By Pooja Singh
है अभी अलख जगाने को,
यह जात पात की बेड़िया मिटाने को!
है उपजा क्यूं क्लेश सभी के मन में,
क्या बचा नहीं प्रेम जीवन के चितवन में!!
प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही क्यूं,
शांति कोने में बैठी सिसक रही क्यूं!
भाई -बंधु के आपस में ही बै़र हुए,
क्या कली के अब सौ पैर हुए!!
जात-पात में है बाटा इसको उसको,
आत्मा अक्षय क्यूं न अब कचोट रहा सबको!
खाते हैं अब बस मजह़बी घाट की रोटी,
बांध रखी है सब ने आंख पर जात-पात की पट्टी!!
है अभी अलख जगाने को,
यह जात-पात की बेड़िया मिटाने को!
दुष्कर है यह कार्य बड़ा,
फिर से दुर्योधन ने है रूप धरा!
भूल गए हैं सब गीता और कुरान,
फिर से स्मरण करना होगा इनको पूर्वजों के बलिदान!!
इंसान विस्मृत कर बैठा है इंसानियत की मस्ती,
अब तो चौपादो में भी है दिखती इनको अपने दीन की हस्ती!
बांट रखा है रंग के दरबार को,
क्यूं अवघान नहीं रहा प्रकृति धानी चुनर है ओढती गेरुआ रंग चढ़ता है आदित्य का हर घर बार को!!
है अभी अलख जगाने को,
यह जात-पात की बेड़ियां मिटाने को!
By Pooja Singh
Bhut shi h
N1
You are very talented mam
Ocean of knowledge
Great lines