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Aasu Ka Mala

Updated: Sep 3

By Vutukuri Vichitravi


दुनिया के नजरे सिर्फ आंखों के काजल पर ही जाते हैं |1|


जो आंखों का परदा हैं |2|


लेकिन एक बार चापके तो देखो छुपा हुआ गहरी राज़ दिखेगा गगन कि तरह |3|


मिले तो हजारों ग़म, बस तेरा वादा भूल ना सकि |4|


उलझनों के दागों में बंधि हुं बस तु ही डोरी खिचता हैं |5|


जितना भी चाहु दिल से तेरे लिए सिर्फ दुआ हि निकलति हैं नफरत का धडकन नहीं |6|



शंकर के गले में विष जैसा ना पियू तो मेरा संसार ही नहीं रहेगा |7|


गौरी न बन सकता तो क्या, देवता बनके प्रधान करो कोई |8|


पर यूंही विष सर्प जैसा विष से भरा दिया मुझे |9|


विश निकलु तो मुझे खोंसते है |10|


और सब से दूर अब सूरज की तरह जलने लगे हम अंदर ही अंदर |11|


सब को रोशनि मिलती है हम से |12|


सबको रोशनी देते-देते कब हम गले लगाया अंधकार को पता ही नहीं चला |13|


मेरे वो गले का हार है जो नयनों के मोती से बना जिसकी कीमत कोई चुका ना सका |14|


दिलचस्पी है सबको कि, गले को कोई सुना नहीं हो ने दिया |15|


ना मन को शांति मिली |16|


ना दिमाग को ठंडा होने दिया |17|


सहते रहे पर क्यू भया ना कर पाये |18|


सांसें तो चलते, मगर हूँ एक शव की तरह |19|


आज कल जीवन सती बिना शंकर जैसा है |20|


हसी राम के बिना अयोध्या |21|


अब चलते चलते इस मोड़ पर आ चुके अशोक वाटिका के सीता जैसा |22|


हमारी खुशी बिन रंग के होली है |23|


हमारी इच्छा ऐसे बच्चों के खिलखिलाहट बिना घर के आंगन |24|


उम्मीद है गगन की गहराई तरह |25|


पर होता वही बिन सूरज के सूरजमुखी |26|


बना अंधकार में चांद सबके और पाया खुद को तन्हा |27|


इतना झेला, अब बादल की तरह बरसते हैं हम |28|


भीगते हुए मिली खुशी सबको |29|


पर मैं, नजरों में सबके सड़क के कीचड़ ही हूँ |30|


ऐसे हो गई हूँ अमावस्या के चांद |31|


वो जो कभी किसी का सपना हुआ करती थी |32|


खाली कलम हूँ जिस में सुख का स्याही था कभी |33|


जो कभी आशा के पन्नों से भरे रहते थे |34|


आज सजाने के लिए किसी कलाम में स्याही ही नही रहा |35|


इतना बया किया कोई नज़र ही नहीं पैढा हमारी किताब पे |36|


ऐसे नजरअंदाज किया जैसे कोई धूल हूँ |37|


ना जाने क्यों हमारी रेलगाड़ी दुख के पटरी में चलती है हमेशा |38|


आखिर सबके नसीब ,कहा है हीरे पाने की |39|


By Vutukuri Vichitravi



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