By Sameer Parashar
Kis baat ka maatam hai, yahan kaun marr gaya hai,
Pehle kaun hi zinda tha, toh ab kaun marr gaya hai
Aankhon ko bata do, ashq katron me bahega,
Na jaane kis ummeed mein, ik pal ko theher gaya hai.
बरामदे पे कपड़ों में लिपटे देखता हूं उसको,
पागल लकड़ी की तलाश में, गांव से शहर गया है।
सिल्लियों से बचाए रखा है की कुछ देर जी तो लूं,
वो जा चुका है अब, ये ज़ेहन में उतर गया है।
मत उठाना ये बात की ज़िम्मेदार था आखिर कौन,
जो जानता है, वो काफी डर गया है।
मुझे फिक्र है की अब रिश्तों से कतराता फिरूंगा मैं,
जो धीरे धीरे जमाया था अंदर, वो एक बार में बिखर गया है।
By Sameer Parashar
Deep !
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