्र बन गए। कॉविड की दवा आने पर पूर्णिमा स्टोर ने न सिर्फ लोगों को राशन मुहैया कराया बल्कि उस वैक्सीन के डिजिटल रजिस्टर करवाने में आप और आपके पुत्र का जो असीमित योगदान है वो अखबारों ने बया कर ही दिया है। पूर्णिमा स्टोर को जिस पुनीत काम के लिए प्रारंभ किया गया आज आप उन सभी स्थानों और बिंदु में पूर्ण रूप से समर्थ हैं,ये मैगनेटिक फोर्स ही है कि जिस प्रकार बड़े भाईसाहब ने राम बन कर इस पूर्णिमा को अपने यौवन तक पहुंचाया आपने भरत बन कर इसको इसके यौवन से भटकने नही दिया।और आज पूर्णिमा अपने सामाजिक ,आर्थिक रूप में नित नई ऊर्जा और पूर्णिमा के चन्द्र की तरह लोगों को रात्रि मैं अंधेरे से दूर करे,आज इस व्यवसाय के २१ साल पूरे हुए हैं, अब पूर्णिमा अपने यौवन की परम पद पर है,आप इसको अपने प्रयोगों,लोगों की ज़रूरतों , विकल्प को देखते हुए नई नई वस्तुएं जोड़ कर इस पूर्णिमा स्टोर को एक ब्रांड के रूप में सत्यापित करे। मैं मां लक्ष्मी जी से प्रार्थना करता हूँ कि आप नई ऊर्जा से अपने इस पूर्णिमा का सारथी बन कर इसको नई ऊंचाई प्रदान करे। २०१७ से आप के साथ एक परछाई की तरह जिस ताकत ने आपको हर पग पर साथ दिया वो है मेरी छोटी भाभी जी,जिनके हर पल हर दिन हर माह हर साल के प्रयास ने आपको समस्त संसार की शक्तियों से सुशोभित किया है, जिसके कारण ही आप पूर्णिमा स्टोर के हर काम को समय पर प्रतिपादित कर पाए,आपके हर प्रयोग में हर नए जोड़ में आपकी जीवन संगिनी ने अपने नाम को सार्थक किया है। मैं आपका अनुज भुवन कृष्ण दास सभी परिजनों और प्रभु समस्त विश्व के जिन जिन का सुमिरन हम करते हैं,सभी की ओर से पूर्णिमा स्टोर को २१ साल पूरे करने पर सारथी पप्पू दा और शक्ति संगिनी उमा भारती को आकाश भर शुभकामनाएं प्रदान करता हूं। आप सभी परिजनों के आशीर्वाद से इस पूर्णिमा को एक नए आयाम स्थापित करने में सक्षम हो ,ये मेरा विश्वास और प्यार है।अब इन शब्द से आपकी और पूर्णिमा की प्रगति की तरफ देखते हुए, *

*मेहनत,लगन और करम की शर्तो पे मैं खो नही सकता।इस पूर्णिमा के सृजन का बीज हूं मैं ,मिट्टी मै यूं ही जाया हो नही सकता।**


*_(ये पूर्णिमा का एक सफरनामा है ,किसी भी विषयवस्तु को खुद से न जोड़ कर सिर्फ पूर्णिमा की प्रगति के कारक बने)।_*


By Bhuwan Chandra Pandey





Recent Posts

See All
बलात्कार रोकने की चुनौतियाँ

By Nandlal Kumar बलात्कार रोकने की चुनौतियाँ अगर मैं अपनी बात बिना किसी भूमिका के शुरू करूँ तो कहना चाहूँगा कि  ये मामला खुली बहस का है। ...

 
 
 

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page