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Mai Aur Pluto

By Mohammad Imran Khan


कल रात जब मैं ऑफिस से घर पहुँचा तो ख़ुद को बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था, जबकि ऑफिस में रोज़ की तरह नार्मल काम ही किया था. मैं बिना कपड़े और जूते उतारे ही बेड पर जाकर लेट गया. थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं नहाने चला गया और फिर कपड़े बदलकर चाय बनाने लगा. जब मैं चाय बना रहा था तो बहुत देर तक मैं चाय को उबलते हुए देखता रहा जैसे कोई इंसान शून्य में देखता है. फिर अचानक से याद आया कि चाय ज़रूरत से ज़्यादा उबल चुकी है. मैंने चाय को कप में निकाला और छत पर चला गया. तब तक सूरज लगभग ढ़ल चुका था और आसमान में तारें दिखने लगे थे.

मैं चाय की चुस्की लेते हुए आसमान की तरफ एक टिम-टिमाते तारें की तरफ देख रहा था. वो तारा इस तरह से टिमटिमा रहा था मानो कि वो इंसानों की तरह रो रहा हो. अचानक से वो कुछ और रोशनी के साथ टिम-टिमाने लगा और उसने मुझसे पूछा “कैसे हो?”. मैं इस बात पर बहुत हैरान हुआ, फिर मैंने खुद को संभाला और सोचा कि शायद ये सवाल मैं खुद से पूँछ रहा हूँ. उस तारें ने फिर से पूछा “कैसे हो?”. अब मैं और भी ज़्यादा हैरान था कि एक तारा एक इंसान से कैसे बात कर सकता है. मैंने कौतुहल में उससे पूछा क्या तुम मुझसे पूछ रहे हो. उसने कहा “हाँ, मैं तुमसे ही पूछ रहा हूँ क्यूंकि तुम बहुत उदास दिखाई दे रहे हो”. मैंने जवाब दिया “यहाँ तो हर दूसरा इंसान उदास है”. इससे पहले वो जवाब देता, मैंने उससे सवाल किया “क्या तारें भी इंसानों से बात कर सकते हैं? क्या वो भी इंसानों के दिलों का हाल जान सकते हैं?”.

उसने जवाब दिया “मैं कोई तारा नहीं हूँ बल्कि ‘प्लेनेट’ हूँ. या यूँ कहो कि ‘प्लेनेट’ था, अब तुम लोग मुझे ‘ड्वार्फ प्लेनेट’ के नाम से जानते हैं, मैं ‘प्लूटो’ हूँ”. मैंने कहा इससे क्या फर्क पड़ता है कि तुम ‘प्लेनेट’ हो या ‘ड्वार्फ प्लेनेट’, तुम आसमान में अब भी हो और ‘सूरज’ का चक्कर लगाते हो. उसने मेरी बात का जवाब देते हुए कहा कि तो फिर तुम क्यों उदास हो? तुम पहले भी इंसान थे और अब भी हो. मैंने बोला मैं इंसान तो हूँ लेकिन हम इंसानों के इंसानों के साथ रिश्ते बदलते रहते है. कभी किसी इंसान के लिए बहुत ख़ास हो जाते है और कभी हम उनके लिए एक्सिस्ट ही नहीं करते.

मैंने उससे आगे पूछा कि इंसान ‘प्लूटो’ को नंगी आँखों से देख भी नहीं सकता, तो मैं कैसे मान लू कि तुम ‘प्लूटो’ हो और तुम मुझसे क्यों बात कर रहे हो. उसने जवाब दिया ये सच है कि इंसान मुझे नंगी आँखों से नहीं देख सकता लेकिन मैं इंसानों को देख सकता हूँ. जब मैंने तुमको घर की छत पर चाय पीते हुए और बहुत परेशान हाल में देखा, तो मुझसे रहा नहीं गया. पहले मैं तुम्हें बहुत देर तक देखता रहा और सोचता रहा कि ये इंसान आखिर इतना परेशान क्यों है. फिर सोचा कि शायद इसका हाल भी मेरी तरह हो सकता है तो क्यों ना इससे बात कर ली जाए. तुम इंसान मानते हो कि टूटे हुए दिलों का हाल एक टूटे दिल वाला ही समझ सकता है.

मैं उसकी बात सुनकर यकीन नहीं कर पा रहा था कि किसी ‘प्लेनेट’ के पास दिल हो सकता है और वो टूट भी सकता है. मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा दिल किसने तोड़ा और क्यों. उसने जवाब दिया कि तुम इंसानों ने ही मेरा दिल तोड़ा है और मुझको मेरे सबसे अज़ीज़ दोस्त से अलग कर दिया है. मेरी खोज 18 फेब्रुअरी, 1930 में ‘किलाइड टॉमबॉग’ ने 13” ‘लॉरेंस लोवेल टेलिस्कोप’ से की थी. जबकि सच ये है मैं तो हज़ारों सालों से इस ‘सोलर सिस्टम’ का हिस्सा हूँ. मैंने उससे कहा कि तुम 1930 से पहले भी थे, तुम्हारे बारें में हम इंसानों को सबसे पहले 1930 में पता चला, तो इसमें दिक्कत क्या है. उसने गुस्से में जवाब दिया कि दिक्कत ये है मैं अपने जन्म से ही ‘सूरज’ का चक्कर लगा रहा हूँ और जब तक ये दुनिया रहेगी तब तक लगाता रहूँगा. मगर तुम इंसानों ने मुझसे ‘सूरज’ का ‘प्लेनेट’ होने का दर्जा छीन लिया और अब ‘ड्वार्फ प्लेनेट’ का दर्जा दे दिया.




फिर उसने मुझसे पूछा कि तुम इतना उदास क्यों हो. मैं तुमको हर शाम देखता हूँ जब तुम छत पर चाय का कप लेकर आते हो और चाय का मज़ा लिए बिना उसको घूँट-दर-घूँट पीते रहते हो, ऐसा लगता है कि जैसे तुम कुछ भूलना चाहते हो या फिर किसी को याद आना चाहते हो. मैंने कहा मैं भी कभी किसी का बहुत अच्छा दोस्त हुआ करता था. हम इत्तेफाक से एक-दुसरे से मिले और फिर धीरे-धीरे बहुत अच्छे दोस्त बन गए. इतने अच्छे दोस्त बन गए कि हम दोनों जब भी मिलते थे पूरा-पूरा दिन बातें करते रहते थे. वो मुझे अपने बारें में सब कुछ बताता था, छोटी-छोटी बातें भी. लेकिन आज ये हाल है कि मैं उससे बात करने को तरसता हूँ.

मैं अपनी बात को बीच में काटते हुए उससे पूछा कि तुमको किसने ‘प्लेनेट’ से ‘ड्वार्फ प्लेनेट’ बना दिया और तुम इसकी वजह से परेशान क्यों हो. उसने बताया पहले तुम इंसानों ने मुझे इस ‘सोलर सिस्टम’ का सबसे छोटा और 9वा प्लेनेट का दर्जा दिया लेकिन 2006 कि ‘प्राग कांफ्रेंस’ में मुझसे ‘प्लेनेट’ का दर्जा ले लिया गया और ‘ड्वार्फ प्लेनेट’ कि श्रेणी में डाल दिया गया. मैंने पूछा तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया गया, ये इंसान कौन होते हैं तुम्हारे बारे में कोई फैसला लेने वाले. उसने बताया कि इंसानों ने पाया कि मेरा आकार ‘चाँद’ से भी छोटा है, मेरा ऑर्बिट दीर्घ वृत्ताकार नहीं है और मैं ‘नेपचून’ के ऑर्बिट को क्रॉस करता हूँ, इसलिए उन्होंने मुझसे ‘प्लेनेट’ का दर्जा छीन लिया.

फिर प्लूटो मुझसे सवाल करता है कि तुम अब अपने दोस्त के लिए क्यों मायने नहीं रखते. मैंने बोला कि इंसान कि फितरत होती है कि एक वक्त आप किसी के लिए बहुत ख़ास होते हो, मगर हमेशा के लिए नहीं. अब शायद उस दोस्त को मेरी ज़रूरत नहीं है. मैं उसकी लाइफ में कोई वैल्यू ऐड नहीं कर सकता, अब मैं उसके लिए बेकार हो गया हूँ. पहले मैं उसका सिर्फ दोस्त था, अब उसने दोस्ती की श्रेणियाँ बना ली है, ‘कोर फ्रेंड्स’ और ‘नार्मल फ्रेंड्स’. मुझको पता है कि मैं उसका कोर फ्रेंड नहीं हूँ और शायद कभी बन भी नहीं पाउँगा. मैंने तो बस उसका दोस्त था और हमेशा दोस्त ही रहना चाहता हूँ, नार्मल फ्रेंड ही सही. अब उसने मुझसे नार्मल फ्रेंड का दर्जा भी छीन लिया है और अब मैं उसके लिए कुछ भी नहीं हूँ, शायद अजनबी भी नहीं. तुम्हारा तो सिर्फ दर्जा कम हुआ है, मेरा तो दर्जा ही ख़त्म हो गया है.

मैंने प्लूटो से सवाल करते हुए पूछा कि तुम क्यों परेशान हो, तुम्हारे पास तो पूरा का पूरा ‘सोलर सिस्टम’ है. उसने बताया कि अब इंसानों ने उसका नाम बदलकर ‘134340’ कर दिया है. कहने को तो मेरे पास 5 सैटेलाइट्स ‘चेरओन, स्टिक्स, निक्स, करबरोस और हाईड्रा’ है जो दिन-रात मेरा चक्कर लगाते है और आस-पास सोलर सिस्टम के अनेकों ‘उल्का पिंड’ भी. लेकिन मुझे इनकी ज़रूरत नहीं, बल्कि मुझे तो ‘सूरज’ का सबसे प्यारा ‘प्लेनेट’ का दर्जा चाहिए जिसका मैं बिना रुके चक्कर लगाता हूँ. फिर वो सवालिया लहजे में मुझको बोलता है कि तुम्हारे पास भी तो पूरी दुनिया है, परिवार है, नौकरी है, घर है और दोस्त भी है, फिर तुमको उसी दोस्त की चाहत क्यों है.

मुझको उस वक्त समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसको क्या जवाब दूँ. फिर थोड़ी देर सोचने के बाद मैं बोलता हूँ कि मैं बहुत भावुक इंसान हूँ, जो मुझसे मोहब्बत से बात करता है मैं उसी का हो जाता हूँ. उस पर भरोसा करता हूँ और उसका हमेशा साथ देता हूँ. शायद मैं उसकी लाइफ में कुछ वैल्यू ऐड ना कर पायुं, पर मैं उसकी भावनाओं को बिना उसकी बताये ही समझ सकता हूँ, जो उसका कोई भी कोर फ्रेंड नहीं कर सकता. कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि उसको अपने किसी कोर फ्रेंड की ज़रूरत हो और वो उसका साथ ना दें पाए पर मैं उसका हमेशा साथ दूंगा. उसने भले ही मुझसे दोस्ती का दर्जा छीन लिया हो लेकिन वो मेरा ‘क़यामत’ तक दोस्त रहेगा.

प्लूटो की कहानी सुनने के बाद मैं उसके दर्द को ख़ुद में महसूस कर रहा था. शायद इंसान अब प्रैक्टिकल हो चुके हैं लेकिन प्लेनेट की भी भावनायें होती है और वो भी दर्द महसूस करते हैं. हम दोनों की कहानी काफी मिलती-जुलती है. प्लूटो को ‘सूरज’ का ‘प्लेनेट’ का दर्जा चाहिए और मुझे ‘दोस्त’ का. शायद हम दोनों को अपना-अपना दर्जा कभी भी ना मिले, मगर प्लूटो इस उम्मीद में सूरज का चक्कर लगाता रहेगा कि वो भी एक दिन ‘सूरज’ का सबसे छोटा और अज़ीज़ ‘प्लेनेट’ बन जायेगा और मैं इस उम्मीद में जीता रहूँगा कि हम एक बार फिर से ‘अच्छे दोस्त’ बन जायेंगे.



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