By Srijan
एक आदमी था,
बहुत हैण्डसम।
वो घर आया एक बार।
उसने मुलाक़ात में बताया उसे प्यार है किसी से,
शादी करना चाहता है।
मैं ठहरा निरह बिहारी,
दे दिया दाल-भात,
फिर वो कभी भी आ जाए,
मुझे कहे, सृजन भाई , मेरे ब्याह के साक्षी बन जाईये
बड़ा तहज़ीब था ज़बान पर,
लड़कपन भी,
था हिन्दू , किसी मुस्लिम ये प्यार था,
मैं जॉन अब्राहम को देख चुका हूँ ,
उससे भी ज़बरदस्त !
चार-पांच हफ़्ते बाद पता चला,
ये इस इश्क़-बाज़ की,
ग्यारहवीं ब्याह थी।
II
किचन छोड़ूं मर्दों पर!
है रे तौबा!
दो लड़के थे,
उनसे कहा, रहो अभी,
मैं कुछ दिन मैं आता हूँ,
दे दिया घर,
पांच दिन बाद,
मेरे राइस-कुकर मैं,
पिल्लू दौड़ लगा रहे थे,
सड़े हुए चावल के साथ।
हम मर्द बड़े नामर्द होते हैं।
दोनों मैं से किसी ने ज़ेहन तक न उठाई,
न कोई शर्मिंदगी।
III
कोई हमसे धृष्टा ना करे,
हम तो कालिख मिटा कर सब रजत कर देंगे।
अरे! हमसे न बैर करना, हम तेरे दोस्त के दामाद हैं।
हम आपके दामाद हैं।
कितना बड़ा गड़बड़झाला है ये,
लड़की चाहिए जैसे कोई घरवाली,
और दामाद जैसे कोई प्रिंस।
IV
जला दो, जला दो!
दहेज और कुरीतियों को जला दो!
पहले पता करो,
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर,
वो कहाँ हैं,
जो कहे,
ये दुनिया मिल भी जाए तो क्या है।
V
साढ़े छः करोड़ लडकियां ग़ायब हैं,
ऐसा सरकार का कहना है
या तोह भ्रूण में हत्या हुई
या मार दिया गया।
देश में महिलाओं का आंकड़ा मर्दों से,
सिर्फ आदिवासी क्षेत्रों में मिलता है।
कितने मानवीय हैं वो हमसे।
By Srijan
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