गाँव
- Hashtag Kalakar
- Oct 14
- 1 min read
By Vishvadeep Jain
कही बैठा दूर आज गांव से गांव की याद बहुत दिलाता है,
प्रदूषण के धुएं में रहकर गांव के कोहरे की याद दिलाता है,
मकानों की छाया में रहकर नीम पीपल की छांव याद आती है,
चलती गाड़ियों की ध्वनि में रहकर पक्षियों की मधुर ध्वनि याद आती है,
पॉप संगीत के ज़माने में आकर सवेरे भजन की ध्वनि याद आती है,
टूटते रिश्तों के बीच वो गांव बिन मतलब के रिश्ते याद आते है ,
ऑनलाइन गेमिंग के ज़माने मैं गांव के गिल्ली डंडे की याद आती है ,
तो कही उन कैफेस मैं बैठकर गांव की वो बरगद के नीचे वाली चौकड़ी याद आती है,
जहा मुंह नही देखते लोग वहा हर वो बुजुर्ग का खिलता चेहरा याद आता है ,
और जहा हाल नही पूछता कोई आपका गांव के वो अनजान आपका दुलार करते हुए याद आते है ,
और जहा इस शहर मैं कोई मिलने ही नही आता आपसे मुझे गांव मैं इंतजार मेरा करते हुए लोग याद आते है ,
आज गांव से दूर बैठकर गांव की याद बहुत आती है ,
वो शांति वो सरलता वो सुबह का सूरज वो पक्षियों को चहचहाना,वो ठंडी वायु, सबकी याद बहुत दिलाता है
आज गांव से दूर गांव की याद बहुत आती है ।।
By Vishvadeep Jain

Felt the essence of every word....
Took me back to that time and gave me a nostalgia 🥹
Truly felt the feeling of village 😊
This poem touches the heart because it speaks to a universal feeling,
“जहां से हम आते हैं… वही सबसे ज्यादा याद आता है।”
Beautifully expressed! 🌾🤍 💯 ❤️