औरत
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औरत

By Shivali



बो रसोई में खड़ी औरत कितनी सुलझी हुई हैं न

उसके चहरे की मुस्कुराहट कितनी प्यारी है न,


बो जो सबके बारे में सोचने वाली

अपना खयाल रखती होगी क्या,

बो काम में चौबीस घंटे उलझी हुई

खुद को वक्त दे पाती होगी क्या,


परिवार की खुशी के लिए बो कुछ भी कर जाती है न

घर की जिम्मेदारियों को अपने कंधो पे उठाकर चलती है न,





इन सब चीजों में उसे अपना ख्याल रहता होगा क्या

अपनी परेशानियों को छुपाकर बो जिंदगी को अच्छे से जी लेती होगी क्या,


तकलीफों को साइड में रख कर बो कितना खुश रहती है न

हर बात को कितने प्यार से समझाती है न,


सुबह जल्दी उठना और रात को देर से सोना

अपनी जिम्मेदारियों को कितने अच्छे से निभाती है न,


बो रसोई में खड़ी औरत कितनी सुलझी हुई है न

उसके चहरे की मुस्कुराहट कितनी प्यारी है न!



By Shivali




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