गली
- Hashtag Kalakar
- Dec 23, 2022
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By Monika Sha
जाने कितने दिन हुए! इस गली में घूमते हुए। शायद आख़िरी बार इस गली से तब गुजरी थी जब मेरे विद्यालयी जीवन का आख़िरी दिन था। स्कूल के दिनों में अक्सर इसी गली से आया जाया करती थी। तब इस गली से उतना लगाव नहीं था। स्कूल के दिनों में इतनी व्यस्त रहती थी कि कभी ख्याल ही नहीं आया कि एक वक्त ऐसा भी आएगा कि इस गली से बहुत कम गुजरूंगी। ठीक बचपन की तरह!जब तक बचपन रहता है तब तक हम उसके बारे में सोचते ही नहीं, पर जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, याद आने लगते हैं बचपन के दिन, मीठे सपने की तरह।
स्कूल ना होता तो शायद इस गली से उतना परिचय नहीं हो पाता। इस गली के शुरुआत में एक बहुत बड़ा पेड़ है जो गली से गुजरते वक्त अच्छे से दिखाई नहीं देती है। पर छत से पेड़ का ऊपरी सिरा जरूर दिखाई देता है। यह पेड़ अत्यंत विशाल है और ख़ास भी है। चारो ओर अपनी भुजाएं पसारे यह पेड़ ऐसा लगता है जैसे इस गली की हिफाजत कर रहा हो। ठीक उसी तरह जिस तरह शेषनाग ने मूसलाधार बारिश से नन्हे कृष्ण की हिफाज़त किया था। एक अच्छे पहरेदार की तरह। ना जाने इस पेड़ में कितने संसार बसे होंगे। इस पेड़ को देखते-देखते ही मैं बड़ी हुई हूंँ। बचपन से ही अनंत से घर की ओर के सफर में इस पेड़ को देखकर ही जान पाती हूंँ कि मेरा घर आ गया है। मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है यह पेड़। जब गर्मी के दिनों में स्कूल जाना होता था और सुबह की किरणें बहुत तेज होती थी तब ऐसा लगता था मानो यह पेड़ अपनी छाया देकर हमें तृप्त करना चाहता हो,हमारे पास आना चाहता हो और हम भी खुशी-खुशी इस पेड़ की छाया का स्वागत करते थे। पर कभी-कभी, मौसमों की मार से और अपने धीमेपन के कारण इस पेड़ को उतना वक्त नहीं दे पाती थी। इस पेड़ के ठीक थोड़ा आगे एक और गली है। घर आते वक्त हमारी गाड़ी वहीं रुकती थी। वहां पर एक दुकान है जो बचपन से वहीं पर है। हमेशा घर आते वक्त,मैं वहां से पांच रुपए का हनीटस चॉकलेट ले लेती थी। वैसे उस दुकान में, नीमचूस का भंडार है पर मुझे यही भाता है। फिर मैं घर आ जाती थी।
पर अब यह गली मुझे अजनबी सी लगती है। बहुत से घर और रास्ते जो बदल गए हैं। पहले इस गली से खुला आसमान देख पाती थी पर अब घर इमारतों का रूप ले आसमान छूने लगी हैं। इंसान आसमान छूना चाहता है यह सुना था पर अब घर भी .......! अब बड़े-बड़े नीले गुलाबी घरों के बीच में, मैं तनहा महसूस करती हूं। ऐसा लगता है कि भीड़ में भी अकेली हो गई हूँ| मुझे अब घुटन का सा एहसास होता है/ मैं अपने आप को, अपने बचपन को और अपनी उस गली को खोजती रहती हूँ......और शायद.....!
By Monika Sha

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