Paisa Bolta Hai
- Hashtag Kalakar
- Apr 10, 2023
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By Sansha Mishra
धूल उड़ाती, इस सोते गाँव में एक दिन आई वह मोटर-कार।
गाँव के छोरे बड़ी आँखों से उसे देखते और अपने छोटे मुँह से आपस में बड़बड़ाते- “अबे ! कभी तेरे बाप ने साइकल भी देखी है?, चला कार को छूने !”
खूब निहारते उस कार को, उसके सफ़ेद रंग को जिसपर कीचड़ का एक दाग भी न हो, पहिए जो हवा से बातें करते थे, उसके स्याह से काले शीशे जो उनकी और “साहब-लोग” की दुनिया के बीच की दीवार थी।
बूढ़े-बुज़ुर्ग बड़ा खिसियाते, “न जाने कौन ले आया इस शैतान के पिल्ले को, नींद हराम कर दी है इसने।”
“भेड़-बकरियाँ मोटर की आवाज़ से भाग जाती और ये छोरे दीमक जैसे उस से चिपक जाते।”
कोई नहीं जानता की उस कार का मालिक था कौन।”होगा कोई साहबज़ादा, शहर की कमी गाँव में खोजने वाला।”- सब यही सोचते।
एक दिन एक भिखारन अपने तीन साल के बेटे के साथ उस कार की ओर पहुँची। सोचा यहाँ से शायद कुछ मिल जाए। गाड़ी दुर्गा मंदिर के मोड़ पर खड़ी थी, ड्राइवर पास के पनवाड़ी से पान बनवा रहा था।
भिखारन ने पीछे का शीशा खटखटाया और पैसे के लिए विनती की। जब कोई जवाब नहीं मिला तो उसने अपने मासूम बच्चे की ओर इंगित किया।
एक हाथ फक-सफ़ेद, हीरे और नीलम की अँगूठियों से भरा हुआ आगे आया और उस भिखारन के हाथ में पचास रुपए का एक नोट रख दिया।
भिखारन सलाम कर, जाने ही वाली थी की उस हाथ ने उसके बच्चे के गाल बड़े प्यार से दबाए और अपना दूसरा हाथ भी गाड़ी से बाहर निकाल लिया।
शाम उस ही जगह जब वह बच्चा अपनी माँ से मिला तो उसने अपनी माँ के हाथ में सौ रुपए और रखे। भिखारन ने उसके आँसू पोछते हुए कहा-“मुन्ना, किसी को कुछ बोलना नहीं।”
By Sansha Mishra

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