हे प्रेम !
- Hashtag Kalakar
- Nov 7
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By Gaukaran Pandey
हे प्रेम ! मैं आप को आप कहूँ ,
या तुम कह तुम पर हक़ दिखलाऊँ ?
आप के आगे मौन रहूँ नित ,
या तुमसे सब कह कह बतलाऊँ ?
आप की खातिर रचा गया मैं ,
या तुम संग मात्र संजोग लिखा ?
हैं आईं आप मेरे खातिर ही ,
या मुझे ही प्रीत का रोग लिखा ?
आँखें रोईं कितनी बारी ,
कितनी बारी दिल तड़पा था ।
कोई अंत न दुःख का मिलता था ,
खुद से ही खुद मैं लड़ता था ।
मेरे प्रेम सुनो ! सौंह राम की है ,
तुम बिन जीना अब हमको ना ।
मेरी श्री सीता राधा तुम ही ,
अब और सहारा हमको ना ।
हैं आप कृपा कर मिली मुझे ,
या मेरा कोई पुण्य जगा ?
मुझे बिसारोगी जो अगर ,
तो आप बिना ना कोई सगा ।
मैं कहूँ अगर तो कहूँ ही क्या ?
मैं लिखूँ अगर तो लिखूँ ही क्या ?
मैं आप के खातिर कुछ रच दूँ ?
या लिखूँ तुम्हे जैसे दिल ने कहा ?
हे प्रेम ! तुम तुम सर्वत्र छुपी ,
हे प्रेम ! मेरी तुम स्वांस हो ।
हे प्रेम ! तुम दूर बहुत ,
पर तुम्ही जो सबसे पास हो ।
मेरे जीवन का माधुर्य तुम्ही ,
तुम मुझपर किरपा राम की हो ।
तुम प्रीत गगन का चन्द्र प्रिये ,
तुम शीत बयार हर शाम की हो ।
मैं कह कर भी ना कह पाता ,
मैं आप को कितना प्रेम करूँ ।
मैं प्रीत में आपकी डूबा रहूँ बस ,
आपको बस नित प्रेम करूँ ।
तुम्हें प्रथम बार जब देखा था ,
तब अचरज दिल में बैठ गया ।
मेरा मन ये तड़प कर शिथिल हो ,
तुम्हें पाने को जिद्द में ऐंठ गया ।
कहने लगा सुनो स्वामी हे !
ये छवि राधा हैं या सीता हैं ?
मैंने भी कहा अब ये ही हैं !
ये ही मेरी परिणीता हैं !
By Gaukaran Pandey

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