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Aakrosh
By Aditya Ranjan
झर्ना जो बहता पिघले बादल
झर्ना गिरे चिल्लाये अपना आक्रोश
बहती नदी बनती सागर हो गयी अब खामोश।
झूमते-झूमते प्रश्न मंडराए
पूछा आखिर फूल
“क्यों रे बादल जन्मी, तू पड़ी ठंडी हाये?
जिस्के आक्रोश से मॉ काँपे
जिस्का गुस्सा जंगल मे छाये जिस्के सामने देव टेकते घटने आखिर क्यों तू पड़ी ठंडी हाये”
बादल देखे फूल के ओर
दो बार यह दोहराये
“आक्रोश अपना झर्ना दिखाये
आखिर क्या नदी पाये?
बुज़ुर्ग चट्टान बैठा हुआ, यह समझाये जहां भारी झर्ना धरती खोदे
नदी प्यासे को पानी पिलाये”
नन्हे फूल को आया समझ में
नदी देखे वह मुसकुराये
झर्ना जो बहता पिघले बादल
झर्ना गिरे चिल्लाये अपना आक्रोश
बहती नदी बनती सागर हो गयी अब खामोश।
By Aditya Ranjan