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Pehli Mulaqat

Updated: Jul 14

By Prachi Raghuwanshi


ऐसे कितने लोग होंगे ज़िन्दगी में जिनसे हम पहली बार मिलते हैं, पर क्या सबकी पहली मुलाक़ात याद रहती है? नहीं ना। जब कोई किसी दिन बहुत खास बन जाता है, उसके साथ की हम वो अपनी पहली मुलाक़ात याद करने की कोशिश करते हैं, खुद के किस्से मिलाकर, उस एक मुलाक़ात की कहानी बना देते हैं।उसके साथ भी मेरी पहली मुलाक़ात ऐसे ही बहुत खास थी। खास थी या मैंने बनाई थी, पता नहीं, पर कुछ अलग बात थी।

एक रोज़ यूँ ही, बहुत-सी शामों की तरह मरीन ड्राइव के पास बैठी थी, अली साहब की धुन सुन रही थी, पर अपनी धुन में मस्त थी।अचानक अहसास हुआ कि किसी ने कंधे पर हाथ रखा।Earphones निकाल कर जब नज़रें उठाईं तो सामने एक शख्स था।एक शख्स जिससे मैं अंजान नहीं थी, पर वो अजनबी-सा था।जिससे मेरी पहले बातें हो चुकी थीं, पर कुछ अनकहा किस्सा था।जिससे मेरी पहली मुलाक़ात हो चुकी थी, पर कुछ अनदेखा-सा था।

खड़ी हुई।Classic Gen Z की तरह गले लगकर दोनों बोल पड़े, "Long time no see यार।"हँसते-खेलते, यहाँ-वहाँ की बातें करते हुए, अपडेट लेते हुए वहीँ बैठ गए।

रोहित, ये मेरे स्कूल का दोस्त था, बचपन का दोस्त।हमने एक-दूसरे के बचपन के साथ-साथ बचपना भी देखा था।हम सेम स्कूल में थे, पर डिविज़न अलग था।एक दिन lunch break में, मैं और मेरी फ्रेंड हैंडवाश करने गए थे,तभी ज़ोर से एक बॉल

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ऐसे कितने लोग होंगे ज़िन्दगी में जिनसे हम पहली बार मिलते हैं, पर क्या सबकी पहली मुलाक़ात याद रहती है? नहीं ना। जब कोई किसी दिन बहुत खास बन जाता है, उसके साथ की हम वो अपनी पहली मुलाक़ात याद करने की कोशिश करते हैं, खुद के किस्से मिलाकर, उस एक मुलाक़ात की कहानी बना देते हैं।उसके साथ भी मेरी पहली मुलाक़ात ऐसे ही बहुत खास थी। खास थी या मैंने बनाई थी, पता नहीं, पर कुछ अलग बात थी।

एक रोज़ यूँ ही, बहुत-सी शामों की तरह मरीन ड्राइव के पास बैठी थी, अली साहब की धुन सुन रही थी, पर अपनी धुन में मस्त थी।अचानक अहसास हुआ कि किसी ने कंधे पर हाथ रखा।Earphones निकाल कर जब नज़रें उठाईं तो सामने एक शख्स था।एक शख्स जिससे मैं अंजान नहीं थी, पर वो अजनबी-सा था।जिससे मेरी पहले बातें हो चुकी थीं, पर कुछ अनकहा किस्सा था।जिससे मेरी पहली मुलाक़ात हो चुकी थी, पर कुछ अनदेखा-सा था।

खड़ी हुई।Classic Gen Z की तरह गले लगकर दोनों बोल पड़े, "Long time no see यार।"हँसते-खेलते, यहाँ-वहाँ की बातें करते हुए, अपडेट लेते हुए वहीँ बैठ गए।

रोहित, ये मेरे स्कूल का दोस्त था, बचपन का दोस्त।हमने एक-दूसरे के बचपन के साथ-साथ बचपना भी देखा था।हम सेम स्कूल में थे, पर डिविज़न अलग था।एक दिन lunch break में, मैं और मेरी फ्रेंड हैंडवाश करने गए थे,तभी ज़ोर से एक बॉल मेरे पैर पर आकर लग गई।जब ग्राउंड की तरफ देखा तो, कोई मासूम-सा चेहरा लिए मेरी तरफ आया और बॉल मांगी।गुस्सा तो बहुत आया क्योंकि मेरा स्कर्ट गंदा हो गया था। मेरे दो मिनट घूरने पर ये बोला,"Sorry ना यार, हम तो दोस्त हैं।"‘दोस्त?’ ‘कब?’ ‘कैसे?’ ‘कहाँ?’हाथ आगे बढ़ाकर बोला, "रोहित, नाम तो सुना ही होगा।"तब तक तो नहीं सुना था पर, उस दिन के बाद हर कहीं दिखने लगा।स्कूल खत्म होने पर भी।

Whatsapp pinned chat बन गया, highest snap streak, favourite contact, emergency email।हर जगह इस इंसान का नाम जुड़ गया।

(Patt) "कहाँ खो गई?""Shit, सॉरी, कुछ नहीं।""री, तुझे याद है हमारी पहली मुलाक़ात?""हाँ रोहित, मुझे याद है।"मुझे याद है अपनी पहली selfie जो मैंने ग्रुप फोटो से क्रॉप की थी।हाँ, मुझे याद है वो पहला गाना जो तुमने आलोक के साथ free period में बैठकर गाया था।हाँ, याद है वो पहली चॉकलेट जो तुमने मुझसे छीनी थी।हाँ, याद है मुझे अपनी वो पहली मुलाक़ात जिसकी कहानी मैंने पूरे सलीके से लिखी थी।1st meet से priority तक के बीच का फ़ासला मुझे याद ही नहीं करना, क्योंकि मुझे नहीं जानना कि तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिले।

(Patt) "कहाँ खो गई?""Shit, सॉरी, कुछ नहीं।""यार री, तू कहाँ चली गई है यार?""तुझसे ऐसे थोड़ी ना मिलना था strangers की तरह।"‘Stranger?’ Oh yes.Priority से stranger की कहानी भी तो है।पर शायद याद इसलिए नहीं क्योंकि कभी लिखी ही नहीं, कभी अपने सलीके से शब्द समेटे ही नहीं।याद करूँ तो याद आता है।कि हाँ, snap streak टूट गई थी।Whatsapp chat archive हो गई थी।Contact से red heart हट गया था।

(Patt) "कहाँ lost हो रही है?""Shit, सॉरी, कुछ नहीं।""री यार, हम इतने दूर क्यों हो गए?""हम इतने दूर क्यों चले गए?"

‘क्यों?’शायद इसलिए क्योंकि मेरे लिए little things काफी important थीं, तुम्हारे लिए अनदेखी।मेरे देखने के तरीके में तुम थे, तुम्हारे लिए ये नज़रिया ही बेबुनियाद था।मेरे लिए हर शब्द का मतलब तुमसे था, तुम्हारे लिए मैं अनसुनी हो गई थी।मेरी रातों का चाँद तुम बन गए थे, तुम्हारे लिए मैं एक धुंधली रात-सी हो गई थी।

(Patt) "Be here, be with me, talk to me।तुझे तो सब याद रहता है ना।अब बता अपनी मुलाक़ात, पहली तस्वीर, पहली तारीख़, पहला गाना।"

उसे सब बताया, सब याद दिलाया।उसका फिर एक ही सवाल आया, "हम इतने दूर क्यों हो गए?"इस बार जवाब खयालों में नहीं, उसको दिया।कि वो क्या है ना रोहित, "तुझे कोई भी किस्सा याद नहीं रहता, मैं तुझसे जुड़ा कोई भी हिस्सा भुला नहीं पाती।"तब उसने फिर एक अजनबी की तरह नज़रें झुका लीं। फिर उठकर बोला, "अच्छा लगा तुझसे मिलकर, मिलते रहना।"पर अब शायद जब मिलूँगी तब पहली मुलाक़ात की कहानी अलग होगी।क्योंकि आज रोहित भी बदला हुआ-सा था, और पुरानी रिया भी कहीं खोई हुई थी।

इस दूसरी ‘पहली मुलाक़ात’ की कहानी कुछ यूँ होगी।

कि हाँ, उस दिन लहरों का शोर सुन रही थी।चाँद की चाँदनी निहार रही थी।उस हवा को महसूस कर रही थी।उसके बगल में होने पर भी बातें खुदसे कर रही थी।कि उसको सुनने पर भी, खुदको समझ रही थी।हाँ, उससे मिलने पर भी, पहली मुलाक़ात खुदसे कर रही थी


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