Kala-Manishee
- Hashtag Kalakar
- Mar 1, 2023
- 1 min read
By Mrs Aditi Kapeesh Agrawal
ये ब्रम्हांड एक गर्भ है , और सृजनशीलता उसकी कोख में पल रही उसकी मूल प्रवृती |
जब ये परिपक्व हो जाती है तो फिर जन्म लेती है कला |जब कला परिपक्व हो जाती है
तो फिर जन्म लेता है कला-मनीषी अर्थात कलाकार |कला का वो साकार जो की
उसका परिणाम भी होता है और प्रमाण भी |
कला , कलाकार की परिभाषा होती है
उसका वो बोध है जो निर्बाध है | कलाकार की मात्र अभिरुचि या कौशल ही नहीं अपितु
उसका औचित्य , उसकी कल्पनाशक्ती की समग्रता का भान है , उसके आत्ममंथन का
ग्रहण है, सतत मनन है , विचार सघन है | सौन्दर्य की अभिव्यक्ति है , कभी कलमकार
की शब्दों में आसक्ति, नटराज का नर्तन तो कभी मीरा के इकतारे से निकली भक्ती है|
ये सम्पूर्ण जगत कला का प्रतिबिम्ब ही तो है , उसका प्रतिमान ही तो है |
कला , कलाकार के भीतर विद्यमान असीम अप्रत्यक्ष संभावनाओं की प्रत्यक्ष प्रतिकृती
है ,जो कि उसकी प्रतिक्रिया में तब्दील होकर , प्रकृती का प्रारूप बन जाती हैं |आसमान
की तश्तरी में घुलते हुए रंगों में तो कभी ज़िंदगी के राग को स्वरबद्ध करते हुए निर्झर में
प्रतीत होती है | कभी रंगमंच कि जरूरत मे ढलते हुए नेपथ्य की भांती दिन और रात में
तो कभी किरदार कि जरूरत मे ढलते हुए अदाकार कि भांती सूरज , चांद और तारों के
रूप में व्यक्त होती है | कला सशक्त होती है |
“कला अपरिहार्य है ......... कला ,कला-मनीषी का पर्याय है”
By Mrs Aditi Kapeesh Agrawal

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