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Pehli Salary

By Priyam Gupta


प्रिया ने आँखें खोली। आज उसकी नींद अलार्म के बजने से पहले ही खुल गयी। उसने आधी बंद आँखों से ही मोबाइल का लॉक स्क्रीन खोला और मुस्कुरा उठी। वो उठ कर कमरे कि खिड़की कि तरफ गयी और धीरे से परदे खोला। सूरज कि किरणों को और दिनों से ज़्यादा गहराई से महसूस किय। चिड़ियों के कलरव में खो सी गयी वो। अचानक, अलार्म बजने लगा । प्रिया अपने मौन ख्यालों से बाहर आयी और नाहाने चली गयी। रोज़ तो कोई भी कपड़े पहन कर वो ऑफिस चली जाती थी पर आज अलमारी में रखी सारी कुर्तियों को थोड़ी देर निहारती रही। आखिर में वो कुर्ती पहनी जो पापा कभी परदेस से खास प्रिया के लिए ले कर आये थे।

पहली चीज़ों कि बात ही कुछ और होती है न? पहली बार बर्फ कि चुस्की चखने कि, पहली बार अकेले रोड क्रॉस करने कि, पहली मोहब्बत कि और पहली नौकरी कि।

4 महीने हो चुके थे प्रिया कि ग्रेजुएशन को ख़त्म हुए और उसने बिना वक़्त ज़ाया किये ही, पहली नौकरी कि कमान यूँ थाम ली थी जैसे बस यही आखरी हो। प्रिया अक्सर अपने पापा के ऑफिस वाले कपड़े पहन कर शीशे में खुद को देखती रहती। एक बार पकड़े जाने पर उसकी माँ ने तो कह ही दिया था, "तुझे मौका मिले तो तू आज ही पापा के साथ ऑफिस जाने लगे, क्यों, प्रिया?" ९ साल कि प्रिया उस वक़्त भी तैयार थी, और आज भी तैयार है। बचपन से ही उसे फर्क करना नहीं आता था - कुर्ती और ऑफिस के कपड़ों में, काम के बंटवारे में । जब भी प्रिया के भाई को माँ बाजार से सब्ज़ी लेन को कहती, वो साथ जाने कि ज़िद करती।

"भाई आज आप रसोई में मदद करो, मैं सब्ज़ियां ले आती हू।"

इससे पहले कि कोई जवाब आये, अपने दुप्पट्टे को लहरा कर स्कूटी में छू मंतर हो जाना प्रिया कि बड़ी पुरानी आदत थी ।

इतने नाज़ों से पली प्रिया आज अपने छोटे शहर से बहुत दूर थी पर ऑफिस जाते-जाते रोज़, पापा-मम्मी का हाल पूछना नहीं भूलती थी। उसके पापा ने रोज़ कि तरह, आज भी, एक ही घंटी के बाद फ़ोन उठा लिया और कहा,

"हाँ बेटा, कैसी हो?"

"आपको याद है न आज कौन सा दिन है?"

प्रिया कि आवाज़ में सूरज सा तेज़ था, चिड़ियों के कलरव जैसा आनंद।

"आज? तुम्हारा जन्मदिन तो.."

"उफ्फो, आपको भी मेरी तरह कोई तारीख याद नहीं रहती न? आज पहली तारीख है, मेरी पहली सैलरी का दिन!"



पापा कि आँखें कुछ नाम हो उठी पर उनकी आवाज़ ने अपना संतुलन नहीं खोया।


"अरे हाँ, आज तो बेटा कि पहली सैलरी आने वाली है! तो बताओ, क्या लेने का सोचा है?"

"आप मेरे लिए विदेश से कुर्ती लाये थे न, मैं भी आपके लिए उसी रंग का कुर्ता खरदुंगी! फिर हम बाप बेटी एक साथ तस्वीर खिचवायेंगे।"

प्रिया हंस कर बोली।


कुछ देर में, रास्ता ख़तम हुआ और उनकी बातें भी। प्रिया ऑफिस पहुँच गयी।

वो पूरे दिन अपने फ़ोन और बैंक अकाउंट चेक करती रही पर पैसे नहीं आये। शाम को निराश हो कर घर जाते-जाते उसने पापा को फ़ोन लगा लिया।

"पापा सैलरी अब तक नहीं आयी, पता नहीं कब आएगी!"


पापा ने अपनी उम्मीद भरी बातों से बेटी का दिल जोड़ने कि कोशिश की। फ़ोन रखने के कुछ ही देर बाद प्रिया का फ़ोन बजा । उसने मायूसी से फ़ोन की ओर देखा और उसकी आँखें चमक उठी!

उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसने पानीपुरीया, चाट और न जाने क्या क्या खाया । घर से पैसे न मांगने के जतन में की सारी मेहनत का हिसाब एक दिन में कर डाला। आखिर में एक दुकान में जा कर पापा के लिए एक कुर्ता ख़रीदा और रूम वापस लौट आयी । वो आराम करने के लिए बिस्तर पर लेती ही थी कि उसके फ़ोन में दोबारा मैसेज आया । प्रिया चौंक उठी। उसके बैंक अकाउंट में दोबारा १० हज़ार रुपये जमा हुए थे। पर ये कैसे मुमकिन था?

उसने पापा को फ़ोन किया और सारी बात बताई। लेकिन पापा उसकी बातों के बीच ही हंसने लगे ।

"पापा मैं मज़ाक़ नहीं कर रही, ऐसा सच में हुआ है। मुझे दो दो बार सैलरी आयी है। मैं कल ही जा कर ऑफिस में बता दूंगी। "

"अरे, ऐसा न करना। असल में वो जो तुम्हे पहले मैसेज आया था, तभी मैंने पैसे भेजे थे। मुझे लगा कि मैं सब कुछ कर सकता हूँ पर आज भी तुम्हे मायूस नहीं देख सकता, माफ़ करना बेटा!"


प्रिया कि आंखें नम हो गयी पर उसकी आवाज़ ने संतुलन नहीं खोया। उसने बस "थैंक यू पापा" कह कर फ़ोन रख दिया और खुद से कहा,

"मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना था, पापा, पर आज जाना कि, गिरना मुझे आपके कंधे पर ही है!"


By Priyam Gupta




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