By Pooja Singh
है मासूम सा भोलापन,
आंखों में चंचलता भी है!
माना उम्र की झुर्रियां छाई है,
पर जनाब ये किसने कहा कि बचपन सिर्फ बचपन की कमाई है!!
जानती हूं है शरारती थोड़ा अंदाज मेरा,
पर पचपन में भी बचपन को जिंदा रखने पर है नाज बड़ा!!
लुका छुपी खेलती हूं,
पकड़ा पकड़ी में भागा दौड़ी करती हूं!!
घुटने हुए हैं कमजोर मगर दिल से अभी भी बच्ची हूं,
पर क्या करूं अंताक्षरी खेलने में अभी भी कच्ची हूं!!
पेड़ से आम तोड़ने में कर रखी है मास्टरी मैंने,
चर्च आज भी होते हैं लकड़ी के मेरे!!
भूले से भी ख्याल नहीं आता कभी" काश बचपन में वापस जाती,
क्योंकि मैं ,मैं नहीं रहती अगर अपने पचपन में बचपन को ना पाती!!
By Pooja Singh
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