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Aurat Hi Aurat Ko Samajh Na Pae To Gila Auro Se Kya Karu
By Rachana Rajasthani
आज नहीं करुंगी पुरुषों की कोई बात
ना करुंगी आज उनके रिश्तों पर कोई आघात
आज हर शिकवा हर शिकायत तो बस उन औरतों से है
जो औरत होकर भी नहीं देती एक औरत का साथ
मेरी कविता का शीर्षक है "औरत ही औरत को समझ ना पाए तो गिला औरों से क्या करूँ"
कहते हैं माँ की सबसे अच्छी दोस्त बेटी होती है
पर क्या तभी होती है जब वो अपनी कोख से जनी होती है
क्यूँ वो माँ माँ नहीं रह पाती है जब किसी और की बेटी बहू बनके घर आती है
क्यूँ वो सास बनकर साजिशों के जाल बिछाती है
जब किसी और की बेटी बहू बनके घर आती है
जब माँ की ममता भी दो बेटियों में भेद कर जाए तो गिला औरों से क्या करूँ
औरत होकर जो औरत को ना प्यार दे पाए तो गिला औरों से क्या करूँ
कसूर बस माँ का नहीं बेटी का भी उतना ही है
वो क्यूँ भूल जाती है जितना मायका उसका है ससुराल भी उसका उतना ही है
जब अपनी भाभी हर रसम हर कसम निभाती है
दिनभर काम करके रात में माँ के पैर दबाती है मतलब ...एक अच्छी बहू होने का फ़र्ज़ निभाती है
तो जब वही सब उम्मीदें उसकी सास उससे लगाती है
यही पैर उससे उसकी सास दबवाती है
तो उसे उसमें गुलामी की बू आती है?
ताली एक हाथ से नहीं बजती
ताली एक हाथ से नहीं बजती
ताली गर बजानी है तो हाथ से हाथ मिलाना होगा
बेटी को भी माँ और सास के बीच का फ़र्क मिटाना होगा।
पर औरत ही औरत से हाथ ना मिलाना चाहे तो गिला औरों से क्या करूँ
औरत ही औरत के घर का सुख चैन जलाना चाहे तो गिला औरों से क्या करूँ
प्यार में दर्द अगर राधा ने सहा है
तो मीरा ने भी एक साँस में सारा ज़हर पिया है
राधा को कृष्ण ने अपना नाम दिया है
तो मीरा ने भी खुद को कृष्ण पे कुर्बान किया है
गर राधा ही मीरा के त्याग को समझ ना पाए
और मीरा ग़र राधा के प्यार पर सवाल उठाए
तो गिला कृष्ण से क्या करूँ
जब औरत ही औरत को ना सम्मान दे पाए तो गिला औरों से क्या करूँ
इश्क़ में ऊँच नीच नहीं होती ना इश्क़ की कोई ज़ात होती है
खुशनसीब होते हैं वो जिन्हें मिली खुदा की ये सौगात होती है
चाहे राधा बनो की रुक्मणी इश्क़ में ना कोई जीत ना कोई मात होती है
किसी को पा लेना या पाके खो देना ये तो सब नसीबों की बात होती है
किसी को पा लेना या पाके खो देना ये तो सब नसीबों की बात होती है
पर इन सब बातों से थोड़ी किसी के चरित्र की जाँच होती है
प्यार पत्नी बन के किया तो पवित्र हो गया
जो प्रेयसी बन के किया तो त्रियाचरित्र हो गया?
जब औरत ही औरत के ज़ज्बात ना समाज पाए
तो गिला औरों से क्या करूँ
जब औरत ही औरत के चरित्र पे लांछन लगाए तो गिला औरों से क्या करूँ
जब भी किसी लड़की की इज्ज़त पे गंदी निगाह डाली जाती है
कभी घर में कभी बाहर जब जब वो हवस का शिकार बनायी जाती है
तो औरत ही सबसे पहले आकर उसके संस्कारो पे सवाल उठाती है
उन मर्दों की छोटी सोच को नहीं वो लड़की के छोटे कपड़ो को दोषी ठहराती है
उसके रहन सहन, चाल चलन, लेट नाइट पार्टी, और लड़कों से दोस्ती पे उँगली उठाती है
उसके साथ खड़ी होने की जगह वो इन्हें सवालों के कटघरे में खड़ा कर आती है
जहां तीखे शब्दों के वार से बार बार उसकी इज्ज़त उतारी जाती है
जब औरत ही औरत का सर शर्म से झुकाये तो गिला औरों से क्या करूँ
जब औरत ही औरत के हक के लिए ना लड़ पाए तो गिला औरों से क्या करूँ
जब भी कोई बच्ची गर्भ में गिरायी जाती है
वो माँ भी उस पाप में उतनी ही भागी होती है
औरत वो है जो अपने बच्चे के लिए मौत से लड़ जाए
किसी से ना डरे फ़िर वो वक्त पड़े तो शेरनी बन जाए
ग़र अपनी ताकत दिखाने पर आए मजाल है उसके बच्चे को कोई छू भी पाए
पर वो चुप रहती है
अपनी आंखों के सामने होता सब पाप सहती है
अबला हूँ कमज़ोर हूँ कहके वो सबसे दया की भीख लेती है
पूछो ज़रा अपने दिल से
क्या तुम सच में इतनी कमज़ोर हो?
या कहीं ऐसा तो नहीं कि कहीं न कहीं तुम्हें भी बेटे की चाह होती है
शायद इसलिए तुम्हारी ममता वहा लाचार होती है
बात में कर रही कड़वी ज़रूर हूँ पर मैं सच में सोचने पर मजबूर हूँ
क्या इसलिए तुम्हारी ममता वहाँ लाचार होती है
क्यूँकी कहीं न कहीं तुम्हें भी बेटे की चाह होती है
सोचो ज़रा हर औरत ग़र बस बेटा ही पाना चाहे
एक औरत ही औरत को ग़र दुनिया में ना लाना चाहे तो गिला औरों से क्या करूँ
औरतहीऔरतकेअस्तित्वकोमिटानाचाहेतोगिलाऔरोसेक्याकरूँ
By Rachana Rajasthani