By Dimpsy Sujan
धागे बंदे रहे बरगद से
बंधन टूट गए हम से
यादें मिटा ना पाए
और लड़ भी ना पाए हक़ से
सामान तो बहुत था लौटाना
वही था हमारा खज़ाना
दर्द कम ना हुआ दिल का
तो बना लिया यादों को दवाखाना
डोली मेरी सजी थी
चादर तुझ पे चढ़ी थी
आंसुओं का मंजर हर तरफ़ रहा
और आग दोनो तरफ़ लगी थी
By Dimpsy Sujan