By Chirag
उस्मान-लंगड़े ने बिल्डिंग के बेसमेंट में गाडी पार्क की ही थी कि अचानक किसी के कराहने ने की एक आवाज़ आईI आवाज़ सुनते ही उस्मान-लंगड़े का गुनगुनाना ऐसे बंध हो गया मानो किसी ने रिमोट-कंट्रोल पर म्यूट का बटन दबा दिया हो I
दाहिने हाथ की छड़ी पर ज़ोर देता हुआ उस्मान-लंगडा लंगडाते हुए गाडी से बहार निकल और डिक्की की ओर बढा I तेज़ हवा के चलते उसकी पेंट का एक पैर हवा में उड़ रहा था I उस्मान ने डिक्की खोली। अंदर एक लड़की बेहोश पड़ी थी जिसके सर पे खून जमा हुआ था I जैसे ही उस्मान ने लड़की के नाक के पास ऊँगली रखी तो वह चोंक उठा I
आधी-सफ़ेद दाढ़ी खुजाते हुए उस्मान ने चारों ओर नज़र घुमाई I १२ साल से बन रही ६ मंज़िल की अंडर-कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग का बेसमेंट बिलकुल खाली था I उस्मान ने फ़ौरन मोबाइल निकाला और आखरी रीसिव्ड नंबर पर कॉल किया I आधी ही रिंग में सामने से फ़ोन उठा और उस्मान गुस्से बरस पड़ा I “कमीने, कुत्ते फ़सा दिया ना मेरे को.....अपनी लाश ठिकाने लगाने की बात हुई थी I लोंडिया अभी ज़िन्दा है ! तुम लोग इस लाइन में नये हो क्या? फुल मर्डर की सुपारी लेकर हाल्फ-मर्डर करते हो !” दूसरी और से आदमी ने कुछ कहा जिसे सुन के उस्मान ने ‘ना’ में सर हिलाते हुए कहा “१ क्या २ लाख देगा तब भी मैं मर्डर नहीं करनेवाला, अपन सिर्फ लाश को दफनाता है I”
दूसरी ओर से आगे जो भी कहा गया उस्मान ‘ना’ में सर हिलाता हुआ इन्कार करता रहा लेकिन फिर उस्मान ने कुछ ऐसा सुना जिसे सुनकर उस्मान यकीन नहीं कर पाया और वह बोल पडा “पचास लाख!” लालच भरे यह शब्द बोलने के बाद कुछ पल के लिए उस्मान किसी सोच में डूब गया I दरअसल वह सोच नहीं रहा था अपने अधूरे अरमानों के सच होने की संभावना को महसूस कर रहा था I आखिरकार. कुछ पल खयालों की कश्ती पर सैर करने के बाद उस्मान हकीकत में लौटा और आवाज़ में भारीपन लाकर बोला “ सांठ....सांठ लूँगा I”
सामने वाले का जवाब सुनते ही उस्मान के चहेरे पर ऐसी मुस्कान आई जैसी मुस्कान एक जुआरी की आँखों में तीन इक्के देखकर आती है। उस्मान ने अपने टूटे पैर को प्यार से थपथपाया और बोला “बहोत साल लंगड़ा लिया तू। अब देखना तू दौड़ेगा!” इतना बोलकर उस्मान दाहिने हाथ से छड़ी घुमाता हुआ डिक्की की और बढा I लेकिन डिक्की के पास आते ही उस्मान चोंक उठा। डिक्की में कोई भी नहीं था I उसने आस-पास देखा पर वह लड़की कहीं नज़र नहीं आयी। अब उस्मान की ख्वाब देख रही आँखे एकदम से खौफ से भर गयी I तभी फिर फ़ोन की रिंग बजी जिसे सुनकर उस्मान का कलेजा काँप उठा , उसके हाथ से छड़ी गीर गयी I और उस्मान के मूंह से एक दर्द और डर भरी चीख निकली जो बेसमेंट में गूंजती रही I
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तीन महीने बाद बगीचे की एक बेंच पर बैठा उस्मान फ़ोन पर किसी की बात सुनकर बोला “हाँ हाँ लाश ऐसी जगह ठिकाने लगाऊँगा की यमराज को भी नहीं मिलेगी । लेकिन मारने के बाद सांसे अच्छे से चेक करना, कभी-कभी लोचा हो जाता है I” फ़ोन रखने के बाद उस्मान ने अपनी दोनों बैसाखीयाँ उठाई और धीरे-धीरे बहार की ओर चलने लगा I उसकी पेंट के दोनों पैर हवा में लहेरा रहे थेI
अंत
By Chirag
Nice short story. Can make a short film out of it.
Loved it. Awesome story.