By Suroochi Rahangdale
पापा थे तो हर जिद थी मेरी!
फिर हो सुबह रात या भरी दोपहरी।
चुप्पी को भी पढ़ लेते थे!
कुछ ना कहो तो भी सुन लेते थे।
गलती पर जब थे आंख दिखाते,
अगर थप्पड़ जड़ दे तो खुद ही रो लेते थे।
उनकी कमी न पूरी होगी हर खुशी अधूरी होगी I
मां भी कहां अब वैसी दिखती है,
ना पहले जैसी हंसती ना सजती हैं I
कुछ रंग तो उड़ गए हैं पापा जब से बिछड़ गए हैं।
रिश्ते तो अब भी वैसे है, पर उतना कोई नहीं करीबी I
ऐसे तो कोई कमी नहीं है पर पापा के बिन वह नही अमीरी I
बस इतनी सी हंसती है मेरी, पापा बिन गृहस्ती है मेरी।
By Suroochi Rahangdale
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