बीजों का महत्व: स्वस्थ और अस्वस्थ बीज के फर्क को समझें
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बीज

Updated: Feb 2

By Swati Sharma 'Bhumika'


सुबह के १० बजे थे | भूमिका अपनी माँ के पास जाकर

चुपचाप बैठ गई | माँ ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराकर पुछा-

“नहा-धो आई |” भूमिका ने हाँ में सर हिलाया और कहा- “माँ

आप यहाँ बगीचे में क्या कर रही हो ?”


माँ ने कहा- “तरबूज़ के बीज बो रही हूँ | तुम्हें तरबूज़ पसंद

है ना ?” भूमिका ने कहा- “हाँ माँ यह देखिये कुछ बीज वहां उस

कोने में भी रखे थे | शायद आप से गिर गए होंगे, तो मैं इन्हें भी ले

आई | इन्हें भी बो दीजिये | माँ ने देखा और कहा- “नहीं मेरी बच्ची

इन बीजों को मैंने ही वहां डाला था | क्योंकि यह ख़राब बीज हैं |

यदि हम ख़राब बीज अपने बगीचे में बोएँगे तो, हमें स्वस्थ पौधे

नहीं मिल सकते | अतः स्वस्थ बीजों की पहचान करने के पश्चात्

ही हमें उन्हें बगीचे में बोना चाहिए |”


भूमिका ने कहा- “अच्छा माँ परन्तु, हम किस प्रकार स्वस्थ

एवं अस्वस्थ बीज में अंतर कर सकते हैं? एवं यदि हम अस्वस्थ

बीज बो दें तो उसके क्या नुक्सान होंगे |”



माँ ने कहना शुरू किया- “बीजों को पानी से भरे बर्तन में

डालकर हम सरलता से पता लगा सकते हैं | जो बीज पानी में

ऊपर तैरेंगे, वे अस्वस्थ बीज होंगे एवं जो बीज पानी के भीतर डूबे

रहेंगे, वे स्वस्थ बीज होंगे | यदि हम अस्वस्थ बीज बोएँगे तो, हमें

बीमार पौधे मिलेंगे, जो कि फल भी अच्छे नहीं देंगे | इसीलिए

हमें स्वस्थ बीज ही बोने चाहिए और बेटा जो सीख मैंने तुम्हें

स्वस्थ पौधे के बारे में दी है वही सीख हमारे जीवन में भी बहुत

काम आती है | ”भूमिका ने आश्चर्य से पूछा- “वह कैसे माँ?” माँ ने

बताया- “जिस प्रकार अस्वस्थ बीज ख़राब पौधा देते हैं | अतः

उनके ख़राब फल खाने से हम अस्वस्थ हो जाते हैं | ठीक उसी

प्रकार यदि हम हमारे मन में अस्वस्थ विचारों को जगह देंगे तो, वे

हमारी सोच, आचरण एवं शरीर को अस्वस्थ करते हैं | इसीलिए

हमें बुरे विचारों का त्याग कर अच्छे एवं स्वस्थ विचारों को

अपनाना चाहिए | जिससे हमारा जीवन सुधरे | अतः हम स्वयं का

एवं दूसरों का भी कल्याण कर सकें | इसीलिए हमें अपने बच्चों को

अच्छे संस्कार एवं स्वस्थ विचारों से पोषित करना चाहिए | ताकि

वे आगे जाकर खूब प्रगति करें एवं एक सकारात्मक और स्वस्थ

जीवन जी सकें | यह सीख बच्चों के साथ-साथ हम बड़ों को भी

अपने जीवन में अपनानी चाहिए, अपने आचरण में उतारनी

चाहिए |”


भूमिका को अब माँ की बात भली प्रकार समझ आ चुकी थी

| अतः उसने माँ से वायदा किया कि वह उनकी यह सीख जीवन

भर याद रखेगी एवं उसे अपने आचरण में भी उतारेगी | दोनों

माता-पुत्री बगीचे से निकलकर घर के भीतर चली गईं |


शिक्षा :- “ज्ञान का लाभ तभी है, जब हम उसे अपने आचरण में उतारें |”


By Swati Sharma 'Bhumika'




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